सुरेन्द्र सिंह डोगरा
क्या आपको मालूम है आज राष्ट्रीय खेल दिवस है। जी हाँ, आज ही के दिन 29 अगस्त 1905 को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी का जन्म उत्तर प्रदेश की पवित्र स्थली इलाहाबाद में हुआ था। इस महान खिलाड़ी ने 1928, 1932 व 1936 के ओलिम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए लगातार तीन बार स्वर्ण पदक जिताने में प्रमुख भूमिका अदा की। गौरतलब है कि उन्होने 1928 से 1946 के अपने खेल केरियर में अपनी हॉकी की जादूगरी दिखाते हुए 1000 से भी अधिक गोल दागे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आज तक कोई भारतीय खिलाड़ी इतने लंबे समय तक नहीं खेल पाया है। हालांकि सचिन उनका पीछे करने में अन्य खिलाड़ियों में सबसे आगे हैं।
आज ही के दिन इस महान खिलाड़ी को श्रद्धांजलीपूर्वक प्रतेयक वर्ष कुछ चुनिन्दा उम्दा खिलाड़ियों को महामहिम भारत के राष्ट्रपति द्वारा “राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन अवार्ड, द्रोणाचार्य पुरस्कार से सममाननीत किया जाता है। इंगलेंड की राजधानी लंदन में एक स्टेशन का नाम उन्ही को समर्पित है। उनके बारे क्रिकेट के सर्वकालीन आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज सर ब्रेडमेन का कहना था कि वे हॉकी में ऐसे गोल करते हैं जैसे कि क्रिकेट में रन बनाने के समान। बर्लिन ओलिम्पिक के दौरान उनके खेल कौशल से प्रभावित होकर विश्वविख्यात शासक हिटलर ने उन्हे जर्मनी की नागरिकता व कर्नल पद को गौरवपूर्ण रूप से देने का आग्रह किया। परंतु भारत के इस महान सपूत ने अपने देश का मान रखते हुए हिटलर की पेशकश को ठुकरा दिया। लेकिन उनके देश के प्रति समर्पण व उम्दा खेल कौशल के बावजूद भी भारत सरकार व खेल मंत्रालय उन्हे भारत रत्न से सम्मान्नित करने र्म शर्म महसूस करती है।
आज सुबह उनके सुपुत्र श्री अशोक ध्यानचंद से बातचीत हुई तो उनका यही संदेश था कि आज पूरे देश में उनके जन्मोत्सव को इतने सम्मान से मनाया जाता है, यह समस्त खेल प्रेमियों के लिए गर्व का विषय है। खुद अशोक जी अपने को बड़ा सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हे ऐसे महान खिलाड़ी का सुपुत्र होने के साथ-साथ हॉकी के लिए 1975 में हॉकी का विश्व खिताब जीतने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । घर में बाबू जी के नाम से मशहूर ध्यानचंद जी के पोते गौरव भी हॉकी प्रतिभाओं को आगे लाने में देश-विदेशों में हॉकी अकादमी चलाने में प्रयासरत है। उन्होने मुझे व्यक्तिगत रूप से कुछ बाबूजी के विलक्षण छायाचित्र भेजें है। शायद आज के दिन हमें ऐसे महान सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी प्रेरणा से कुछ युवाओं को खेलों में प्रोतोसाहन देने के लिए अथक प्रयास करने चाहिए।
भले ही वे 3 दिसंबर 1979 को स्वर्ग वासी हो गए परंतु आज भी हर गली,मोहल्ले, खेल के मैदानों में इस हॉकी के जादूगर का नाम अजर व अमर है।