पिछले 7-8 वर्षों से ऐसा अनुभव हो रहा है कि लगभग 85-90 प्रतिशत लोग शासन / प्रशासन से बहुत परेशान हैं, और इसके कारण एक नहीं, अनेक हैं – मसलन – नौजवानों के लिए रोज़गार के साधन तो जैसे सूख ही गए हैं, महँगाई उछल २ कर बढ़ती ही जा रही है, किसानों और खेत खलियाण में काम करने वाले मजदूरों की समस्याएँ, पेट्रोल, डीज़ल और रसोई की गैस के दामों में तो जैसे आग ही लगी हुई है, भले ही अंतरराष्ट्रीय सत्तर पर ऐसी बढ़ती कीमतों वाली कोई बात नहीं है ! जबसे इस सरकार ने अपनी दूसरी पारी शुरू की है, एक के बाद एक सरकारी कम्पनियाँ बेचने में ही लगी हुई है, कितने सारे बड़े २ व्यवसाई लोग बैंकों से हज़ारों करोड़ के घोटाले करके विदेशों में भागकर छुप गए हैं जिसकी वजह से बैंकों की वित्तीय सेहत ख़राब हो चुकी है, और इस सबका खामियाज़ा सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को ही भुगतना पड़ रहा है और आने वाले समय में इसके परिणाम और भी भयंकर होने वाले हैं ! आम जनता जनार्दन के लिए सुख सुविधाओं की बात करें (टूटी फूटी सड़कें, अस्पताल, सड़कों पर रौशनी का प्रबंध करना, स्कूल कॉलेज, पीने लायक स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाना, आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए कॉलेजों में उनकी बनती सीटों पर दाखला देना, ख़ास तौर पे प्रोफेशनल शिक्षा के क्षेत्र में, और सरकारी शिक्षा संस्थाओं / कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों की नियुक्तियाँ संविधान में किये गए प्रावधान के सत्तर के बहुत कम संख्या में होती हैं, इत्यादि – सबका लगभग बुरा हाल ही चल रहा है ! आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए जो संविधान की विभिन्न धाराओं के अधीन वजीफ़े का प्रावधान है, और कभी २ किसी ना किसी राज्य के बारे में समाचार मिलते ही रहते हैं कि उन विद्यार्थियों को वजीफ़ा मिलता ही नहीं है? उनके हिस्से की धन राशि अन्य सरकारी परियोजनाओं पर ही खर्च कर दी जाती है ! इन सबके बारे में अगर कहीं कोई शिकायत भी करता है तो उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती ! नागरिकों को मिलने वाली इन तमाम प्रकार की सुविधाओं के लिए आख़िर जिम्मेवार कौन है, ज़ाहिर है – सत्ता की कुर्सियों पर बिराजमान नेतालोग और बड़े २ अधिकारी, जोकि अपने बनते फर्ज़ की अवेहलना करते नज़र आ रहे हैं ! वैसे इसमें थोड़ा दोष हमारा भी है, क्योंकि जितनी मेहनत हम लोग किसी रेहड़ी वाले से आलू, प्याज, टमाटर, हरी मिर्च या फ़िर धनियाँ इत्यादि चुनने और खरीदने में लगाते हैं और उस सब्जी वाले से मोल भाव करते हैं, अगर हम इससे आधी मेहनत भी अपने चुनाव क्षेत्र के नेता चुनने में लगाएं , चुनाव लड़ने वाले सभी नेताओं / प्रत्याशिओं के बारे में जानकारी हासिल करें, उनकी पुरानी कारगुजारियों की ध्यान से जाँच पड़ताल करें, उनका निरीक्षण करें, अदालतों में चल रहे उन पर मुकदमों के बारे में थोड़ा संजीदा होकर गंभीरता से थोड़ा सोच विचार कर लें, और यह कुच्छ करने के बाद ही विवेकशीलता से यह फैसला करें कि हमें अपना कीमती वोट किसको देना चाहिए, चुनाव क्षेत्र में खड़े सभी नेताओं में से अच्छा पढ़ा लिखा उत्तम कौन सा प्रत्याशी रहेगा, कौन है जो नागरिकों की अनेक समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहता है, यह सब कुच्छ तय करने के बाद ही हम अपना बेशकीमती वोट डालना सुनिश्चित करें, और लाज़मी तौर पे कम से कम 85-90 तक प्रतिशत वोट डालें, तो हमारे देश में मौजूदा प्रचलित लोकतंत्र प्रणाली में बहुत हद तक सफ़ाई और सुधार हो सकता है ! आम नागरिकों को मिलने वाली अनेक प्रकार की सुख / सहूलतें और सुविधाएं कॉफ़ी हद तक बेहतर हो सकती हैं और हमारे गाँवों २ और शहर २ में प्रस्थितियाँ बदल / सुधर सकती हैं !
एक और बात – पिछले चार पाँच चुनाव के दौरान जब वोट डालने जाने के लिए अपने आस पास के 10-12 लोगों को कहा कि चलो वोट डालने चलते हैं, लेकिन लगभग सब ने ही एक जैसा ही जवाब दिया – “छोडो यार ! क्या करना है / इतनी गर्मी है / वहाँ जाकर हमें क्या मिलेगा ? हमारा कौन सा कोई रिश्तेदार चुनाव लड़ रहा है ? वगैराह २” ! सबने लगभग ऐसी ही प्रतिक्रिया देकर वोट डालने जाने से पीछा छुड़वा लिया , हालाँकि पोलिंग सेंटर हमारी कॉलोनी से केवल एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर था ! इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे चुनाव क्षेत्र में अक्सर पोलिंग कम ही होती है , इसके बाद नागरिकों को मिलने वाली सुख सुविधायों / सहूलतों – जैसे कि पीने का साफ़ सुथरा पानी , बिजली , टूटी फूटी सड़कों की मुरम्मत, बच्चों को अच्छी व वाजिव कीमत पर शिक्षा प्रदान करने की सुविधा उपलब्ध करवाना, जगह 2 लगी हुई स्ट्रीट लाइट्स, पार्कों में घास लगाना, समय २ पर पानी देना, बच्चों के लिए झूले, पेड़ पौदे के लिए पानी की सुविधा उपलब्ध करवाना, कम्युनिटी सेन्टर, डिस्पेंसरी, पाठशालाएँ , नागरिकों की सुरक्षा (खास तौर पर महिला वर्ग के लिए), मार्किट इत्यादि, और सड़कों की सफ़ाई और गलिओं से कूड़ा कचरा उठाना , वगैराह २ – न जाने कितने ही काम होते हैं, सभी कामों के न होने पर बाकी लोगों को , जोकि अपने वोट डालने के अधिकार का उपयोग करने के लिए एक दो किलोमीटर चलने का भी कष्ट नहीं उठा पाते, उन लोगों को बाद में शिकायतें करने या फ़िर चुने गए नेताओं को गाली देने का भी कोई अधिकार नहीं रह जाता, क्योंकि जैसे वोटर अपने वोट डालने की जिम्मेदारी से कतराते रह गए हैं , इसके प्रति लापरवाही से काम लेते हैं, बिलकुल इसी प्रकार चुनाव जीतने के बाद नेता लोग भी अपने फ़र्ज़ के प्रति उदासीन / असंवेंदनशील हो जाते हैं, लोगों की जरूरतों की उन्हें भी कोई चिन्ता / सुचेतता और संवेदना नहीं रहती है ! इस मामले में दोनों में कोई ख़ास अंतर नहीं है ! न जाने लोग क्यों और कैसे भूल जाते हैं कि वोट डालना एक ऐसा अधिकार है जोकि हमें बड़ी मुश्किल से मिला है, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी ने इसके लिए बहुत संघर्ष किये हैं, निरंतर लड़ाईआं लड़ी हैं ! और यह हमारी एक लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी भी बनती है, और हमारा एक बेहद जरुरी फर्ज़ भी है और इसे हमने ही निभाना है !
कृपया याद रखें – एक बहुत बड़े लेखक, राजनैतिक चिन्तक व विश्लेशिक ( टॉमस जेफ़रसन ) ने बहुत वर्ष पहले लोकतंत्र की सफ़लता के बारे में एक बहुत ही सटीक बात कही थी – “हमारी निरन्तर सजगता ही लोकतंतर की सफ़लता की गारन्टी है ! जैसे ही मतदाताओं की तरफ़ से इसके प्रति सजगता घटी, समझो नेताओं की तरफ़ से आपके बनते अधिकारों और सुख सुविधाओं की भी दुर्घटना घटी !” यहाँ समझदारी से वोट डालने में हमने अपने फ़र्ज़ के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही बरती, वहीं पर नेताओं ने पूरे देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारियाँ भी भूल जानी हैं और देश को लूटना शुरू कर देना कर देना है, सरकारी कागज़ों में आम जनता जनार्दन के लिए हज़ारों योजनाएँ बनेंगी तो जरूर, लेकिन वह पूरी होकर उनका लाभ देश के नागरिकों को हासिल हो सके, यह सम्भव नहीं हो पाता, बल्कि ऐसी योजनाओं के नाम पर बड़े २ घोटाले होते रहते हैं और आम जनता केवल हाथ ही मलती रह जाती है ! बाद में वहाँ की जनता चाहे कितना भी रोती कुरलाती या शोर मचाती रहे ! क्योंकि हमारे देश में चुनाव हो जाने बाद अगर ऐसा पता चले कि जिस नेता को लोगों इतने भारी मतदान से जिताया है, और वह नेता बाद में जनता की कोई खबर सार तो लेता ही नहीं , तो ऐसे नेता को वापिस बुलाने का अधिकार तो देश की जनता के पास है ही नहीं ! दूसरी बात, सोई हुई जनता को लूटना और खुले पड़े ख़ज़ाने में सेँध लगाना तो बहुत ही सरल काम होता है ! अब यह फ़ैसला भी आपने ही करना है कि निरन्तर सजग और सचेत रहकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी है और अपनी बनने वाली सुख / सुविधाएँ / सहूलतें प्राप्त करनी हैं या फ़िर पल दो पल या फ़िर हफ्ते दस दिन के सुख की ख़ातिर (जैसे कि कुच्छ लोग चुनाव के दिनों में दारु की एक दो बोतल लेकर / एक साड़ी या फिर कम्बल लेकर / महिलाएँ प्रेशर कूकर या फिर जवान लोग मोबाइल लेकर किसी गलत नेता को वोट डाल देते हैं, और बाद में पाँच वर्ष तक अपनी किस्मत को / अपने समाज को और अपने देश को भी कोसते रहते हैं ) ! लोगों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि वोट लेने की खातिर जो नेता या पार्टी आपको ऐसे प्रलोभन दे रहे हैं, दरअसल वह आपको रिश्वत देकर यह कह रहे है हैं कि आप उनकी पिछली अवधि की ग़लत किस्म की कारगुजारियों / प्रदर्शन को भूल जाएँ । अब आप ही बताएँ , क्या रिश्वत लेना और देना सही काम है? यह रिश्वत देने वाले ही जीतने के बाद बड़े २ घोटाले करते हैं और जनता अपने को मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाती है। क्या ऐसे होगा देश और समाज का विकास ? चुनाव प्रचार के दौरान जो नेता / पार्टी आपको ऐसे प्रलोभन देकर वोट खरीदने की कोशिश करते हैं, उनको साफ लफ़्ज़ों में बोल देना चाहिए – “भाई ! यह सब वस्तुएं हम अपने खुद ही खरीद लेंगे, आप बस हमारे बच्चों को नौकरी दे दो, समाज के लिए बाकी नागरिक सुविधाएं उपलब्ध करवा दो, अपने घर के लिए यह वस्तुएं हम खुद ही ख़रीद लेंगे ! जागो इंडिया, जागो ! अपना फ़र्ज़ पहचानो और अच्छी तरह सोच विचार करके ही, सजग रहते हुए अपने वोट के अधिकार का प्रयोग करो, ना कि आलसी बनके अपनी ही धुन में पड़े रहो ! आपका और आपके बच्चों का भविष्य काफ़ी हद तक आपके अपने हाथ में ही है ! जिस दिन आप यह छोटी २ बातें समझ जाओगे , उस दिन से आपकी ज़िन्दगी में सुधार आना शुरू जायेगा ! और फ़िर, हमारे यहाँ तो वोट डालने के लिए पूरी छुट्टी भी तो मिलती है ? तो वोट डालने से कतराते क्यों हो ? और अपनी वोट का सही 2 इस्तेमाल क्यों नहीं करते ?
एक और खास बात बतानी भी यहाँ पर अत्यन्त आवश्यक हो जाती है – वो यह कि एक टीवी चैनल की रिपोर्ट की अनुसार कुच्छ राज्यों का भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रति करोड़ों के कर्जे हैं । माना कि सरकार को / हमारे नेताओं को प्रदेश की जनता के कल्याण के लिए अनेक सरकारी योजनाएँ बनानी होती हैं और उन्हें लागू करने लिए बड़ी 2 धन राशि की आवश्यकता पड़ती रहती है, जिसके लिए कभी २ आरबीआई से करोडों रूपये का कर्जा भी लेना पड़ जाता है । लेकिन इतने लाखों रूपये के कर्जे के बावजूद भी उस प्रदेश की वह सरकारी योजनाएँ पूरी क्यों नहीं होतीं ? प्रदेश की जनता के लिए कोई ढंग के कल्याणकारी कामकाज ना हुए हों , प्रदेश के पढ़े लिखे नौजवान भी नौकरियों के लिए मारे 2 फ़िरते हों, महँगाई से जनता खासी परेशान रहती हो, नवम्बर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद तो करोड़ों लोगों की माली हालत कितनी पतली हो गई है, तो मामला कुच्छ जरुरत से कहीं ज़्यादा ही गंभीर होता है ! बड़े 2 कर्जों की वह धन राशि आख़िर जाती कहाँ हैं ? इसका मतलब यह निकलता है कि उस प्रदेश की सरकार चलाने वाले नेता लोग या तो अपने काम में सक्षम नहीं है और या फ़िर उनके काम करने के तरीके ग़लत हैं, और उनकी नियत में कोई गहरी खोट है । हर तरफ़ से जनता का मंदा हाल, जरा सोचो ! आम जनता बेहाल और नेता मालामाल, क्यों और कैसे ? ज़रा ठंडे दिमाग़ से और गंभीरता से सोचने और समझने की जरुरत है । अपने ही प्रदेश की जनता से वसूले गए अनेक प्रकार के करों पर ऐश-प्रस्ति करने वाले नेता लोग सरकारी ख़जाने से इतनी सुख सुविधाएँ कैसे भोग लेते हैं ? इनकी इतनी मोटी और असंवेदनशील सोच विचार कैसे बन जाती है ? प्रत्त्येक पार्टी के अनेकों नेताओं में पार्टी की टिकट के लिए इतनी मारा मारी यही सत्ता प्राप्त करने और इसकी वजह से मिलने वाली अनेक प्रकार की सुख सुविधाएँ भोगने के लिए ही और करोड़ों रूपये हथियाने के लिए ही तो होड़ लगी रहती है, ना कि देश जनता की भलाई के लिए ?
इसलिए मेरा मानना है कि ऐसे नेताओं की नीयत में खोट है और सरकारी कामकाज के सिलसिले में थोड़ा परिवर्तन करके एक ऐसा प्रावधान भी बनाना चाहिए कि अगर किसी छोटे राज्य / प्रदेश पर आरबीआई का एक सीमा से अधिक कर्जा है तो उस प्रदेश के सभी सांसदों / मंत्रियों और एमएलए और काउंसिलरों को उपलब्ध होने वाली तनखाह, उनको दिए जाने वाले सभी सुख सहूलतें और भतों में तब तक 50% की कटौती जारी रहनी चाहिए, जब तक उस प्रदेश का कर्जा प्रबंधनीय सीमा के भीतर ना आ जाये । प्रदेश को इतने बड़े २ कर्जे में डुबोकर जाने वाले मंत्रियों पर क़ानूनी कार्यवाही भी होनी चाहिए। दूसरी बात – जिन जिन प्रदेशों में आने वाले महीनों में चुनाव होने वाले हैं, और अगर वहाँ की किसी सरकार पर इस सीमा से ज़्यादा कर्जा है, जो वहाँ की जनता को चाहिए कि वहाँ ऐसे नेताओं को अपने वोट के अधिकार से बदल डालें , क्योंकि ऐसे नेता सरकार चलाने में हरगिज काबिल नहीं हैं , बल्कि यह लोग केवल और केवल वहाँ की जनता के ऊपर एक बोझ हैं । अभी भी समय है, जागो ! इंडिया , जागो । अगर समय रहते उन प्रदेशों के वोटर नहीं सम्भले और उन्होंने अच्छी तरह सोच विचार करके अपना कीमती वोट नहीं डाला, तो अगले पाँच वर्ष के लिए आपको फ़िर से पछताने के इलावा कुच्छ भी हासिल नहीं होगा ! तीसरी बात, जो नेता लोग धर्म के नाम पर, जात बरादरी के नाम पर, मन्दिर-मस्जिद के नाम पर, गौय रक्षा के नाम पर या फ़िर दारू की बोतलें बाँट कर, महिलायों को सूट – साड़ियाँ या फिर प्रेशर कुकर देकर वोट के लिए जोर देते हैं, ऐसे नेताओं से आप लोग जितना दूर रहोगे उतना ही आपके लिए और आपके प्रदेश के चौतरफ़ा विकास, सुख समृद्धि के लिए अच्छा होगा । इन सब वस्तुओं का लालच देकर वोट मांगने वालों से जनता को कहना चाहिए कि हमें भीख़ नहीं चाहिए , बल्कि हमारे बच्चों को वाजिव फीस पर अच्छी शिक्षा चाहिए, नौकरियाँ ही चाहिए , नौकरी मिल जाये तो यह सब सुख देने वाले भौतिक पदार्थ हम खुद ही ख़रीद लेंगे ।
एक और बात – ना जाने कितने ऐसे नेता लोग चुनाव लड़ रहे हैं जिन पर क़त्ल, फिरौती माँगने, बलात्कार, ठगियों / घोटाले और तरह 2 की हिंसात्मिक गतिविधियोँ में सम्लित होने और करवाने के मुकदमें अदालतों में चल रहे हैं ? क्या ऐसे लोगों का राजनीति में आना और सत्ता सुख भोगना हमारे समाज के लिए अच्छा साबित हो सकता है ? बिलकुल भी नहीं ! बाकी फ़ैसला आपके अपने हाथ में है , कि आप अपना विकास चाहते हो या गिरावट ? जो लोग समय रहते अपनी सोच और कर्म नहीं बदलेंगे , उनको बाद में बहुत पछताना पड़ेगा !!!
आर.डी. भारद्वाज “नूरपुरी “