लोगों के दिलों पर राज करने वाला ही असली सिकन्दर कहलायेगा

एस.एस.डोगरा 
(ssdogra@journalist.com)

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम ने सबको चौंका डाला, राजनैतिक पंडित आप को हलके में ले रहे थे अरविन्द केजरीवाल की इसी पार्टी ने कुल 70 में से 28 सीटें जीतकर दिल्ली के राजनैतिक इतिहास पर झाड़ू फेर डाला. दिल्ली में कांग्रेस की जो गत बनी वह किसी से छुपी नहीं है मात्र 8 सीटों पर सिमट गए. मोदी की लहर में भाजपा को 32 सीटें तो मिली लेकिन पूर्ण बहुमत पाने में फिसल गई. जबकि इस बार भाजपा को दिल्ली के विधानसभा में सत्ता पर आसीन होने के संकेत दिख रहे थे परन्तु आप की आंधी ने सारे समीकरण को ठेंगा दिखाकर अपनी शख्सियत को साबित कर, एक बार तो दोनों ही बड़ी पार्टियों को हिला कर रख दिया.

दिल्ली के इतिहास पर नजर डाले तो १९५२ से १९५५ तक चौधरी ब्रह्म प्रकाश, १९५५ -56 तक श्री जी.एन. सिंह, १९५६ से १९९३ तक केंद्र शासित प्रदेश रहा है, फिर श्री मदन लाल खुराना ने १९९३-९६, डॉक्टर साहिब सिंह वर्मा ने १९९६-९८ तथा १९९८ में ही सुश्री सुषमा स्वराज के बाद सबसे लम्बे कार्यकाल १९९८ से दिसम्बर २०१३ तक श्रीमती शीला दीक्षित ने राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देश की राजधानी की गद्दी पर राज किया.

इन आकड़ों के मुताबिक दिल्ली की राजनीती में कांग्रेस का ही बोलबाला रहा है. जबकि पिछले लगभग पंद्रह वर्षों में शीला दीक्षित के राज में दिल्ली का काफी विकास भी हुआ जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है. दिल्ली में मेट्रो की भले ही भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर साहिब सिंह वर्मा ने नींव रखी हो लेकिन उसे साकार करने में शीला जी का विशेष योगदान रहा. दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर व् रिजल्ट की बात करें तो कांग्रेस सरकार ने कई महत्तवपूर्ण कदम उठाए. प्रोफेसर किरण वालिया ने शिक्षा के आलावा, स्कूलों में खेल कूद व् सांस्कृतिक गतिविधयों को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दिल्ली में सी एन जी लागू कर, दिल्ली को प्रदुषण मुक्त रखने के लिए साहसिक प्रयास किया. राजधानी में फ्लाई ओवर, लाडली योजना, मिड डे मिल योजना, भागीदारी योजना, विधवाओं व् वरिष्ठों के लिए लाभकारी योजनाएं उनकी कारगुजारी की कहानी खुद ही बयाँ कर देते हैं. इसके आलावा 3 से 14 अक्तूबर २०१० में राष्ट्रमंडल खेलों में 71 देशों के भागीदारी के लिए अंतरार्ष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता कराना एक बड़ी उपलब्धि है. भारत ने पहली बार मेडलों का शतक लगाकर खेल जगत में अनोखी पहचान बनाने का मौका भुनाया.गौरतलब है कि १९८२ के एशियाड आयोजन के लगभग तीन दशकों बाद किसी भारत की राजधानी दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय खेलों के सफलतापूर्वक आयोजन करने का सुअवसर मिला.

लेकिन प्रश्न उठता है कि तमाम उपलब्धियां अर्जित करने के बाबजूद भी इस बार कांग्रेस के हाथों से सत्ता भला क्यूँ छिनी. दिल्ली शहर में पूरे देश के विभिन्न प्रान्तों के लोग निवास करते हैं, इसे मिन्नी भारत की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. यहाँ शहर में शिक्षित, सजग, जागरूक, समझदार लोगों की कमी नहीं हैं. परन्तु केंद्र में यूपीए सरकार की निष्क्रियता, विफलता, घोटालों, महंगाई, भ्रष्टाचार, अहम् मुद्दों पर उदासीनता, सुरक्षा माहौल कायम में नाकाम, विशेषकर पडोसी देशों के समक्ष डरपोक रवैये से जनता में आक्रोश, बोरियत के कारण बदलाव की भावना ने जन्म लिया और दिल्ली के विधानसभा में कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया.

कांग्रेस की चुनावी योजनाओं, टिकट बंटवारे में भाई भतीजावाद व बंदरबाट से भी रुष्ट कार्यकर्ताओं की नारजगी व् आपसी गुटबाजी ने भी पार्टी को काफी नुकसान पहुँचाया.

