देश का विकास केवल मोदी ही नहीं जनता का भी दायित्व है

योगेश मोहनजी गुप्ता
कुलपति-आईआईएमटी विश्वविद्यालय-मेरठ

भारत विगत 71 वर्षों से लगातार विकासशील देशों की श्रेणी में अग्रणी होने का प्रयास करता रहा है परन्तु अब तक विकसित नहीं हो पाया है। अब समय आ गया है, जब भारत विकसित देशों की अग्रिम सूची में गर्व से खड़ा हो सके। इसके लिए मोदी जी के सतत् प्रयास निश्चिततः प्रशंसनीय है, परन्तु इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतू जनता का भी दायित्व है कि देश के विकास में अपना पूर्णतया सहयोग प्रदान करें। सर्वप्रथम हम अपने भारत देश की जीडीपी की वृद्धि का आंकलन करें, जोकि अभी मात्र 7 प्रतिशत है, जिसमें 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए और यह कार्य कोई मुश्किल भी नहीं है। जीडीपी किसी भी देश कि अर्थव्यवस्था को समझने का सबसे सुगम तरीका है। जीडीपी का अर्थ होता है सकल घरेलू उत्पाद। यह एक आर्थिक संकेतक भी है, जो देश के कुल उत्पादन को मापता है। जीडीपी को हम दो प्रकार से मापते हैं, पहला, काॅन्सटेंट प्राइस, जिसके अन्तर्गत जीडीपी की दर व उत्पाद का मूल्य आधार वर्ष उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है। दूसरा, वर्तमान मूल्य दर। भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन प्रमुख घटक हैं, जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर निश्चित होती है। आर्थिक उत्पादन और विकास जीडीपी का प्रतिनिधित्व करता है। जीडीपी बढ़ने और घटने दोनों ही स्थिति में यह शेयर बाजार पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। नकारात्मक जीडीपी निर्धारित करता है कि देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है और ऐसे समय देश में उत्पादन घट जाता है, तत्पश्चात बेरोजगारी बढ़ती है, जिसके कारण हर व्यक्ति की वार्षिक आय प्रभावित होती है। भारत की वृद्धि दर वर्ष 2019 में बढ़कर 7.3 हो सकती है। इसमें तभी निरन्तर वृद्धि होगी, जब निजी निवेश और निजी खपत में सुधार लाया जाए। भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के दौरान महिलाओं के लिए रोजगार की कमी होना भी विकास का अवरोधक है।

यदि भारत की जनता मन में दृढ़ निश्चिय कर ले तो अपने देश का शीर्ष किसी भी देश के समक्ष झुकने नहीं देगी। आज शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की विकट समस्या है, जिसका कोई राजनीतिक समाधान नहीं है। रोजगार देना सरकार का दायित्व है, यह कहना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि रोजगार में सरकार का सहयोग तो हो सकता है, परन्तु यह कार्य केवल सरकार का नहीं है। इस समस्या का समाधान के लिए जनता का प्रयास भी आवश्यक है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और आज भी भारत की 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है। सम्पूर्ण भारत में नदियों में जल की भरपूर मात्रा ईश्वर प्रदत्त है। अनेक सरकारों ने कृषि के लिए नहरों और नदियों से जल की प्राप्ति के अनेकों प्रयास किए। हमार देश की मिट्टी सम्पूर्ण विश्व में उपजाऊ के साथ-साथ प्रोटीन और विटामिनों से युक्त है, परन्तु उसका सम्पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं किया जा रहा हैं। हमारे देश में प्रचुर मात्रा में फलों का उत्पादन होता है, परन्तु हम विदेशों से डिब्बाबन्द आम, लीची, आड़ू, अलूचा, अमरूद आदि आयात करते हैं। इन सभी फलों की प्रचुर मात्रा होने के कारण, हमारे गाँवों में भी डिब्बाबन्द फलों के प्लाण्ट, हमारे उद्योगपतियों को अतिशीघ्र लगाने चाहिए, ताकि हम इसका निर्यात कर सके। फ्रांस की वाइन विश्व में प्रसिद्ध हैं, जबकि वाइन बनाने का स्रोत अंगूर भारत में प्रचुर मात्रा में होता है। क्या ये संभव नहीं कि भारत की वाइन, फ्रांस की वाइन को अपनी गुणवत्ता से पीछे छोड़ दे। स्वीटज़रलैण्ड का पनीर विश्व में उत्तम माना जाता है, परन्तु हमारी गाय और भैंस का पनीर क्या किसी भी प्रकार से स्वीटज़रलैण्ड के पनीर की पौष्टिकता से कम है, परन्तु आज उसकी मार्केटिंग की अत्यन्त आवश्यकता है। विश्व के विभिन्न देशों के 5 स्टार होटलों में 10 ग्राम के पैक में विदेशी मक्खन मिलता है, जबकि हमारे देश में गाय, भैंस के दूध से निर्मित मक्खन किसी भी 5 या 7 स्टार होटलों में उपलब्ध मख्खन से कम नहीं है। परन्तु उसके लिए भी मार्केंटिंग की आवश्यकता है। यदि हमारे देश की सरकार और जनता जागरूक हो जाए तो हमारे देश के किसान को, किसी से भी सहायता की भीख नहीं माँगनी पड़ेगी। भारतीय किसान इतना अधिक सुदृढ़ हो जाएगा कि वह देश के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व को सहायता प्रदान करने के सक्षम हो जाएगा।

हमारे देश में प्रकृति ने प्राकृतिक सौन्दर्य के जितने स्थल बनाए हैं, वो सम्भवतया सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी नहीं है। आज सम्पूर्ण विश्व के लोगो को शांतिस्थलों की आवश्यकता है। यदि हमारा देश प्राकृतिक स्थलों का विकास करके सैलानियों को इनकी ओर आकृर्षित करे तो निश्चिततः भारत सम्पूर्ण विश्व के सैलानियों के लिए पहली पसन्द होगा। मारीशस, सिंगापुर, हांगकांग, मलेशिया, जो अतीत में जंगल हुआ करते थे आज इन देशों ने अपनी बुद्धिमत्ता, विवेक और प्रगतिशील सोच से अपने देश को भारतीय, पश्चिमी और चीनी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहें है। भारत में प्राकृतिक सौन्दर्य का भण्डार ईश्वर प्रदत्त है। उसे केवल मात्र निखारने की आवश्यकता है। यदि ये निखर जाए तो हम सम्पूर्ण विश्व में पर्यटन की क्रान्ति ला सकते हैं। सरकार से तो सिर्फ सहयोग चाहिये कि वे जीएसटी की दरों को घटाकर एक समान करें, जैसा कि सिंगापुर में है और इन स्थलों को विकसित करने के लिए सक्षम दर पर धन की उपलब्धता प्रदान करें।

भारत की हवाई, रेल व सड़क सम्पर्क आज भी बहुत पिछड़ा हुआ है और इसमें प्रचुर विकास की सम्भावनाएँ विद्यमान है। सरकार से ये अपेक्षा है कि अधिक से अधिक हवाई अड्डे विकसित करे और जितने भी फौजी हवाई अड्डे हैं, उनको साधारण जनता के लिए अविलम्ब खोल दिया आए और देश में जहाँ-जहाँ अति विशिष्ट हवाई पट्टी हैं, उनका विस्तार कर साधारण जनता के लिए भी छोटे विमानों का संचालन शुरू किया जाए। इसी प्रकार रेलों की बद्तर स्थिति और सफाई के लिए भी सरकार की जिम्मेदारी है, जिसका दायित्व सरकार को निभाना चाहिए। भारत के हर प्रदेश में एक-एक शहर और बड़े प्रदेशों के दो-दो शहर हांगकांग, सिंगापुर के सदृश विकसित हों, जहाँ घरेलू और विदेशी पर्यटक अपने परिवार के साथ आकर उस जगह का आनन्द प्राप्त करें। इसमें सरकार, उद्योगपतियों एवं विदेशी निवेशकर्ताओं, तीनों को मिलकर कार्य करना होगा। इससे भारत के विकास को गति मिलेगी।

मोदी जी को अपने युवाओं की बुद्धि एवं ज्ञान पर भरोसा करना होगा और यह समझना होगा कि भारतीय युवाओं की बुद्धि भी उन्हीं की बुद्धि के समान तीक्ष्ण है। उनके ऊपर विश्वास कीजिए तथा उनको नए अनुसंधान तथा नए उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित करें। भारत का युवा इतना सक्षम है कि 5 वर्षों में सम्पूर्ण भारत में उद्योगो का जाल बिछा देगा और रोजगार की समस्या का पूर्णतया समाधान कर देगा। उनको केवल प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। युवा अनुसंधान करता है, परन्तु सरकार का सहयोग प्राप्त नहीं होता, जिससे वे निराश हो जाता है।

भारत के युवा में जोश, कार्य करने की तत्परता व लगन है। सरकार और माता-पिता का कर्तव्य है कि उस लगन को बाहर निकाले। देश में विवाह, जन्मदिन व अन्य किसी आयोजन पर प्रचुर मात्रा में धन की बर्बादी होती है। ऐसे अवसरों पर सर्वप्रथम तो नेताओं को ऐसे बर्बादी करने वाले स्थलों पर सम्मिलित नहीं होना चाहिए दूसरा, ऐसे अवसरों पर कानून बनाकर अथवा दण्ड द्वारा इसको अविलम्ब रोका जाए। जब नेता लोग ही ऐसे आयोजन करते हैं तो निराशा होती है। भारत में ऐसे अनेकों उदाहरण भी हैं कि, जब युवाओं ने इनका विरोध किया है। अतः भारत के समस्त युवाओं को जगाना होगा ताकि वे इस 2 घंटे की बे हिसाब बर्बादी को रोककर, उस धन व समय का सदुपयोग देशहित में कर सकें।

शिक्षा का अर्थ केवल डिग्री प्राप्त करना ही नहीं अपितु रोजगार परक भी होना चाहिए। शिक्षा विभिन्न प्रकार के कौशल प्राप्त करने तथा आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए। आज शिक्षित होने के पश्चात युवा देश पर बोझ न बने इसके लिए शिक्षा को रोजगारोन्मुख किया जाए ताकि युवा देश के लिए स्वयं पूँजी बन सकें।