बैंगलौर
भारत देश में हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई और भी ना जाने कितने धर्मों और मतों के लोग अपने-अपने रीति-रिवाजों और पर्वों और त्यौहारों को साथ मिल कर मनाते हैं। हमारा भारत रंगीला है, इन्द्रधनुश की भांति अलग-अलग रंगों से सुसज्जित। हर रंग का अपना महत्व और अपना अस्तित्व। फिर भी इसाई धर्म के त्यौहार बाकी सभी की तुलना में मतावलंबियों के लिए बहुत हद तक अनजाने ही बने रहते हैं। हालांकि बड़ा दिन यानी 25 दिसंबर सभी धर्म के लोग मनाते हैं लेकिन गुड फ्राइडे अभी भी बहुत से लोगों के लिए एक रहस्य है। अभी तक कोई यह तय नहीं कर पाया है कि गुड फ्रायडे नाम कहाँ से आया। एक सिद्धांत यह कहता है कि गुड-गॉड्स का अपभ्रंश है अर्थात ईश्वर का फ्रायडे। और सर्वमान्य यह है कि गुड फ्रायडे का अर्थ है शुभ शुक्रवार। गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे या ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं।
यीशु का संपूर्ण जीवन एक ईश्वरीय योजना को पूरा करने के लिए था। उन्हें सलीब पर चढ़ाया जाना कोई अपवाद नहीं है। उन्हें लहूलुहान व जख्मी दशा में सिर पर काँटों का ताज पहना कर हाथ-पैर में कीले ठोंकी गई। इस असहनीय पीड़ा को सहते हुए उन्होने ना सिर्फ कलवरी के क्रूस पर अपने सताने वालों के लिए परमेश्वर से क्षमा के लिए प्रार्थना की ,और उन्होंने ऊंचे स्वर से पुकार कर कहा, हे पिता! मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं। हे पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। यह कहकर उन्होंने प्राण त्याग दिये। ,यह मृत्यु मानव में सत्य, अहिंसा, क्षमा, प्रेम तथा त्याग की ज्योति जलाने हेतु ही थी। ईसा अपने अनुयायियों को अपने प्रति अपराध करने वालों को भी माफ करने का संदेश दे गए थे। ऐसा करके ईसा ने संपूर्ण मानव जाति के लिए, जो शैतान के बंधनों से जकड़े हुए थे, प्रार्थना कर उद्धार का द्वार खोला। अतः गुड फ्राइडे इसाईयों के लिए बेहद खास दिन होने के साथ-साथ प्रेम और क्षमा का दिन होता है। इस शुक्रवार को पवित्र व शुभ माना जाता है। इस दिन यीशु को क्रास पर चढ़ाया गया था। यीशु के बलिदान देने की वजह से ही इस दिन को गुड कहते हैं। यह त्यौहार प्रभु यीशु के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुड फ्राइडे का त्यौहार वास्तव मेँ प्रभु यीशु द्वारा मानवता के लिए प्राण का न्यौछावर करने का दिन है। गुड फ्राइडे के दिन ईसाई धर्म के अनुयायी यीशु को उनके त्याग के लिए याद करते हैं।
पूरे विश्व में इसकी तैयारी में 40 दिन का शोक मनाया जाता है। जिसमें करोड़ों मसीह यीशु के अनुयायी निराहार उपवास करते हैं। यीशु मसीह के दुःखों को स्मरण करके घर-घर में प्रार्थना सभा, बाइबल अध्ययन, संगीत, प्रवचन व प्रार्थना कर लोगों को अपने पापों से शुद्धिकरण, पश्चाताप करने, अपने गुनाहों की माफी के लिए तैयार करते हैं। प्रतिदिन यह प्रार्थना उपवास 40 दिन तक घरों में की जाती है, ताकि सबका उद्धार हो।
गुड फ्रायडे के पहले गुरुवार को पवित्र भोज विधि, जो प्रभु यीशु मसीह ने मृत्यु से पूर्व अपने चेलों के संग प्रभु भोज लिया था, लिया जाता है। यह दिन प्रभु भोज के नाम से जाना जाता है। मसीह समाज के सभी लोग इस पवित्र दिन चर्च में इकट्ठा होकर इस भोज में दाखरस व रोटी को लेते हैं। इसके पश्चात पूरे सप्ताह पूरे विश्व में बड़ी भक्ति से दुःख भोग सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसमें प्रभु यीशु के दुःख मृत्यु पुनरुत्थान को स्मरण कर विशेष प्रवचन चर्चों में आराधना के रूप में आयोजित किया जाता है। जिस प्रकार ईसा ने अपने शिष्यों के पैर धोकर विनम्रता का उदाहरण पेश किया। पवित्र गुरुवार को कैथोलिक समुदाय में पुरोहितगण आमजन के पाँव धोकर प्रभु ईसा के विनम्रता के इस महानतम उदाहरण को आज भी याद करते हैं। यह ईस्टर काल कहलाता है।
इस साल भारत में 9 मार्च से पवित्र 40 दिनों की शरुआत हुई थी। गुड फ्राइडे इन 40 दिनों की समाप्ति का दिन होता है। इसाई पूरे 40 दिन तक संयम उपवास, प्रार्थना और प्रायश्चित का निर्वहन कर अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं। इस वर्ष 3 अप्रैल को गुड फ्राइडे मनाया जा रहा है। यह त्यौहार पवित्र सप्ताह के दौरान मनाया जाता है, जो ईस्टर सन्डे से पहले पड़नेवाले शुक्रवार को आता है।
जिस क्रूस पर यीशू को सूली चढ़ाया गया था उसके प्रतीक में आस्थावानों की श्रद्धा स्वरूप लकड़ी का एक तख्ता गिरजाघरों में रखा जाता है। ईसाई एक-एक कर इस तख्त को चूमते हैं। इसके बाद दोपहर से तीन बजे तक सर्विस के दौरान ईसाई सिद्धांतों (चार गोस्पेल्स) में से किसी एक का पठन किया जाता है। कुछ जगहों पर श्रद्धालु काले वस्त्र पहनकर यीशु की छवि लेकर मातम मनाते हुए परेड्स निकालते हैं और प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार भी किया जाता है।
गुड फ्राइडे एक शौक दिवस है इसलिए इस दिन उनके अनुयायी समस्त लौकिक सुविधाओं का त्याग कर देते हैं साथ ही इस दिन गिरजाघरों में घंटियाँ नहीं बजाई जाती।
अलग-अलग संस्कृति में त्यौहार मनाने में भिन्नता देखने का मिलती है-पश्चिमी ईसाई धर्म के लोग ईस्टर सीजन के दौरान “ऐश वेड्नस्डे” को उपवास रखना शुरू करते हैं और ईस्टर संडे को अपने उपवास का अंत करते हैं। गुड फ्रायडे एकमात्र ऐसा दिन है जिसका निर्धारण यहूदी करते हैं। यहूदी फरवरी माह में चांद देखकर इस दिन का निर्धारण करते हैं और गुड फ्रायडे के 40 दिन पहले आने वाले बुधवार से उपवास प्रारंभ हो जाते हैं। इस बुधवार को राख का बुधवार कहा जाता है। वहीं पूर्वी ईसाई सभ्यता के लोग चर्चों में ईस्टर काल के दौरान सोमवार को उपवास रखना शुरू किया जाता है। प्रभु यीशु ने मानव सेवा प्रारंभ करने से पूर्व 40 दिन व्रत किया था शायद इसी वजह से उपवास की यह परंपरा शुरू हुई।
ईसा मसीह केवल ईसाइयों के आराध्य पुरुष नहीं हैं। वे तो संपूर्ण मानव जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं, क्योंकि सत्य, अहिंसा, प्रेम, क्षमा, त्याग ही मानवीयता के केंद्रबिंदु हैं और यही ईसाई धर्म का सार है। प्रभु यीशु ने न सिर्फ प्रेम व क्षमा का उपदेश दिया, बल्कि अपने जीवन के द्वारा व संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रेम और क्षमा का अविवरणीय उदाहरण बन गए जिसकी बराबरी कोई आज दिन तक न कर सका है और न कर सकेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य प्रभु यीशु मसीह के उपदेषो पर विश्वास करे। सभी को क्षमा करे, एक-दूसरे से प्रेम रखे, मानवता की सेवा करे, एक-दूसरे का आदर करे, अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना करे, आशीष माँगे, एक-दूसरे की भलाई करे, सदा प्रभु की सेवा उत्साह से करे, गुड फ्रायडे का संदेश यही है कि पाप को कभी पाप से नहीं जीता जा सकता, केवल अच्छाई ही उसे जीत सकती है। हिंसा को अहिंसा और घृणा को दुश्मन के प्रति प्रेम ही जीत सकता है। पावन दिवस की शुभकामनाए!