समय के हर गुजरते पल २ के साथ हमारी ज़िन्दगी की घटनाएँ हमारी समृति पटल पर निरंतर जुड़ती रहती हैं, अंकित होती रहती हैं , और कुच्छ अर्सा बीत जाने के बाद हम उनको यादों का नाम दे देते हैं ! जब हम फुर्सत के पलों में इन यादों के झरोखे से दोबारा झाँकने की कोशिश करते हैं , तो यह यादें कभी हमें सुकून देती हैं तो कभी बीते समय के दुःख को भी दोहरा जाती हैं ! यादें कैसी भी हों , यह हमें हमारे अच्छे बुरे तजुर्बे के साथ २ अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने का निरंतर एक जरिया भी बनती रहती हैं ! तो चलो ! आज मैं इस लेख के माध्यम से अपनी नौकरी के शुरुआती दिनों की एक घटना की यात्रा करवाता हूँ !
यह बात 1985 की है , उस वक़्त मेरी पोस्टिंग शुगर डिवीज़न में होती थी ! उस वक़्त मेरे आसन्न अधिकारी (इमीडियेट बॉस) श्री केएनएल भटनागर, जोकि ऋण अधिकारी के पद पर असिन थे, हुआ करते थे ! शुगर डिवीज़न में हमारे और सहकर्मी – श्री डीन दयाल , आरजी शर्मा , एससी सेठ, रेनू पोपली , श्रीमती के आनंदम , टेक चाँद , यूके रथ, एलएस गुप्ता, श्रीमती निरमल चांदना और मनोरंजन बारिक होते थे ! सभी प्रोजेक्ट डिपार्टमेंट्स दो भागों में बाँटे हुए होते थे – मूल्यांकन विभाग और परिचालन विभाग ! मैं और भटनागर जी इस डिपार्टमेंट के मूल्याँकन विभाग में हुआ करते थे ! हमारे पास चीनी की नई मिलें लगाने सम्बन्धी ऋण हेतु ऍप्लिकेशन्स आया करती थी और जब उस कंपनी को ऋण मंजूर हो जाता था और ऋण मंजूरी का लैटर ऑफ इन्टेंट (आशय पत्र ) जारी कर दिया जाता था, उसके बाद हम लोग उस फ़ाइल को परिचालन विभाग में ट्रांसफर कर देते थे ! उस मामले सम्बन्धी आगे की सभी प्रकार की कार्यवाहियाँ करना परिचालन विभाग की ही जिम्मेवारी होती थी !
एक दिन मेरे आसन्न अधिकारी भटनागर जी को इण्टरकॉम पर हमारे महाँप्रबन्धक – पीएस गुरंग (ओ एस डी ) का फ़ोन आया और फ़ोन सुनते ही भटनागर साहेब ने अपनी डॉयरी उठाई और फ़टाफ़ट अपने बॉस के पास चले गए ! उनकी लगभग बीस मिंट मीटिंग हुई और मीटिंग के बाद जब वापिस अपने विभाग में आए तो बड़े परेशान नज़र आ रहे थे ! आकर उन्होंने थोड़ा पानी पीया और अपने सिर को दोनों हथेलियों के बीच पकड़कर सिर झुकाकर बैठ गए , जैसे किसी अपने खास दोस्त मित्र या नज़दीकी रिश्तेदार के बारे में कोई बुरा समाचार मिल गया हो ! विभाग में सभी ने उनको ऐसे उदास / परेशान मुद्रा में बैठे देखा और फिर एक दूसरे को देखने लग गए ! क्योंकि मेरे वह बॉस होते थे, तो मैं अपनी सीट से उठकर उनके पास गया और उनकी परेशानी का कारण पूछा ! जवाब में वह कुछ नहीं बोले, बस मुझे जाने का इशारा कर दिया ! लेकिन मैं गया नहीं , वहीं खड़ा रहा और इतने में शर्मा जी, दीन दयाल जी और सेठ जी अपनी सीट से उठकर आ गए और उनकी परेशानी का कारण पूछने लगे ! भटनागर जी ने सिर ऊपर उठाया और बस एक वाक़्या ही बोला, “बस लगता है कि मेरी अब नौकरी गई !” हम सब यह बात सुनकर हैरान हो गए , ऐसा कैसे हो सकता है, आपने ऐसा क्या कर दिया, कि आपको अपनी नौकरी पर ख़तरा आते दिखाई दे रहा है ?”
