गुरु द्रोण की फ़ौज कहलाने वालो ,
परशुराम से शिक्षा पाने वालो ,
तुम क्या जानो मैरिट को,
तुम तो सदियों से आरक्षित हो ।
क्योंकि तुम्हारी और तुम्हारी हज़ारों पीढ़ियों के लिए तो
सब कर दिए थे आरक्षित उस मनु महाराज ने –
अर्जुन की भी खूब चल पड़ी थी,
छल्ल कपट से काटा अंगूठा मेरिट का,
और तुम तथाकथित श्रेष्ठ कुल वाले, राजघराने में
जन्म लेने वाले कैसे कर लेते स्वीकार एक दलित को –
अपने से अधिक शक्तिमान , अपने से अधिक श्रेष्ठ !
और न ही अयोग्य, बल्कि गुरु द्रोण कपटी था !
फ़िर वंचित किया एक सूत पूत्र (कर्ण) को ,
परिस्थितिवश बर्ह्मास्त्र के प्रयोग से,
क्या यही है तुम्हारी संस्कृति, यही है तुम्हारी सभ्यता,
यहाँ निम्न वर्ग को कोई न्याय नहीं , सम्मान नहीं ,
समानता का अधिकार नहीं, इज्जत मान मर्यादा नहीं,
उनकी प्रतिभाएं निख़रकर कहीं तुम्हें पछाड़ न दें ,
तभी तो उनके लिए कोई गुरुकुल नहीं, कोई साधन नहीं ?
फ़िर कैसे और कहाँ निख़ारते अपने भीतर छिपी
युद्ध कला को, प्रतिभा को, विद्या को, बुद्धि और रण-कौशल को ?
और कैसे सिद्ध करते कितने ही क्षेत्रों में अपने को तुम से बेहतर ?
शर्मसार किया तुमने हज़ारों बार मानवता को ,
झूठे जातिपाति और धर्म मज़हब के बंधनों से,
कभी डोनेशन, कभी व्यापम और सिफ़ारिश के कुचक्रों से ,
कभी कॉलेजों में मैनेजमेंट कोटा की सीटों से ,
हमेशा घुसते आए हो ऐसे ही अनेक चोर दरवाजों से,
और कैसे और क्यों घमंड से कहते हो, हम मैरिट हैं ?
अपनी बरादरी को रेस के लिए दे दी गोल पहिया गाड़ी,
और बहुजन समाज को चकोर पहियों वाली बैल गाड़ी ,
यह कौनसा मुकाबला है प्रतिस्पर्धा परख़ने का ?
आपने प्रतिभाओं को परखा नहीं, बल्कि अपनी साज़िशों से खेल पलटाया है !
याद रखो ! यह मैरिट नहीं, मात्र एक धोखा था ,
कल से नहीं, परसों से नहीं , साल दो साल से नहीं ,
यह धोखा तुम करते आये हो हज़ारों वर्षों से ,
धोखे से छीना उनसे , घर बार, खेत खलियाण ही नहीं ,
उनके लाखों पुरखों से, उनके जीवन यापन के सुख और साधन ,
उनके लाखों , करोड़ों – २ रोजगार के साधन ,
और इस निरन्तर चलती छीना झपटी से कर दिया ,
उनको और उनके बच्चों हमेशा के लिए दिशाविहीन और कंगाल ?
मग़र अब नहीं है तुम्हारी चलने वाली ,
हमारा एक ही विद्धवान, महान समाज सुधारक महापुरुष ,
तुम्हारे हज़ारों धोखेबाज़ों पर बन गया था भारी ,
क्योंकि झूठ के पाँव नहीं होते, सत्य तो स्वंमभू होता है बलवान ,
और अधर्मी, पाखण्डी होते हैं धोखेबाज़, छल्ल कपट करने वाले,
ग़लत नीतियों और पाखण्ड से दूसरों को छलने वाले !
हमारे उस विद्धवान, जुझारू और संकल्पशील समाज सुधारक,
युग प्रवर्तिक मसीहा ने पलट दिया तुम्हारा सब धोखे और पाखण्ड का खेल ,
और लिख दिया, सत्यनिष्ठा, समानता और धर्मनिरपेक्षता के
सिद्धांतों पर आधारित एक नया मानवतावादी प्रगतिशील संविधान !
