ये बात बड़ी पुराणी है, शायद 1988 / 1989 की, उस वक़्त मैं जिस कंपनी में नौकरी करता था, उसका दफ्तर कनॉट प्लेस में होता था, दिल्ली के मशहूर जंतर मंतर के बिलकुल सामने – बैंक ऑफ़ बड़ोदा भवन और सफ़ेद पत्थर से बनी हुई यह इमारत अपने आप में एक बड़ी पहचान होती थी ! मेरी उस सरकारी कम्पनी में अभी सात आठ वर्ष की ही नौकरी हुई थी ! एक दिन सुबह तकरीबन ग्यारा बजे जब में अपने काम में मशरूफ़ था, तो हमारे एक सहकर्मी – किशोरी लाल मेरे पास आये और उन्होंने अपनी एक व्यक्तिगत परेशानी मुझे सुनाई ! यह किशोरी लाल हमारे दफतर में सूबेदार {चौथी श्रेणी के एक कर्मचारी} के पद पर कार्यरत थे और उन दिनों उनकी ड्यूटी एक महाप्रबंधक { एफ़ एम पटनायक } के साथ होती थी, और किशोरी लाल उम्र में मेरे से लगभग 18 / 20 बर्स बड़े थे, वह बड़े अच्छे इन्सान थे और सबके साथ हमेशा प्यार मोहब्बत / इज्जत से ही पेश आया करते थे ! मैंने उनको कभी किसी के साथ गुस्से से या ऊँची आवाज़ में बात करते नहीं देखा था | मैंने किशोरी लाल की परेशानी पूरे ध्यान से सुनी और जैसा उन्होंने मुझसे अनुरोध किया, मैंने उनके लिए दो सप्ताह की छुट्टी की एक अर्जी लिख दी, जोकि उन्होंने अपने महाप्रबंधक को मन्जूर करवाने के लिए देनी थी !
छुट्टी की अर्जी लेकर वह अपने महाप्रबंधक की निजी सचिव { जोकि एक दक्षिण भारत की एक महिला थी } के पास गया, तो थोड़ी ही देर बाद उसके महाप्रबंधक ने उसे ऊँचे – २ स्वर में उसे डाँटना शुरू कर दिया ! क्योंकि हमारा सेक्शन {शूगर डिवीज़न } भी महाप्रबंधक के केबिन के पास में ही था, तो आवाजें हमें भी सुनाई दे रही थी ! सभी एक दूसरे से पूछ रहे थे कि आख़िर ऐसा क्या हो गया कि किशोरी लाल के महाप्रबंधक इतना ख़फ़ा हो गए ? बस इतना ही सुनने को मिल रहा था, “तुम झूठ बोलते हो, काम नहीं करना चाहते, ऐसा कैसे हो सकता है ? बस तुम्हें अपने गाँव भागने का कोई ना कोई बहाना चाहिए , वगेराह – २ !” फ़िर थोड़ी देर बाद किशोरी लाल उनके कमरे से बाहर आया और सीधे हमारे ही सेक्शन में आकर, जैसे किसी अपराध-बोध से युक्त हो, मेरी सीट के सामने खड़ा हो गया ! मैंने उनसे पूछा – बोलो किशोरी लाल ! क्या हुआ है ? आपके साब इतना चिल्ला क्यों रहे थे ! जवाब में उसने धीरे से उत्तर दिया, “भारद्वाज जी ! साब आपको बुला रहे हैं !” किशोरी लाल की बात सुनकर मेरे सेक्शन के सहकर्मी भी प्रश्नात्मिक दृष्टि से मेरी तरफ़ देखने लग गए ! ख़ैर, मैं किशोरी लाल के साथ महाप्रबंधक के कमरे में गया और देखा कि साब बड़े गुस्से में थे और मुझे भी ऐसे ही देखने लग गए ! मैंने उनसे पूछा, “सर आपने मुझे बुलाया है ?” फ़िर अपने मेज पर पड़ा हुआ एक कागज़ मेरी तरफ़ सरकाते हुए वह बोले, “यह एप्लीकेशन आपने लिखी है ?” मैंने संक्षेप में “हाँ ” में उत्तर दिया ! फ़िर, मुझे आंखें दिखाते हुए बोले, “इसकी छुट्टी की एप्लीकेशन लिखने से पहले सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की आपने ? इसको तो अपने गाँव भागने का कोई बहाना चाहिए और आपने भी इसकी बातों में आकर झटसे लिख दिया ?” मैंने आराम से उत्तर दिया, “सर ! किशोरी लाल को मैं भी पिछले सात आठ वर्षों से जानता हूँ, यह एक अच्छा इन्सान है, मैं नहीं समझता कि यह झूठ बोल रहा है !”