यहाँ मुख्यमंत्री तक को मात मिली, वहीँ वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता डॉक्टर योगानंद शास्त्री, चौधरी प्रेम सिंह, प्रोफेसर किरण वालिया, मुकेश शर्मा, राजकुमार चौहान, डॉक्टर ऐ.के.वालिया जैसों को भी हार का मुहं देखना पड़ा. शायद मतदाता इस बार बदलाव को तलाश रहे थे उस बदलाव के लिए मोदी फेक्टर तो चला पर कहीं ना कहीं झाड़ू की टेक्नोलोजी के आगे भाजपाई अपेक्षा से अधिक भरोशे के कारण पूर्ण बहुमत हासिल करने में नाकामयाब रहे. भले ही इस दिल्ली के विधानसभा चुनाव के लिए कोई कुछ भी दोषारोपण करे लेकिन एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि जितने प्रभावशाली ढंग व् योजनाबद्ध तरीके से आप ने प्रचार-प्रसार किया उससे कांग्रेस व् भाजपा को बहुत कुछ सीखना होगा. इन दोनों पार्टियों के नेता परम्परागत ढंग से प्रचार-प्रसार तौर तरीकों के ढर्रे पर चुनाव को जितने के सपने साकार करना चाहते थे.

पिछले लगभग पांच वर्षों से वेब साईट, ईमेल, एस एम एस, फेसबुक, ट्विटर जैसे माध्यम का खूब प्रयोग किया जा रहा है. इससे पहले इन अत्याधुनिक चुनाव प्रचार प्रणाली का प्रयोग पहले कभी हुआ ही नहीं.लेकिन इस बार युवाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रभावित करने में आप को अत्याधिक लाभ मिला. कुछ कसर लोगों की भावनाओं ने पूरी कर डाली, लोग उब चुके हैं वे बदलाव पसंद करते हैं कुछ नया आजमाना चाहते हैं.

दिल्ली के आलावा चार अन्य विधानसभा चुनावों ने फिर से सत्ता का खेल तथा राजनैतिक हलचल को सुर्ख़ियों में ला खड़ा कर दिया है. आज मीडिया में इन्ही सरगर्मियों को लेकर शरद ऋतु में भी माहौल को गर्माया हुआ है. देश में सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी हो या विपक्ष के आसितत्व में एकमात्र भारतीय जनता पार्टी विशेष रूप से प्रचार प्रसार तथा जन-जन तक पहुँचने में रात-दिन एक कर अपनी जीत की नींव को पक्की करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि मार्च,२०१४ में लोकसभा का आम चुनाव भी होना है उसी को ध्यान में रखते हुए ये विधानसभा चुनाव एक पूर्वाभ्यास के रूप में लिया जा रहा है. हालांकि इस बार चुनाव आयोग द्वारा आचार सहिंता लागू किए जाने के कारण, प्रतेयक राजनैतिक पार्टी व् पार्टी से जुड़े उम्मीदवार व् समर्थक को प्रचार प्रसार व् चुनावी खर्चों में मजबूरन कई पूर्व सावधानी बरतने पड रही हैं. ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए विशेष लाभ लेने में किसी से पीछे नहीं रहने चाहते हैं.

ये तो शुभ संकेत है लेकिन अब देखना ये होगा कि ये खास दिखने वाले वास्तव में कुछ कारगर साबित हो पाएंगे. क्योंकि हमें ये भी सोचना होगा कि आप में भी कितने ही उम्मीदवार भाजपा व् कांग्रेस पार्टी से टिकट न मिलने के कारण शामिल हुए. इस भेड़ चाल में लोगों का रोष तथा नए बदलाव की सोच से ही आप को लाभ मिल रहा है. आज एक गली का बच्चा भी यही कह रहा है कि मुझे भी आप द्वारा मौका मिल जाता तो मैं भी जीत जाता.

परन्तु नेता किसी भी पार्टी का हो वह लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए कितना कारगार है और लोगों से जन संपर्क बनाए रखने में कितना व्यवहार कुशल है उसकी सफलता में जरूरी पात्रता का प्रतीक है.एक कहावत है कि यदि किसी व्यक्ति की प्रतिभा को आजमाना है तो उसे जिम्मेदारी सौंप दे. उसके असली व्यक्तितत्व का पता तभी चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने में कामयाब होता है

दिल्ली की गद्दी पर डॉक्टर हर्षवर्धन अथवा अरविन्द केजरीवाल में से किसकी ताजपोशी होगी यह तो आने वाला समय बताएगा परन्तु लोगों के दिलों पर राज करने वाला ही असली सिकन्दर कहलायेगा.