और अब हज़ारों वर्षों से दलित और शोषित
समाज के बच्चे ही पढ़लिख कर बदलेंगे अपनी तकदीर ,
और उनकी तदबीर से बदलेगी पूरे भारत की नई तस्वीर ,
समझ सको तो, समझ लो , वक़्त है अब भी,
सम्भल सको सम्भल जाओ, वक़्त है अब भी ,
छोड़ दो इन साधन विहीन और संरक्षण विहीन
दलित समाज को, और छोड़ दो इन पर करना शोषण, उत्पीड़न और अत्याचार,
मत भूलो ! वह भी इसी भारत माता के बच्चे हैं –
और इनको भी बढ़ना है आगे ही आगे, और होते रहना है –
उन्नति, विकास और परिवर्तन की ओर अग्रसर !
लेकिन इन अगड़ी जातियों के छल कपट अभी भी कहाँ हुए हैं समाप्त –
वह नित प्रतिदिन चलते हैं वह नई २ चालें ,
रचते ही रहते हैं रोजाना नई २ साज़िशें ,
क्योंकि वह जान गए हैं कि बहुजन समाज वाले तो
अब शिक्षा के साथ २ खेलों में भी जीत रहे हैं अनेक मैडल ,
तभी तो पिछले कुछ वर्षों से हो रहा है –
उच्च शिक्षा को महँगा करने का निरंतर षड़यंत्र !
यह रखना चाहते हैं व्यवसाई विद्या को उनकी पहुँच से बाहर ,
याद रखो ! यह केवल उनके साथ ही धोखा नहीं है –
बल्कि आप बना रहे हो कमजोर पूरे देश और समाज को ,
ऐसे में वह कैसे करेंगे मुकाबला अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में ?
ऐसे करने वाले लोग अधर्मी ही नहीं, देश विरोधी बन जायेंगे ;
और यह देश बन जायेगा विकासशील देशों का पिच्छलग्गू ?
और याद रखना ! जो देश प्रदेश अपने नागरिकों के लिए नहीं स्थापित करते –
समानता के अधिकार, नहीं देते बढ़ने फ़लने फ़ूलने के एक समान अधिकार ,
और यहाँ लड़कियों और औरतों के होते रहते हैं अक्सर शोषण, उत्पीड़न,
शादियों में दलित दूल्हे को नहीं करने देते घोड़ी की सवारी,
और मुर्दों का गाँव के कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार ?
अपने मन और दिमाग में क्यों भर रखी है इतनी कुटिलता,
नफ़रत और समाज को बाँटने की ऐसी घिनौनी साजिशें ?
ऐसी दोषपूर्ण मानसिकता से माना जाता है उनको दूसरे दर्जे के नागरिक,
वही देश पिछड़ जाते हैं बाकी प्रगतिशील और विकासशील देशों से ,
और बनना पड़ जाता है उनके आर्थिक ग़ुलाम –
विकास में , प्रगति में, विज्ञान में , और ना जाने
कितनी ही प्रतिस्पर्धा की डगरों में, राहों में ,
और पूरी दुनियाँ की सोच में, निगाहों में !
और बहुजन समाज के लोगों आप भी सुधर जायो ,
छोड़ दो सिगरेट बीड़ी तम्बाकू और शराब का गन्दा सेवन ,
बन्द करदो कांवड़ लाने की लम्बी २ यात्राएं ,
क्यों इसके चक्र में ख़राब करते हो अपने काम धंधे ,
क्यों बरबाद करते हो अपने सीमित साधनों को,
उनको बचाकर रखो अपने बच्चों को बढ़िया शिक्षा देने में ,
उनके लिए घर संसार में सुख सुविधाएं देने में ,
और उनके लिए एक उज्जवल भविष्य तराशने में –
और तब आपके शिक्षित बच्चे पकड़ेंगे प्रगतिशील राहें ,
आपके घरों में भी आएंगी – सुख शाँति और ख़ुशहाली,
और साथ २ सुलभ हो जायेगा तुम्हारा भी बुढ़ापा !!
आर.डी. भारद्वाज “नूरपुरी ”