अल्बर्ट आइंस्टाइन विश्व के जाने माने भौतिक विज्ञान के वैज्ञानिक और थ्योरिटीकल भौतिकशास्त्री थे ! इन्होंने साधारण रिलेटिविटी की थ्यूरी को विकसित किया ! विज्ञान के दर्शन शास्त्र को प्रभावित करने के लिए भी इनका नाम प्रसिद्ध है ! उनको सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E = MC² के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है ! उन्हें सैद्धांतिक भौतिकी, खासकर प्रकाश-विद्युत ऊत्सर्जन की खोज के लिए 1921 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपने जीवन में बहुत से अविष्कार किये, कुछ आविष्कारों के लिए आइंस्टाइन का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया ! वे एक सफ़ल और बहुत ही बुद्धिमान वैज्ञानिक थे, आधुनिक समय में भौतिकी को सरल बनाने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है ! अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया. इन्होंने भौतिकी को सरल तरीके से समझाने के लिए बहुत से अविष्कार किये जोकि लाखों लोगों के लिए प्रेरणादायक है ! उन्होंने पहली शादी 1903 में मिलवा मैरिक नाम की एक लड़की से की थी, लेकिन 1914 में उनका तलाक हो गया और फ़िर उन्होंने दूसरी शादी अपनी एक चचेरी बहन एल्सा लोवेंथल से की ! दोनों पत्नियों से मिलाकर उनके तीन बच्चे थे! उनके पास 4-5 देशों की नागरिकता थी ! गैलीलियो गैलिली उनके सबसे पसंदीदा वैज्ञानिक थे।
इस प्रतिभाशाली वैज्ञानिक का जन्म 14 मार्च, 1879 में जर्मनी में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक इंजीनियर व सेल्समैन थे और उनकी माँ पौलीन आइंस्टाइन थी। चार वर्ष की उम्र तक उनको बोलना ही नहीं आया था, उनके माता पिता इस वजह से बड़े परेशान रहते थे, कि कहीं उनका बेटा जुबान से गूंगा तो नहीं है, लेकिन चार वर्ष की उम्र के बाद एक दिन उन्होंने अपने घर के सभी सदस्यों को उस वक़्त चौंका दिया जब उनकी माँ ने घर में सूप बनाया और सबको खाने को दिया! जब अल्बर्ट काफ़ी समय तक सूप के प्याले केवल देखते ही रहे, तो उनके पिता जी ने उसे सूप खाने के लिए इशारा किया, तो जवाब में अल्बर्ट ने जवाब दिया, “सूप बड़ा गर्म है !” और उस दिन से जब उन्होंने बोलना शुरू किया, तो धीरे २ उनका बोलना दिन बदिन बढ़ता ही गया! स्कूल में जब इनको पढ़ने भेजा गया, तो इनके अध्यापक इनके सवालों से बड़े परेशान हो जाया करते थे, क्योंकि अल्बर्ट कोई चीज़ समझ ना आने पर सवाल पे सवाल करते ही रहते थे ! एक बार तो उनकी गणित की अध्यापक ने अल्बर्ट की माँ को एक चिठ्ठी ही लिख दी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि आपका बच्चा थोड़ा मंदबुद्धि है, यह इस स्कूल में पढ़ नहीं सकता, इसलिए आप इसे किसी और स्कूल में दाखिल करवा दो या फिर कोई और काम सिखा दो, ताकि बड़ा होकर यह अपनी जीविका कमाने लायक हो जाये ! लेकिन अपने सभी अध्यापकों को ग़लत साबित करते हुए अल्बर्ट बड़े होकर एक बड़े वैज्ञानिक बन गए और वह सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी थे, उन्होंने ऐसे सिद्धांत दिए थे, जिसने विज्ञान जगत को पलट कर रख दिया। बेशक उनको बचपन में ही यहूदी धर्म की दीक्षा दे दी गई थी, लेकिन वह धार्मिक कर्मकाण्डों को कभी अच्छा नहीं समझते थे ! और उन्होंने हृदय से यह भी अनुभव किया कि सभी कर्मकाण्ड किसी भी धर्म व सम्प्रदाय के हों, अंधी / आधारहीन जड़ता के अतिरिक्त कुछ नहीं है और यह बन्दों में अच्छी इन्सानियत के गुण निर्माण करने में सहायक नहीं, बल्कि बड़ी रुकावट बनते हैं, मनुष्य को स्वतन्त्रता पूर्वक चिन्तन करने से रोकते हैं। इसलिए स्नातक होकर आइंस्टाइन ने अपने धर्म सम्प्रदाय की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया !
एक बार विज्ञान के किसी विषय पे कॉन्फरेंस होने जा रही थी जिसमें पूरे देश से बड़े २ विज्ञानकों और बड़े २ पत्रकारों को भी को निमंत्रण दिया हुआ था ! उस कॉन्फरेंस में बोलने के लिए अल्बर्ट आइंस्टाइन को भी निमंत्रण मिला ! कॉन्फरेंस में बोलने वाले सभी वैज्ञानिक अपने २ विचार रख चुके थे, और मीटिंग के अंत में चाय कॉफ़ी का दौर चल रहा था और बीच 2 में कुछ पत्रकार अपने सवाल भी पूछ रहे थे ! उसी हाल में आइंस्टीन के सामने वाली मेज पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे, अचानक एक पत्रकार के कप पे एक शहद की मक्खी आकर बैठ गई और उस पत्रकार ने गुस्से में उस मक्खी को अधमरा कर दिया और फ़िर मेज से नीचे गिराकर अपने जूते से उसे मसल दिया ! आइंस्टाइन को पत्रकार की यह हरकत बिलकुल अच्छी नहीं लगी और उन्होंने बड़े ही आराम से उस पत्रकार को समझाने की कोशिश की, “हमें ऐसे इन छोटे 2 कीट पतंगों को मारना नहीं चाहिए, यह गलत बात है !” अल्बर्ट आइंस्टाइन की टिपणी उस पत्रकार को अच्छी नहीं लगी और उसने उत्तर दिया, “आइंस्टाइन जी ! आप जैसे इतने बड़े वैज्ञानिक को ऐसी छोटी सी मक्खी मच्छर के मरने पे ऐसी दया, करुणा जाहिर करना आपको शोभा नहीं देता !” आइंस्टाइन ने फिर उसे समझाने की कोश्शि की, “देखिए ! यह जानवर देखने में भले ही हमसे बहुत छोटे हों, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह भी हमारे मित्र ही हैं !” उनके विरोधीभाव वाले वार्तालाप ने उनके आस पास बैठे अन्य लोगों का ध्यान खींच लिया और सभी उन दोनों के तर्क वितर्क को बड़े गौर से सुनने लग गए !
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने फ़िर उस पत्रकार को समझाने का यत्न किया, “केवल यह एक छोटी सी मधु मक्खी ही नहीं, सभी छोटे २ कीट पतंगे – जैसे कि अनेक प्रकार की तितलियाँ, भँवरे, मोठ इत्यादि के इलावा भी हज़ारों किस्म के छोटे २ और भी कीड़े मकोड़े हैं जो हमारे दोस्त हैं, हमारे सहायक होते हैं और यह सभी जाने अनजाने में सदियों से हमारी सहायता करते आ रहे हैं!” आइंस्टाइन का यह वाक़्या सुनकर एक और पत्रकार ने सवाल किया, “आप बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं, हम सभी आपके अविष्कारों से काफ़ी प्रभावित हैं, लेकिन यह छोटे २ कीट पतंगे हमारे दोस्त वाली आपकी बात मुझे बिलकुल समझ नहीं आई ! कृपया इसे विस्तार से समझाएं ? अल्बर्ट आइंस्टाइन फिर सबको थोड़ा ऊँची स्वर में समझाते हुए बोले, “पूरी दुनियाँ में करोड़ों मधु मक्खियाँ हैं, भँवरे हैं, करोड़ों छोटी बड़ी तितलियाँ हैं, मोठ हैं, कुच्छ छोटे 2 पक्षी भी हैं – जैसे कि हमिंग बर्ड, जो पूरा दिन एक फ़ूल से दूसरे फ़ूल पे और एक खेत से दूसरे खेत में मंडराते रहते हैं, हमें देखने को लगता हैं कि यह छोटे २ कीट पतंगे फूलों का रस चूसने के लिए ही आते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि फ़ूलों का रस ही उनका मुख्या आहार है और यह रस चूस के उड़ जाते हैं ! दरअसल, जब यह रस चूसने के लिए कलिओं पे बैठते