प्रो. उर्मिला परवाल
व्यक्ति समाज की एक इकाई है, व्यक्ति के समूह से ही समाज का निर्माण होता है। समाज में रहने वाले व्यक्ति एक दूसरे के अच्छे और बुरे क्रियाकलाप से प्रभावित होते रहते है, समाज में यदि कोई व्यक्ति दुर्व्यसन करता है और प्रश्नचिन्ह् लगाने पर यह दलील देता है कि-वे जो भी करते है अपने पैसे से करते है तो दूसरों का उन्हें रोकने का क्या हक है’! उनकी यह दलील उसी प्रकार ठीक नहीं है जिस प्रकार नाव में बैठने वाला व्यक्ति यदि यह कहे कि वह तो अपने स्थान पर जहाँ बैठा है छेद कर रहा है तो क्या उसके साथी उसे छेद करने देंगे? नहीं, क्योंकि वे जानते है कि यदि उसने छेद कर दिया तो पूरी नांव ही डूब जाएगी। इसी प्रकार समाज रूपी नांव में दुर्व्यसन से यदि छेद होता रहेगा तो क्या सभी समाजजन देखते रहेंगे?
एक तरफ तम्बाकू का वैज्ञानिक विश्लेषण देखें तो पता चलता है कि तम्बाकू एक विषैला पौधा है उसमें निकोटिन, कोलतार कार्बन मोनआक्साइड जैसे विषैले घातक तत्वों की यथेष्ट मात्रा रहती है इन विश की थोड़ी सी मात्रा भी शरीर में एकत्रित हो जाए तो अनेक भयावह रोगों को जन्म दे-देती है, तम्बाकू उत्पादों का प्रयोग जानलेवा बिमारियो को आमंत्रित करने का सर्वथा सुलभ तरीका है तम्बाकू मनुष्य के स्वास्थ्य क्षेत्र का सबसे बड़ा आतंकवादी सिद्ध हो रहा है तो दूसरी तरफ तम्बाकू के कारण होने वाली राष्ट्रीय क्षति का आकलन करें तो लगभग 18000 करोड़ रूपये वार्षिक की तम्बाकू भारतवासी पी जाते है। तम्बाकू की इतनी अधिक खपत होने से उनके दाम भी खूब बढ़े है और इसी लालच में किसान अन्न तथा सब्जी के बजाय तम्बाकू की खेती करने लगे है। तम्बाकू की खेती, व्यापार सेवन विश्व के हर कोने में, हर देश में, हर समाज में गत 400 सालों से सामान्य सामाजिक जीवन एवं अर्थव्यवस्था का अंग रहा है। अफसोस! अधिकांश शिक्षित जन, तथा तम्बाकू उत्पादों के उपयोगकर्ता भी इस तथ्य से भलीभाँति परिचित है, परन्तु इस लत को छोड़ पाना इतना आसान नहीं है। आज स्थिति उल्टी है लोगों में दुर्व्यसन से बचने की भावना के स्थान पर दुर्व्यसन की लत तेजी से बढ़ती जा रही है, यह कार्य फैशन की श्रेणी में आने लगा है।
विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर इन दुर्व्यसन का दायरा बढ़ता कैसे है? वे कौन सी परिस्थितियाँ है जिनमें व्यक्ति दुर्व्यसन का शिकार होता है? इसका एकमात्र उपचार है सोहबत। सोहबत से ही व्यक्ति द्वारा व्यक्ति में यह हानिकारक प्रक्रिया प्रारंभ होती है। नई पीढ़ी में नशे की बढ़ती लत अत्यधिक चिंता का विषय है नवयुवक यह सोचे कि उन्हें कैसा जीवन जीना है- नशा खोरों सा नारकीय या सज्जनो सा सम्मानीय! मनुष्य यदि स्वयं अपनी मान-मर्यादा, ज्ञान-गरिमा और आत्म गौरव के प्रति जागरूक हो और अपने जीवन का महत्व समझे तो दुर्व्यसन से दूर रहना सरल होगा । यह बात याद रखना परम आवश्यक है कि दुर्व्यसन जीवन का अभिशाप है और दुर्व्यसनी समाज का कोढ़।
विगत एक दशक में जो बड़े विश्वव्यापी परिवर्तन देखे जा रहे हैं उनमें एक है-स्वास्थ्य क्रांति। विश्वविद्यालय, मेडिकल एवं जनस्वास्थ्य संस्थाओं में विश्व भर में जारी शोध कार्यों ने मानव शरीर, उनके स्वस्थ जीवन शैली एवं पर्यावरण का स्वस्थ जीवन पर क्या प्रभाव होता है, आदि विषय पर समझ उल्लेखनीय स्तर तक बढ़ाई है। ‘स्वास्थ्य क्रांति’ की प्रेरणा से वैज्ञानिक खोजों में गत 100 वर्षों में स्वास्थ्य-सक्षम एवं शतायु जीवन प्राप्त करने की दिशा में असंख्य अध्ययन हुए है, इसके अंतर्गत पड़ताल की गई कि विशेष समाज, देश या भौगौलिक स्थान के लोग अधिक संख्या में शतायु एवं सक्षम लोग क्यों होते है? स्वस्थ शतायु लोग क्या खाते है? कैसा सोचते हैं, वहां का पर्यावरण क्या है आदि-आदि।
मानवता सदा ऋणी रहेंगी विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं वैज्ञानिक संस्थाओं का कि जिन्होंने जन-जन को स्वास्थ्य एवं दीर्घायु पाने की विधियाँ एवं जीवन शैली का ज्ञान उपलब्ध कराया। यह विश्वव्यापी स्वास्थ्य क्रांति का ही प्रतिफल है कि दुनिया का आम आदमी यह समझ चुका है कि उत्तम स्वास्थ्य और तम्बाकू पदार्थ का सेवन कभी भी एक साथ नहीं चल सकते। तम्बाकू के विरूद्ध नित नये मोर्चे खुलते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं सहयोगी संस्थाओं का दिन-ब-दिन अधिक जन सहयोग मिल रहा है। फलस्वरूप तम्बाकू के विरूद्ध अंतिम विजय अनुमान से शीघ्रतर प्राप्त होने की आशा बन रही है।