ये कैसी स्वर लहरी आई, किसने पायल छनकाई

प्रेम बिहारी मिश्र  
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यह कैसी स्वर लहरी आई, किसने पायल छनकाई
कल्पित से स्पर्श मात्र ने, मन को मद में चूर कर दिया
कौन कली यह मुस्काई,यह किसने ली मादक अंगड़ाई
सुरभित सी इक बयार ने, मदरित मन मयूर कर दिया
इठलाई इक स्वप्न परी, मदमाती मधुरित पवन चली
मुकुलित सी इक चितवन ने, मुझको मुझसे दूर कर दिया
एक विलक्षण जोत जलाई, किसने सूने मन मंदिर में
स्वप्नों को कर स्थापित, पूजा का दस्तूर कर दिया
मैंने चुन चुन अरमानों के, रंग बिरंगे पुष्प सजाए
झूमर झालर मनके मोती, डोली में सब नूर भर दिया
पर कैसी ये प्रीति परीक्षा, परिणिति जिसकी चिर प्रतीक्षा
कुछ अर्थ हीन प्रश्नों ने मेरा, सपना चकनाचूर कर दिया
घेर लिया जब कुटिल भँवर ने,तब कटुचक्र प्रकृति का जाना
निर्मल निश्छल गंगाजल भी, किसने निर्मम क्रूर कर दिया
पड़ा हुआ था जाने कब से, गीले गुमनाम अँधेरो में
किसके मधुमय अधर झुके, पत्थर कोहिनूर कर दिया
जिन गीतों के लिए जगत ने, अब तक इतनी कब्रें खोदीं
आज किसी ने उनको गाकर, पुजने पर मजबूर कर दिया