हैं , तो इनके पैरों से फूलों के पराग के कण चिपक जाते हैं, उसके बाद जब यह दूसरे फूलों पे बैठते हैं तो उनके पैरों से चिपके हुए पराग के कण दूसरी कलिओं में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण करोड़ों कलिओं को खिलने में सहायता मिलती है, इस परागीकरण की क्रिया से ही सभी प्रकार के फ़ूल खिलते हैं, फ़लों वाले पेड़ों पे तरह २ के फ़ल लगते हैं, इसी प्रागीकरण से ही सभी प्रकार की सब्जियाँ उगती और पनपती होती हैं, केवल इतना ही नहीं, हमारे अनाज में काम आने वाली सभी फसलें – गेहूं , धान, मक्की, ज्वार, बाजरा वगैराह और सभी प्रकार की दालें भी – सभी इसी प्रागीकरण की विधि से ही फलती फूलती हैं और हम सभी उन अनेक प्रकार के अनाजों, सब्जियों और फ़लों को खाकर ही जीवित रहते हैं, हमें इन्ही से ही ऊर्जा मिलती है, हमारा पोषण होता है ! यह सिलसिला यहीं समाप्त नहीं होता, दूध देने वाले सभी जानवर – जैसे कि गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँठ, घोड़ा, हाथी, खच्चर इत्यादि – यह सब जानवर जिनका मुख्या भोजन हरा चारा ही होता है, वह भी इन छोटे २ कीट पतंगों के प्रयास से ही उगते हैं, फ़लते फूलते हैं ! इन सब बड़े जानवरों का गोबर खेतों में खाद की तरह ही उपयोग में लाया जाता है ! एक और बात हमेशा याद रखो ! कुदरत ने दुनियाँ में कोई भी वस्तु / पदार्थ, इन्सान या फ़िर जानवर, बिना किसी मकसद के नहीं बनाये ! यह सभी पूरी सृष्टि को चलाने में हमारे सहायक बन जाते हैं; भले ही इस पूरी प्रक्रिया में उन जानवरों / कीट पतंगों को इस बात का कोई ज्ञान नहीं है, लेकिन यह सभी जाने अनजाने में हमारे सहायक का ही काम करते हैं ! हम सबके घरों में जो भोजन पहुँचता है, उसमें इन सभी छोटे 2 कीट पतंगों और बड़े जानवरों का भी बड़ा योगदान होता है !”
केवल इतना ही नहीं, आइंस्टाइन ने उनको आगे समझाया कि भगवान ना करे – अगर यह सभी कीट पतंगे, छोटे २ जानवर मर जाएं, तो ज्यादा से ज्यादा चार या पाँच वर्ष में ही हम सब इन्सान और पशु पक्षी भी मर जाएंगे, लेकिन मरने से पहले पूरी दुनियाँ में जगह २ लड़ाईआं शुरू हो जाएंगी, जिनके पास खाने के लिए अनाज नहीं होगा, वह दूसरों से छीनने झपटने के लिए लड़ेंगे, जिनके पास होगा वह बहुत महंगे दाम पर बेचने लग जायेंगे, गरीबों / मजलूमों की लूट खसूट करेंगे और ऐसी प्रस्थितियों की वजह से सभी देशों में जबरन छीना झपटी / मारकाट शुरू हो जाएगी, क्योंकि उस वक़्त सवाल जीने मरने का होगा, और कोई मरना नहीं चाहता और जीने के लिए भोजन सबको चाहिए, हम लोग भोजन करेंगे तो ही हमें जीने और काम करने के लिए ऊर्जा मिलेगी ! अब थोड़ा गंभीरता से विचार करते हुए आप ही बताओ, यह छोटे 2 कीड़े मकोड़े हम सबके लिए और हमारे दूध दहीं देने वाले जानवरों के लिए कितने लाभकारी हैं ? यह हमारे मित्र / सहायक हैं या नहीं ? जमीन पर चलते फ़िरते करोड़ों छोटे 2 कीट पतंगे हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा और ना ही किसी ने इतने विस्तार से समझाया था !
