वर्तमान समय में ‘पृथ्वी’ नामक इस ग्रह को अति कठिन परिस्थितियों के बीच से गुजरना पड़ रहा है।पर्वत-पहाड़,नद-नदी-सरोवर-समुद्र, घास-वन, पेड़-पौधा,जीव-जनजन्तु, सांप-सरीसृप, कीट-पतंग सभी अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। इन सभी में से ‘मानव’ नामक यह प्राणी कुछ ज्यादा ही अपने अस्तित्व के संकट से भयभीत हो रहा है। ‘धारित्री’ नामक इस सुन्दर ग्रह के सामने जो संकट खड़ा हो गया है उसके लिए मानव ही मुख्यतः जिम्मेदार है।भूख-प्यास मिटाना और वंश विस्तार के प्रयोजन को छोड़कर इन प्राणियों को दूसरा और ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। इसलिए उन प्राणियों ने प्रकृति को नहीं बिगाड़ा।
किंतु मानव जाति ने अपनी श्रैष्ठता प्रतिपन्न करके सभी भोग्य पदार्थों को अपनी सम्पदा मानकर अपना लोभ और आवश्यकता बढ़ाते ही गया! प्रकृति माता का शासन-शोषण और बेतहाशा दोहन करने लगा। इसके लिए परस्पर प्रतियोगिताएं चलती रहीं! प्रकृति के साथ तो प्रतियोगिता चलती रही है, मानव ने मानव के साथ भी घोर और निष्ठुर प्रतियोगिता आरम्भ कर दी।इसीलिए युध्द हुआ, महायुध्द हुआ, शीत युध्द हुआ और मारात्मक अस्त्रों का होड़ चल पड़ा। इस प्रवृत्ति का ही एक नग्न रूप कोरोना वायरस के रूप में आकर समस्त मानव समाज को ही त्राहि-त्राहि करने के लिए बाध्य किया है।
विज्ञान व तकनीकी विद्या के बल से खुद को श्रेष्ठ प्रतिपादित करने वाले तथाकथित उन्नत देशों को भी कोरोना ने बख्शा नहीं बल्कि वहां मृत्यु का नंगा नृत्य ज्यादा ही भयावह हो रहा है।अब कोई नहीं कह पा रहा है कि निकट व दूर भविष्य में मानव जाति का क्या होगा? अब हमें सभी बातों और व्यवहारों में पहले से अधिक गम्भीर,जिम्मेदार व संयमी होकर आगे बढ़ना पड़ेगा।सारी दुनिया एक है — सबको मिलकर सहयोग करने से ही इस हादसे के द्वारा और नुकसान न पहुंचाते हुए परास्त करना पड़ेगा। यहां जाति,धर्म ,देश,सम्प्रदाय का प्रश्न आएगा ही नहीं। देश की सरकारें, विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैज्ञानिकों को सभी भेदभाव छोड़कर मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाना होगा।
अब दलगत राजनीति का समय नहीं है। सभी धर्म महान् हैं। सभी हमारे वैज्ञानिक महान् व उपकारी हैं, सभी चिकित्सक हमारे रक्षक हैं, सभी सैनिक मानव जाति के सजग प्रहरी हैं! सभी धर्मों का सार तो मानव प्रेम,जीव दया और प्रकृति संरक्षण ही है जो आज के परिवेश में अत्यधिक प्रासंगिक है! हमारे सभी धर्मगुरु आदरणीय एवं वन्दनीय हैं। उनलोगों के अनुयायी भी अनेक-असंख्य हैं! इसलिए इन धर्म गुरुओं का दायित्व भी बहुत ज्यादा है! उन लोगों को धर्म की दुहाई देते हुए अन्ध-विश्वास और अन्ध-परम्परा का प्रचार न करते हुए सिर्फ मानव-प्रेम, जीव-दया, विश्व-शांति और धारित्री के संरक्षण की ही बातें करनी चाहिएं।अनुयायियों को यह सिखाना चाहिए कि आध्यात्मिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टि-भंगी से ही उन लोगों को मदद मिलेगी। ‘ सर्व धर्म समभाव ‘ , ‘ सध्दर्म मम भाव ‘ को अपने जीवन में चरितार्थ करके , शिष्यों को यही उपदेश दे करके मानव जाति और पृथ्वी को बचायें एवं बचाने में सहयोग दें।