-प्रेमबाबू शर्मा
अभिनेत्री मैलेनी नाजरथ का कहना है कि ‘जितनी चुनौतियां मिलेंगी,कला उतनी निखरेगी’ यह बात उन्होंने फिल्म ‘‘एक तेरा साथ’’ के सेट पर बातचीत में कहीं। मैलेनी का फिल्मों से दूर तक रिश्ता ना होने के बावजूद ,आज उनकी अपनी दम पर पहचान हैं। अभिनेता अमृत पाल के निर्देशन में जब मैलेनी ने ‘एक चादर मैली-सी’ में काम किया, तभी उसके जेहन में यह इरादा पक्का कर लिया कि चाहे जो हो, अभिनेत्री ही बनना है। हिन्दी के पश्चात् अंग्रेजी नाटक ‘‘सेम टाईम ऐज युजूअल’’ के बाद तो मैलेनी के पांव जमीं पर नहीं टिकते थे। वह तो उड़ान भरने की तैयारी में लग गयी। टेलीविजन पर प्रयास किया और काम मिल गया। इम्तियाज़ पंजाबी के धारावाहिक ‘‘चूड़िया’’ (सोनी टीवी) से तो मैलेनी को एक नयी राह मिल गयी। और उसी रास्ते वह अरशद सिद्दीकी तक पहुंची। आज वह उनकी फिल्म ‘‘एक तेरा साथ’’ की नायिका है। मैलेनी क्या सोचती है,अपने करियर के बारे में जानते है,उनकी ही जुबानी:-
‘‘एक तेरा साथ में किसका साथ मिलता है आपको?
जोधपुर के घानेराव पैलेस के राजकुमार आदित्य प्रताप सिंह का, जो काॅलेज में मेरे साथ पढ़ते थे। मुझे पता नहीं होता कि आदित्य राज घराने से हैं और उनकी कोई पत्नी भी थीं, जो किसी घटना में मारी जा चुकी हैं। मुझे इतना मालूम होता है कि आदित्य अभी अकेले हैं और मैं बस मिलने पहुंच जाती हूं जोधपुर।
फिल्म की कहानी में क्या होता है?
जोधपुर में घानेराव पैलेस पहुंच कर मैं जो भी देखती हूं, वो चैंकाने वाला वाक्या होते हैं। आदित्य प्रताप बिल्कुल एकाकी हैं, मगर वह ऐसे रह रहे हैं मानों अपने पूरे परिवार के साथ हैं।
ऐसा क्यों होता है?
क्योंकि आजादी के बाद राजपाट चला गया। महल काटने दौड़ता है क्योंकि परिवार का कोई है नहीं। ऐसी सूरत में आदमी की मनोदशा पागलों जैसी हो जाती है। वह अतीत को छोड़ नहीं पाता, भविष्य से जुड़ नहीं पाता और वर्तमान में जी नहीं पाता। बड़ी विचित्र स्थिति बन जाती है। कुछ रजवाड़ों ने तो अपने महल को होटल बना डाला, पर कुछ लोग इस बदलाव को बर्दाश्त न कर सके और अपने में ही घुलते रहे, घुटते रहे।
इतनी उलझनपूर्ण विषयवाली फिल्म को चुनने की कोई खास वजह ?
क्योंकि डर के आगे जीत है…!!! (हा-हा-हा !) मैं काम करते जाने में विश्वास रखती हूं। मुझे मेरे घरवाले दिवास्वप्नी लड़की अर्थात् दिन में सपने देखने वाली लड़की कहते थे। मुझे पता है, आ का समय काफी संघर्ष और प्रतियोगिता का है। हर शुक्रवार को एक नया चेहरा दिख जाता हैै। जिसमें दम है वह टिकता है।
आपको टिकना है, तो बिकना भी होगा?
हां, सही तो है। हर बिकनेवाली यानी बड़ी अभिनेत्रियों ने ऐसी फिल्में की हैं। मधुबालाजी ने तो ‘महल’ से शुरुआत ही की थी, जिसे भारत की पहली सस्पेंस फिल्म कहते हैं। वहीदा रहमान (बीस साल बाद), वैजयंती माला (मधुमती), साधना (वो कौन थी), नंदा (गुमनाम) इत्यादि सबने ऐसी फिल्में कीं और सभी सफल रहीं।
चलिए, ईश्वर करे, आप भी सफल हों। लेकिन, सफलता की इस पायदान तक पहुंचने-पहुंचाने के लिए आप किसे धन्यवाद देंगी?
सबसे पहले तो अपने निर्माता-निर्देशक अरशद (सिद्दीकी) सर को, जिन्होंने मुझ पर अपना भरोसा जताया और अपनी फिल्म की हीरोईन बना डाला। फिर मैं अपने साथी कलाकारों का धन्यवाद करूंगी, जिनके सहयोग के बिना यह सब पूरा न होता। आदित्य प्रताप के रूप में शरद मल्होत्रा के साथ मेरी अच्छी ट्यूनिंग बनी है। रितु (दुदानी), दीपराज (राणा) और विश्वजीत जी (प्रधान) ने भी अच्छा सहयोग किया।
अभिनेत्री के रूप में आपको अपने भविष्य की राह चुननी होगी, तो किसकी राह चलेंगी?
काजोल की। काजोल जी की हर अदा मुझे बड़ी प्यारी लगती है। आज की अभिनेत्रियों में अनुष्का शर्मा, कल्कि कोचलिन मुझे अधिक पसंद हैं। मैं विद्या बालन के अभिनय से बहुत ही प्रभावित हूं। वह जो किरदार निभाती है उस किरदार में वो अपने आपको पूरी तरह ढाल देती है। ‘हम पांच’ धारावाहिक से जिसने अभिनय करना शुरु किया हो और आज वो बड़ी-बड़ी हीरोइनों को सिल्वर स्क्रीन पर टक्कर दे रही हो, यह बात बहुत ही तारीफे काबिल है। विद्या जी ने बाॅलीवुड में अपने टैलेंट से लोहा मनवा लिया है। वह चाह अरशद वारसी हो या बड़े से बड़ा एक्टर, उनके सामने उनके अपोजिट आज विद्या जी बेझिझक काम करती है। और यही उनका जिगरा मुझे बहुत पसंद है। अगर किस्मत ने मेरा साथ दिया तो एक दिन मैं भी विद्या जी के रास्ते पर चल कर एक्टिंग की दुनिया में अपना नाम ज़रूर कमाऊंगी।