अल्बर्ट आइंस्टाइन का इतना विस्तृत व्याख्यान / स्पष्टीकरण सुनकर वहाँ पर मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए , क्योंकि इससे पहले किसी को इस बात की इतनी आवश्यक जानकारी ही नहीं थी, और ना ही किसी ने इतने विस्तार से समझाया था ! लाखों लोग तो इनको केवल छोटे 2 तुच्छ कीड़े मकोड़े ही समझ कर उनके प्रति बड़े लापरवाह हो जाते हैं और हमलोग उनका जरा भी ख्याल नहीं रखते, अक्सर उनके प्रति असंवेदनशील ही रहते हैं ! हकीकत में जानवर छोटे हों या बड़े , सभी किसी न किसी रूप में हमारी सहायता करते हैं ! कितने ही ऐसे जानवर हैं जो हज़ारों वर्षों से हमें खेतीबाड़ी के कामों में या फ़िर माल ढोने में सहायता करते आ रहे हैं, इंसानों की बात करें तो – करोड़ों छोटे 2 से गरीब लोग खेतीबाड़ी और कारखानों में काम करने वाले मज़दूर भी ऐसे ही बड़े 2 जिम्मीदार / कारखानों वाले व्यवसाईयों की सहायता करते हैं, बेशक वह इसी काम से अपने लिए जीविका भी कमा रहे हैं, कारोबारी लोगों का मुनाफ़ा तो करोड़ों होता है, लेकिन यह बात भी बड़ी दुखदाई है कि बड़े लोग अपने बड़े 2 कार्यों में छोटे लोगों का योगदान ना तो मानने को तैयार होते हैं और ना ही उनको उचित मेहनताना देते है, लेकिन यह एक कड़वा सत्य है, बिलकुल उसी तरह जैसे कि यह पूरी दुनियां में मौजूद छोटे २ करोड़ों कीड़े मकोड़े इस प्रागीकरण प्रक्रिया में पूरी मानव जाति की सहायता करते रहते हैं और हमारे दूध देने वाले जानवरों को भी खाने के लिए चारा उपलब्ध करवाने में सहायक सिद्ध होते हैं ! इसलिए, इन्सान हो या जानवर जानवर, किसी को कभी छोटा या तुच्छ नहीं समझना चाहिए!
अल्बर्ट आइंस्टाइन की लोकप्रियता और उनकी विद्वता के चलते बहुत सी लड़कियाँ / महिलाएं उनकी और आकर्षित हो जाया करती थीं। एक बार जर्मनी की एक अमीर और सुन्दर महिला जिसका नाम वह गुप्त रखना चाहते थे और वे उसे मैडम एम के नाम से बुलाते थे, उनसे मिली और बुरी तरह उनकी तरफ़ आकर्षित हो गई! वह जब भी उनसे मिलती, तो कोई न कोई उनके लिए तोहफ़ा ले आती। वे कुछ समय जर्मनी में साथ रहे और फिर आइंस्टाइन लंदन आ गये, वह उनके पीछे लंदन आ गई। उसके बाद आइंस्टाइन अमरीका चले गये, वह वहां भी पहुंच गई। लेकिन अल्बर्ट को उसका जरुरत से ज्यादा पीछा करना अच्छा नहीं लगता था और उन्होंने मैडम एम से इसका कारण पूछा ! उस महिला ने उत्तर दिया कि वह उनसे शादी करना चाहती हैं; लेकिन आइंस्टाइन ने उसे फ़िर से याद दिलाया कि वह पहले ही शादीशुदा है और अपनी पत्नी से खुश हैं ! इसके बावजूद भी वह आइंस्टाइन की सहायता से एक बच्चा पैदा करने की गुहार लगाने लग गई ! वह उनसे अपनी बात मनवाने के इरादे से समझाते हुए बोली, “देखो जब हमारा बेटा होगा, वह मेरे जितना खूबसूरत होगा और आप जैसा महान विद्वान, तीक्ष्ण बुद्धि वाला कोई महान वैज्ञानिक बनेगा, तो कितना बढ़िया होगा ? लेकिन आइंस्टाइन ने उसके इरादों पे पानी फ़ेरते हुए उत्तर दिया, “अगर इसके उल्ट हो गया, तो ?” मैडम एम को आइंस्टाइन का जवाब बहुत बुरा लगा और वह उनसे ख़फ़ा होकर चली गई और इसके बाद उसने आइंस्टाइन को बहलाने फुसलाने के प्रयास छोड़ दिए !
अल्बर्ट आइंस्टाइन अपने जीवन के आख़िरी 15-16 वर्ष अमरीका में ही रहे और 18 अप्रैल, 1955 को 76 वर्ष की उम्र में इस महान वैज्ञानिक का अमरीका के शहर प्रिंस्टन, न्यू जर्सी में निधन हो गया !
आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “