सत्यम शिवम् सुन्दरम

मधुरीता  

सत्य क्या है ? – यह एक सरल व् सीधा सा सवाल है. जिसे सभी जानते हैं मानते हैं पर उसे अपने जीवन में क्रियान्वित नहीं करना चाहते क्योंकि वे इसे एक प्राचीन संस्कृति, पुराने विचार इत्यादि नामों से इसका तिरस्कार करते हैं. आधुनिक युग में तो इसे आउट ऑफ़ फैशन माना  जाने लगा है . 

सत्य का ही रूप जीव जगत ही नहीं पूरा ब्रह्माण्ड है – सूर्य , चन्द्र , पृथ्वी , जल, वायु, आकाश प्रकृति – किस किस का नाम लें . जिधर देखें उधर ही केवल सत्य ही तो नज़र आता है .

सत्य वो तत्त्व है जिसकी सत्ता समाप्त हो जाने पर कोई भी जीव निर्जीव व् निष्प्राण हो जाता है.
जब हम अपने कर्मो द्वारा सत्य को जीवन में मान्यता देते है वही शिव कहलाता है.

सभी प्राणी कर्मो द्वारा ही विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं. इसका अर्थ ये हुआ सम्पूर्ण जीवन का आधार केवल कर्म ही तो है. सारी  सृष्टि ही तो कर्मो के बंधन में बंधी हुई है . जिसे देखो वही कर्म करता दीखता है. 

कर्म ऐसा हो जो किसी भी प्राणी को हानि न करे कष्ट  न पहुंचाए, तभी वह कर्म आनंद की अनुभूति प्रदान करने वाला होगा. वही कर्म सुन्दर भी होगा.

इसका अर्थ यह हुआ की यदि सभी प्राणी इमानदारी से केवल अपने कर्मों को थोडा विवेकपूर्ण तरीके से करे तो आज जो विश्व में तांडव हो रहा है वह रुक जाएगा. 

सत्य ही शिव है – शिव ही तो सुन्दर है तभी इसकी सार्थकता है.