एनडीटीवी पर एक दिन की रोक विषय पर


8 नवबंर एनयूजे कार्यालय में गोष्ठी सभी माननीय साथियों को एनडीटीवी पर एक दिन की रोक के बारे में दिए गए सुझावों के लिए धन्यवाद। सभी ने अपने मन की बात खुलकर सामने रखी। सभी ने अच्छे सुझाव दिए हैं। सवाल केवल एक चैनल पर रोक लगाने का नहीं है। पूरे देश में मीडिया और मीडिया कर्मियों के खिलाफ होने वाले हर उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। एनडीटीवी पर एक दिन की रोक के खिलाफ कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, इसलिए हम भी विरोध करें यह जरूरी है या नहीं इस पर विचार करने की जरूरत है। एडीटर गिल्ड आफ इंडिया ने रोक का विरोध किया है तो यह भी विचार करने की जरूरत है कि एडीटर गिल्ड का मीडिया के खिलाफ हुई तमाम घटनाओं पर क्या रवैया था। पत्रकारों के हित में नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की मांगों, धरना और प्रदर्शनों को लेकर टीवी चैनलों और अखबारों का क्या रवैया था। हम हर बार मीडिया पर होने वाले हमलों के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे हैं, पूरी ताकत लगाकर धरना-प्रदर्शन करते हैं। नतीजा क्या मिलता है। आपात काल हो या बिहार प्रेस बिल, मुलायम सिंह यादव का हल्ला बोल हो या तमिलनाडु में प्रेस पर पाबंदी का मामला। ऐसे तमाम उदाहरण हैं जब भी मीडिया पर हमले हुए हमने आवाज उठाई। हैरानी तब होती है जब मीडिया में हमारे आवाज उठाने को कोई समर्थन नहीं मिलता है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में हल्ला बोल की बात करें तो खुद जागरण के उस समय के मालिक और संपादक स्वर्गीय नरेंद्र मोहन ने खुद हमें बुलाकर समर्थन मांगा था। चार बार प्रदर्शन किए। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से मिलने वाली आर्थिक सहायता को ठुकरा दिया। उन्हें सम्मेलन में बुलाने से इंकार कर दिया गया। बाद मे क्या हुआ सब जानते हैं। ऐसे और भी मामले हैं। पत्रकारों के खिलाफ होने वाली तमाम घटनाओं के खिलाफ हम बिना किसी भेदभाव के आवाज उठाते रहे हैं। 

अब ताजा मामला एनडीटीवी पर पठानकोट में आतंकवादी हमले के दौरान देश के नुकसान पहुंचाने वाली कवरेज को लेकर लगी एक दिन की रोक को लेकर है। जांच के लिए बनी कमेटी तीस दिन की रोक लगाने की सिफारिश की थी पर सरकार ने एक दिन की रोक लगाने का फैसला किया है। एनडीटीवी सरकार और भारतीय जनता पार्टी से कितना फायदा लेता रहा है, इस पर सोचने की जरूरत है। हाल ही में केंद्र सरकार और एनडीटीवी के बीच क्या करार हुआ है। भाजपा कार्यालय में पहली बार एनडीटीवी को ही जगह दी गई थी। एनडीटीवी में काम करने वालों का तो भाजपा नेताओं से बहुत अच्छे संबंध हैं। संबंध ही नहीं है बल्कि सबसे ज्यादा तरजीह मिलती रही है। एनडीटीवी के बारे में और कई बातें है जिन पर मिल कर बात करेंगे।

हमारे लिए सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी सरकारी, राजनीतिक, नौकरशाही, नक्सलवादी, आतंकवादियों, माफिया और जो भी मीडिया पर रोक लगाने की धमकी देता है तो विरोध होना चाहिए। विरोध करना है, इसलिए विरोध करने का फैशन लंबे समय से चल रहा है। रोक का विरोध करना चाहिए या नहीं हमें इस पर विचार नहीं करना है। विचार इस पर करना है कि जिस आधार पर एनडीटीवी के खिलाफ कार्रवाई की गई है, वे क्या हैं। क्या जो गलती एनडीटीवी ने की थी, वो अन्य चैनलों ने नहीं की थी। अगर की थी तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई। सवाल एक चैनल का नहीं है, हमें एक जिम्मेदार संगठन के नाते मीडिया के हितों के बारे में सोचना है। सवाल किसी सरकारी रोक का विरोध करने या न करने का भी नहीं है। हमारे लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि मीडिया की गिरती साख कैसे बचे। मीडिया में काम करने वालों की हालत क्या है। आज एनडीटीवी पर रोक लगी तो वहां काम करने वाले सभी लोग एकजुट हो गए। जिन्हें विरोध करना होता है वे कर भी रहे हैं। हमारी भूमिका इस मामले में सबसे अलग होनी चाहिए। हमारी मांग है कि ऐसे मसलों पर एक स्वायत्त संस्था का गठन किया जाए। मीडिया पर रोक लगाने का फैसला सरकार नहीं, बल्कि ऐसी संस्था करे जिसमें मीडिय़ा. सरकार. जनप्रतिनिधि और पत्रकार संगठनों के लोग हों।

आखिर मे एक जानकारी भी आपसे के साथ बांट रहा हूं कि एनडीटीवी पर एक दिन की रोक के खिलाफ केंद्र सरकार और भाजपा के कुछ नेता ही बढ़ावा दे रहे हैं।

अब इस मुद्दे पर मिल कर बात करते हैं। 8 नवबंर, मंगलवार, दोपहर दो बजे एनयूजे कार्यालय.  अनुरोध है आप पधारें.

रासबिहारी (अध्यक्ष -एनयूजे)
(स्रोत: एनयूजे एफ बी पेज)