कैसा शिष्य है रे तू ?
-श्रीया कात्याल
तुमने किया वो जो उन्होंने तुम्हे सिखाया,
क्या है अच्छा, क्या बुरा, सारा ज्ञान उनसे ही तो आया,
फिर आखिर कैसे और आखिर क्यों
जहाँ से ज्ञान पाया,
वहीं का साथ ना निभाया?
कैसा शिष्य है रे तू
जो अपने गुरु के काम ना आया !
उसी मे छेद कर डाला,
जिस थाली मे खाया!
कैसा शिष्य है रे तू ,
जिसने अपने गुरु का साथ ना निभाया!
याद रखना की ज्ञान खरीदा नही जाता,
ये तो बस गुरु का आदर कर है आता !
जो गुरुआ दा अपने मान रखदे,
वो ही हैं कुछ महान कर सकते!
तो अगर आगे बढ़ना चाहते हो ज़िन्दगी की डगर मे,
तो ज्ञान दाताओं का मान करना सीखो,
थोड़ा झुकना सीखो,
क्योंकि झुकता वहीं है जिसमे जान होती है ,
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है !
जितना तुम झुकोगे,
सच्चे गुरु तुम्हे उतना उपर उठायेंगे,
तुम्हे तुम्हारी मंज़िलों तक ज़रूर पहुँचायेंगे!