मेरा जवाब सुनकर अब उसके महाप्रबंधक के गुस्से का केन्द्र बिंदु किशोरी लाल नहीं, मैं बन गया था ! फ़िर थोड़ा और भी तैयश में आकर वह मुझे कहने लगे, “इसकी यह अर्जी लिखने से पहले थोड़ा अपना दिमाग़ भी लगा लेना था, इसमें तो लिखा है – मेरी पत्नी पेड़ से गिर गई है और उसकी एक टाँग टूट गई है, क्या ऐसा हो सकता है ?” अब मैंने महाप्रबंधक से सवाल पूछा, “सर ! मुझे आप ही बताएं, कि ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ?” “देखो भारद्वाज ! इसकी उम्र पच्चास के करीब है, तो इसके घरवाली की उम्र भी 45 / 47 वर्ष की होगी, मुझे बताओ, इस उम्र की कौनसी औरत होती है जो पेड़ पर चढ़ती है ? अगर कोई 15 / 16 वर्ष की लड़की हो, तो मैं मान भी लूँ कि अल्लड़ बच्ची है, खेल – २ में पेड़ पर चढ़ गई और फ़िर पैर फिसलने से नीचे गिर गई ! लेकिन इस उम्र औरतें ऐसे पेड़ों पर कब चढ़ती हैं ?” मैंने बड़े आराम से उत्तर दिया, “सर ! मेरे पास इसका उत्तर तो है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि किशोरी लाल ही इसका जवाब दे, और फ़िर इसके जवाब में जहाँ आपको कोई गड़बड़ / त्रुटि नज़र आएगी, मैं इसका स्पष्टीकरण दूँगा !” मेरा जवाब सुनकर महाप्रबंधक ने किशोरी लाल को बोलने का इशारा किया ! उसने अपनी बात बतानी शुरू की, “सर ! हिमाचल प्रदेश के जिस गाँव में और जिस इलाके में मैं रहता हूँ , वहां हमारे घरों में खाना बनाने के लिए गैस सिलेंडर नहीं होते, हम गरीब लोग इतनी महंगी गैस नहीं खरीद सकते ! खाना बनाने के लिए हमारे घरों की औरतें गोबर के बने हुए ऊपलों से या फ़िर लकड़ियों का ही इस्तेमाल करती हैं ! लकड़ियाँ चुनने के लिए गाँव के पास के जंगल में पाँच छः या सात औरतें इक्कठी होकर जाती हैं , सबके पास अपनी – २ कुल्हाड़ी या दात होता है, वह पेड़ पर चढ़ती हैं और लकड़ियाँ काटकर, रस्सी से बाँधकर घर ले आती है, चार पाँच दिन बाद वह लकड़ियाँ सूख जाती हैं और फ़िर वही लकड़ियाँ जलाकर खाना बनता है ! तो ऐसे ही मेरी पत्नी भी पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रही थी कि गलती से उसका संतुलन बिगड़ गया और नीचे गिरकर एक टांग टूट गई ! अब उसका इलाज भी करवाना ही है और घर का कामकाज़ भी मुझे ही करना पड़ेगा, आख़िरकार – वह मेरी पत्नी है, जीवन साथी है, मैं उसे तड़पने के लिए ऐसे ही तो नहीं छोड़ सकता ! अगर आपको मेरी बात पर विश्वास ना हो आप अनंत राम शर्मा से भी पूछ सकते हो !” महाप्रबंधक ने अगला सवाल किया, “आपकी पत्नी पेड़ से गिर गई, यह बात अनंत राम को कैसे पता है ?” किशोरी लाल ने उत्तर दिया, “कल शाम को घटना के बारे में जब मेरे गाँव से फ़ोन आया था, तो अनंत राम के घर ही आया था, मेरे घर तो फ़ोन है नहीं ! पूरे ए ब्लॉक में केवल अनंत राम के घर में ही फ़ोन है !”
किशोरी लाल की बात सुनकर महाप्रबंधक फ़िर मेरी तरफ़ देखने लग गए और मुझे कहने लगे, “अब आप बताओ, क्या कोई औरत पेड़ पर चढ़ सकती है, हमारे घरों की तो लड़कियाँ भी पेड़ पर नहीं चढ़ती !” मैंने उत्तर दिया, “सर ! बात ऐसे है कि किसी भी बन्दे के जैसे हालात, परिस्थितियाँ जैसी होती हैं, उसके मुताबिक ही उसे ढलना पड़ता है, आदमी अपने कामकाज़ भी उसके हिसाब से ही करता है ! आदमी ना भी सीखना चाहे, तो उसकी परिस्थितियाँ उसे सिखा देती हैं ! मेरे गाँव की भी बहुत सी औरतें लकड़ियाँ काटने के लिए या फ़िर फ़लदार पेड़ से फ़ल इत्यादि तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ जाती हैं, इस में कोई अचम्भे वाली बात नहीं है ! बाकी रही बात आपके जैसे अच्छे पढ़ेलिखे और साधन सम्पन्न घरों की औरतों की, तो उनको पेड़ पर चढ़ने की जरुरत ही क्या है, जिनके घर में तमाम सुख साधन के सभी उपकरण आराम से उनको उपलब्ध हो जाते हैं ! आपके घर में तो हो सकता है कि घर का कामकाज करने के लिए कोई मेड सर्वेंट आती हो, लेकिन गरीब परिवार के घरों में सभी काम उस घर की औरतों / लड़कियों को ही करने पड़ते हैं, क्योंकि वह कोई मेड सर्वेन्ट रखने का खर्चा नहीं उठा सकते ! वैसे भी अपने सभी काम खुद करने से हमारी तन्दरुस्ती भी बनी रहती है !” मेरी बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हुए पास खड़ी पटनायक साब की निजी सचिव ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी, “सर ! भारद्वाज जी की इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ !” मैंने अपनी बात जारी रखते हुए फ़िर बोला, “घर के हालत के बारे में और उससे उपजे हालात के बारे में एक और बात आपको बता देता हूँ – हम जैसे गरीब परिवार में जन्मे बच्चों को तो बचपन से ही यह बात समझाई जाती है – खाना बड़ी मुश्किल से नसीब होता है, इसे ख़राब नहीं करना चाहिए, इधर उधर फैंकना नहीं चाहिए , हमारे ही देश में लाखों लोगों को पेट भरके दो वक़्त का खाना नसीब नहीं होता, हमें मिल जाता है – हम इस मामले में बड़े भाग्यशाली हैं ! सो हम लोग तो रात का बचा हुआ खाना अगले दिन सुबह भी खा लेते हैं, सुबह का बचा हुआ खाना दोपहर को भी खा लेते हैं और दोपहर का बचा हुआ खाना रात को भी खा लेते हैं, जबकि अमीर परिवारों के बच्चे उसे बासा खाना बोलकर फेंक देते हैं, घर वाले भी उनको बोल देते हैं कि बासा खाना खाने से आदमी बिमार हो जाता है, अलबत्ता उसे नहीं खाना चाहिए ! लेकिन हम लोग ऐसा नहीं करते, हमारे यहाँ अन्न की बहुत कदर होती है ! मुझे बड़ी अच्छी तरह याद है – मेरे पिताजी अक्सर हमें समझाया करते हैं कि अनाज खरीदने के लिए बड़े पैसे लगते हैं, उस अनाज से भोजन बनाने में भी घर की महिलाओं / लड़कियों को बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, अत: उसे बरबाद नहीं करना चाहिए !” मेरी यह सब बातें सुनकर महाप्रबंधक भौचक्का रह गया, इसके आगे उसे कोई सवाल सूझ ही नहीं रहा था ! फ़िर उसने बड़े आराम से अपनी प्रतिक्रिया दी, “अच्छा ! आप सभी कहते हो तो मैं मान लेता हूँ, लेकिन यह मेरे लिए भी यह एक बिलकुल नई जानकारी है कि केवल अल्लड़ लड़कियाँ ही नहीं, गाँव की औरतें भी पेड़ पर चढ़ लेती हैं और कुल्हाड़ी का भी प्रयोग कर सकती हैं ! बाप रे बाप ! ऐसी औरतों से ख़बरदार रहना चाहिए जो कुल्हाड़ी भी चला लेती हैं !” इतना बोलकर उन्होंने किशोरी लाल की दो सप्ताह की छुट्टी मंजूर कर दी !
किशोरी लाल के बारे में यहाँ मुझे एक और बात याद आ गई – छुट्टी वाली घटना के दो तीन वर्ष बाद की बात है, उस वक़्त मैं अपनी कम्पनी के स्टॉफ़ क्वार्टर्स – आईएफसीआई कॉलोनी, पश्चिम विहार में रहता था ! एक दिन हम चार पाँच लोग रात का खाना खाने के बाद कॉलोनी में सैर कर रहे थे ! सैर करते – २ मेरे एक सहकर्मी – एस.के. हांडा ने मुझसे सवाल किया, “भारद्वाज ! मैं देख रहा हूँ , आज ना तो आप स्पीड से चल रहे हो और ना ही ढंग से चल रहे हो, आपकी तबियत तो ठीक है ?” मैंने उत्तर दिया , “नहीं यार ! मेरी पीठ में चोक पड़ गई है, जिसकी वजह से मुझे सीधे खड़े होने में और चलने में दिक्कत हो रही है, शोल्डर प्लेट के नीचे पीठ दर्द कर रही है !” मेरी बात सुनकर हांडा जी ने सुझाव दिया, “अगर पीठ में दर्द है तो किशोरी लाल को बुला लेना था ?” मैंने भी हैरानगी में सवाल किया, “पीठ में चोक आ गई है, दर्द भी हो रहा है, तो इसमें किशोरी लाल क्या कर सकता है ? ” हांडा ने उत्तर दिया, “शायद आपको पता नहीं है, किशोरी लाल हिमाचल प्रदेश के एक गाँव का रहने वाला है, अगर किसी के पाँव में मोच आ जाये, मसल फ़ट जाएं / खिंच जाएँ , किशोरी लाल सरसों के तेल से मालिश करके ठीक कर देता है ! उसके हाथ में यह एक बड़ी कला / शफ़्फ़ा / हुनर है !” फ़िर मुझे भी याद आ गया कि गाँव में ऐसा काम करने वाला एक आदमी जरूर होता है, जैसे कि पंजाब में, मेरे गाँव में भी नन्द लाल नाम का एक बाबा होता था, जिसके हाथों में यह हुनर था ! दूसरे दिन मैंने किशोरी लाल को अपनी समस्या बताई और वह बिना कोई सवाल जवाब किये मेरे घर आ गया, सरसों का तेल गर्म करवा के उसने मेरी पीठ की मालिश कर दी, मुझे थोड़ा आराम महसूस हुआ, फ़िर वाश बेसिन पे हाथ धोते हुए उसने मेरे कहने से पहले ही अपने आप ही बोल दिया, “भारद्वाज जी !
मैं कल फ़िर शाम को ऐसे ही आपकी मालिश कर दूँगा, देखना बाद दो तीन दिन में आप बिलकुल स्वस्थ हो जाओगे, चलना फ़िरना तो क्या, आप घोड़े की तरह दौड़ने लग जाओगे !” और ऐसा ही हुआ, तीन दिन लगातार मालिश करवाने के बाद मैं बिलकुल स्वस्थ हो गया ! ठीक होने के बाद जब मैंने किशोरी लाल को थोड़े पैसे देने चाहे, तो वह बड़ा संकोच कर रहा था, लेकिन मैंने उसका धन्यवाद करते हुए वह पैसे, यह बोलकर उसकी जेब में डाल दिए, “रख लो भाई ! यह तो आपका मेहनताना है !”
आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “