राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच) के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना द्वारा आयोजित ‘अमृत काल का सकारात्मक भारत-उदय’ श्रृंखला के 337वें कार्यक्रम में नवसंवत्सर,चैत्र नवरात्रि और ईद-उल-फितर और राजस्थान दिवस के उपलक्ष्य में सकारात्मक संवाद का आयोजन किया गया । इस अवसर पर मुख्य अतिथि राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी संगीता, और विशिष्ट अतिथि संस्कृत प्रज्ञ डा.बलदेवानंद सागर और उर्दू अकादमी के पूर्व सचिव अनिस आज़मी आदि ने संबोधन दिया। श्री मन्ना ने कहा कि 2 अप्रैल ऑटिज्म जागरूकता दिवस पर कार्यक्रम होगा। इसके साथ ही नये साल पर आरजेएस पीबीएच -पाॅजिटिव मीडिया द्वारा महीने में 25 दिन सकारात्मक संवाद प्रसारण का संकल्प लिया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के सह-आयोजक और माता रामरती देवी मंदिर कृषक प्रयोगशाला एवं कृषक पर्यटन स्थल कान्धरपुर गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश के संस्थापक राजेन्द्र सिंह कुशवाहा ने पूरे महीने की गतिविधियों का मासिक आरजेएस पीबीएच न्यूज़ लेटर का मार्च अंक प्रस्तुत किया।
उन्होंने सकारात्मक प्रयासों का दस्तावेजीकरण करने वाली एक आगामी पांचवीं पुस्तक “ग्रंथ 05″ और भविष्य के प्रयासों की जानकारी दी।श्री कुशवाहा ने कहा,”आरजेएस पीबीएच शांति,सकारात्मकता और विश्व-एकता फैलाने के लिए समर्पित एक आंदोलन है।”
ब्रह्मकुमारी संस्थान, कंकड़बाग, पटना की निदेशिका राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी संगीता ने नवरात्रि को शक्ति पूजा के लिए ‘पर्व’ (अनुष्ठानों वाला त्योहार) के रूप में समझाते हुए, महिषासुर और देवी दुर्गा की प्रतीकात्मक कहानी सुनाई, जो अहंकार जैसे नकारात्मक गुणों पर विजय का प्रतिनिधित्व करती है। राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी संगीता ने युग चक्रों का वर्णन किया, वर्तमान कलियुग (लौह युग) और आध्यात्मिक जागरण के माध्यम से सतयुग (स्वर्ण युग) में इसके संभावित परिवर्तन की व्याख्या की। उन्होंने कहा, “नवरात्रि भीतर देखने और अपने दिव्य गुणों को याद करने का समय है,” उन्होंने परिवारों में सकारात्मक संवाद पर जोर दिया।
आकाशवाणी, दिल्ली के पूर्व संस्कृत समाचार संपादक डॉ. बलदेवानंद सागर ने आंतरिक शांति और खुशी प्राप्त करने के लिए सकारात्मक सोच और आध्यात्मिक प्रथाओं के महत्व पर जोर दिया, जिसमें चार पुरुषार्थों – धर्म (धार्मिकता), अर्थ (धन), काम (इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति) – को मौलिक जीवन लक्ष्यों के रूप में चर्चा की गई। डॉ. सागर ने दृढ़ता से कहा, “हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत एक अच्छे और शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग है। उन्होंने नव संवत्सर की अवधारणा को भारत की छह ऋतुओं से जुड़े एक वर्ष के रूप में समझाया और इसकी उत्पत्ति राजा विक्रमादित्य से बताई। डॉ. सागर ने टिप्पणी की, “त्योहार आवश्यक हैं,इनके बिना जीवन नीरस हो जाता है।”
उर्दू अकादमी, दिल्ली के पूर्व सचिव अनीस आज़मी ने ईद-उल-फ़ितर के महत्व पर प्रकाश डाला, जो रमज़ान के बाद आता है, जो इस्लामी उपवास और आध्यात्मिक अनुशासन का महीना है। उन्होंने रमज़ान की कठोर उपवास प्रथाओं का वर्णन किया और ईद-उल-फ़ितर को शव्वाल का चाँद दिखने पर एक खुशी का उत्सव बताया। आज़मी ने ईद की परंपराओं, विशेष भोजन, ‘ईदगाह’ (प्रार्थना स्थल) और दान का विस्तार से वर्णन किया, प्रेमचंद की मार्मिक कहानी ‘ईदगाह’ का संदर्भ दिया। आज़मी ने जरूरतमंदों का समर्थन करने के लिए ईद से पहले दिए जाने वाले ‘ज़कात’ (दान) की परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस्लाम में ‘सभ्यता’ पर भी बात की और कहा “इस्लाम का संदेश शांति और सभी के लिए सम्मान है।” इस अवसर पर रति चौबे,स्वीटी पॉल,बिन्दा मन्ना ,सुदीप साहू,आकांक्षा, सोनू कुमार,मयंक आदि शामिल हुए।