ग़ज़ल
लुत्फ़ -ए – दुन्या -दारी हैसब को यह बीमारी है
शहरों में बमबारी है अम्न की ख़िदमत जारी है
ख़ामोशी है दरवाज़ों पर अंदर आह – ओ -ज़ारी है
जोश हुआ ठंडा यारों का बस लैहजा तातारी है
प्यार,मोहब्बत,अहद -ओ-वफ़ा सब कुछ कारोबारी है
शमा-ए -मोहब्बत रौशन हो सब की ज़िम्मेदारी है
दिल आइना रख अपना,रईस सब की सूरत प्यारी है
ग़ज़ल
ज़हन का पर्दा खोला जाय सोच समझ कर बोला जाए
इस धरती के बारे मेंबारीकी से सोचा जाए
रिश्तों के कोहराम में सब किसका रिश्ता परखा जाए
इज़्ज़त, दौलत , ख़ुद्दारी सच कहने में क्या क्या जाए
काश मेरे लहजे की , रईस ख़ुश्बू सब को भा जाए
रईस सिद्दीक़ी
पूर्व भा.प्र.से, केंद्र निदेशक आकाशवाणी भोपाल