जब हम सब लगातार उनको पूछ रहे थे, तो क़ुछ देर ख़ामोश रहने के बाद वह बोले, “मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन अब जो मुझे साहेब ने काम सौंपा है, वह मैं तो क्या, मेरा बाप भी नहीं कर सकता ? तो फ़िर नौकरी कैसे बचेगी ?” हम सबने उनको दिलासा दिया और पूछा कि हमें विस्तार से बतायें कि आख़िर गुरंग साहेब ने क्या काम दिया है जो आपको इतना मुश्किल लग रहा है ? फिर एक लम्बी साँस लेकर वह बोले, “गुरंग साहेब ने नहीं, डॉवर साहेब ने हम दोनों को बुलाया था ! श्री डी एन डॉवर साहेब उन दिनों हमारी कम्पनी के चेयरमैन हुआ करते थे ! मैंने उनसे अगला सवाल किया कि डॉवर साहेब ने ऐसा क्या काम दे दिया है, जिसकी वजह से आप इतना परेशान हो गए हो ? भटनागर जी की हिम्मत उस वक़्त बड़ी कमज़ोर स्थिति में पहुँच चुकी थी और उनको हौंसला देना बेहद जरुरी था, जो हम सभी मिलकर कर रहे थे ! दीन दयाल जी ने भी उनको कुरेदने की कोशिश की – कि आखिर ऐसा कौन सा काम आ गया है जिसके कारण आप इतने परेशान हो गए ? फिर भटनागर साहेब ने सबके कहने पर उत्तर देना शुरू किया, ” मुझे तो पहले गुरंग साहेब का ही फ़ोन आया था, उनके कमरे में पहुँचने के बाद पता चला है कि चेयरमैन साहेब ने हम दोनों को बुलाया है ! डॉवर साहेब ने बड़ी संजीदगी से हमें समझाना शुरू किया – आज से लगभग 3 / 4 वर्ष पहले तक 1250 टन्न प्रतिदिन गन्ने की पेराई वाली चीनी मिल तकरीबन तीन साढ़े तीन करोड़ में लग जाती थी, फिर इसी क्षमता वाली गन्ने की मिल की कीमत बढ़ गई और चार करोड़ हो गई, और अब साढ़े चार करोड़ में लगती है ! इतना ही नहीं , किसी – २ राज्य में तो इसकी कीमत पौने पाँच करोड़ तक भी पहुँच रही है !” पास ही खड़े टेक चंद बोले – “प्रतिवर्ष हर चीज़ की कीमत बढ़ती जा रही है, तो शुगर मिल लगाने की कीमत भी बढ़ रही है?” शर्मा जी ने पूछा, “डॉवर साहेब का यह सब बताने का भाव क्या था ?” भटनागर जी ने अपनी बात जारी रखते हुए फिर कहना शुरू किया , “चेयरमैन साहब ने यह सब बातें बताकर मुझे आदेश दिया है कि मैं पिछले वर्ष दिसंबर तक जिन २ कंपनियों को हमने ऋण मंजूर हुए हैं, उन में से 100 -110 मिलों की परियोजनाओं की कीमत स्टडी करूं और इस पर एक रिपोर्ट बनाकर पेश करूं ! जैसा कि आप सब लोग जानते हैं कि परियोजना कीमत के आठ नौ या दस हेडिंग्स / पॉइंट्स होते हैं , जैसे कि – जमीन की कीमत , आस पास के एरिया का विकास करना, सड़क बनाना, तकनीकी ज्ञान , प्लांट एंड मशीनरी, वगैरह – २ ! और जिस भी हैडिंग के अंतर्गत कीमत ज़्यादा बढ़ रही है – उन बिंदुओं का उस रिपोर्ट में ख़ास तौर पे जिक्र होना चाहिए !” सेठ जी ने सवाल किया, “हम और आप तो ख़ैर बहुत छोटे अधिकारी हैं , क्या गुरुंग साहेब ने भी चेयरमैन साहेब से नहीं पूछा कि आख़िर ऐसी रिपोर्ट बनाकर करना क्या है?” भटनागर साहेब ने उत्तर दिया , “पूछा था, डॉवर साहेब ने उत्तर दिया कि हम वित्तीय संस्धानों के पास भी वित्तीय साधन भी बड़े सीमत ही होते हैं , वह जानना चाहते हैं कि क्या वाक़्या ही चीनी मिल की कीमत इतनी हो गई है या फिर चीनी मिल लगाने वाले प्रमोटर चीनी मिल के नाम से हमसे जरुरत से ज्यादा ऋण ले रहे हैं , क्योंकि सरकार का टारगेट होता हैं कि हम ज़्यादा से ज्यादा कंपनियों को ऋण दें , विभिन्न -२ राज्यों में ऋण दें, देश के सभी राज्यों का ज़्यादा से ज्यादा विकास / प्रगति हो और ज़्यादा से ज्यादा नौजवानों को रोज़गार मिल सके ! केवल इतना ही नहीं, हमें एक वित्तीय संस्था होने के नाते यह भी तो देखना चाहिए कि जिस परियोजना के लिए हम इतनी बड़ी धन राशि लगा रहे हैं, वह सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कितनी न्यायोचित / तर्कसंगत है ?”
भटनागर जी की पूरी बात सुनकर इस बात से सभी सहमत हो गए कि डॉवर ने जिस मकसद से यह स्टडी करने की बात उठाई है और रिपोर्ट बनाने को बोला है, वह है तो बिलकुल वाजिव ! लेकिन भटनागर जी फिर अपनी परेशानी दोहराते हुए बोले , “लेकिन समस्या तो यह है कि यह 100 / 110 कंपनियों की केस स्टडी करेगा कौन, इसको तो कम से कम 7 – 8 महीने लग जाएंगे, लेकिन डॉवर साहेब ने इसके लिए हमें टाइम दिया है एक महीना ? केवल स्टडी ही नहीं करना, इसपे रिपोर्ट भी लिखनी है ! कौन करेगा यह सब ! सेठ जी ने सवाल किया, क्या अपने या गुरंग साहेब ने चेयरमैन साहब से पूछा कि यह काम करना कैसे है ? भटनागर जी ने उत्तर दिया, “हाँ पूछा था ! जवाब मिला – प्रोजेक्ट कोस्ट के ग्राफ़ बनाओ, और ग्राफ़ मैंने तो कभी बनाए ही नहीं, मुझे तो उनके सिर पैर का कुछ भी पता नहीं ? ग्राफ़ सुनकर मैंने बीच में इंटरफीयर किया , “हाँ ! यह काम तो ग्राफ्ज़ के माध्यम से ही हो सकता है ! और मैं यह काम कर सकता हूँ !” मेरी बात सुनकर सभी बड़ी हैरानगी से अपने माथे सिकोड़कर स्वावलिया दृष्टि से मेरी तरफ़ देखने लगे और भटनागर जी बोले, “भारद्वाज ! यह कोई मज़ाक का वक़्त नहीं है, हम इतना परेशान हैं और आप हमें बहलाने की कोशिश कर रहे हो ?” मैंने भी पूरी संजीदगी से जवाब दिया, “नहीं भटनागर जी ! यह काम इतना मुश्किल भी नहीं है ! मैं कर सकता हूँ , बस मुझे 110 कंपनियों के लिए बनाये गए मूल्याँकन रिपोर्ट्स अगर मिल जाएं , तो मैं यह काम कर सकता हूँ !” लेकिन भटनागर जी को अब भी यकीन नहीं आ रहा था ,और उन्होंने सवाल किया, “क्या आपने कभी ग्राफ्ज़ बनाये भी हैं ?” मैंने उत्तर दिया, “जी हाँ ! बहुत बार ! आपकी जानकारी के लिए मैं बता देता हूँ कि मैंने ग्रेजुएशन में जियोग्राफी (भूगोल ) पढ़ा हुआ है, और हमने जब भी देश के विभिन्न २ राज्यों में बरसात , तापमान की तुलना दिखानी होती थी, या फिर गेहूं , चावल , मक्की , बाजरा, आलू और अनेक किस्मों की दालों की पैदावार दिखानी होती थी, तो हम इन सबके ग्राफ्ज़ ही बनाया करते थे ! इसके अलावा – अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ जैसे कि लोहा, कोयला, चाँदी , पेट्रोल, ताम्बा , टिन , इत्यादि का उत्पादन अलग २ राज्यों में कितना २ होता है , यह सबका तुलनात्मिक अध्ययन हम ग्राफ़िक्स के माध्यम से ही किया करते थे !” मेरी बातें सुनकर केवल भटनागर जी ही नहीं , हमारे सेक्शन के लगभग सभी लोग वरिष्ठ अधिकारी बड़े ताजुब से मुझे देखने लग गए और फिर मुस्कराते हुए भटनागर जी को कहने लगे, “भटनागर जी ! चलो आपकी यह चीनी मिलों के अध्यन करने की समस्या तो लगता है, अब हल हो जाएगी ! भारद्वाज यह काम सम्भाल लेगा !”
इसके बाद बाकी सभी सहकर्मी तो अपनी २ सीटों पर चले गए लेकिन मैं और भटनागर जी बैठे रहे ! भटनागर जी ने मुझे फिर से पक्का पूछने के लिए सवाल किया ,”क्या सचमुच आप यह काम कर सकते हो ?” मैंने उत्तर दिया , “जी बिलकुल कर सकता हूँ , आप चिंता मत करो , मेरा विश्वास करो ! लेकिन यह सब ग्राफ्स बनाने के लिए मुझे कुछ अलग तरह की स्टेशनरी चाहिए , जिसके द्वारा मैं यह काम कर सकूं !” “हाँ ! क्यों नहीं , आप ऐसा करो, आपको जो २ समान चाहिए, आप इसके लिए एक नोटिंग लिख दो , मैं इसे सेवाएं विभाग में भेज देता हूँ , जैसे ही स्टेशनरी आती है, आप यह काम शुरू कर दीजिए !” मैंने स्टेशनरी की लिस्ट बनाई और सेवाएं विभाग में भेज दी ! थोड़ी देर बाद सेवाएं विभाग से मुझे एक अधिकारी – एएस ऋषि का इण्टरकॉम पर फ़ोन आया और उन्होंने मुझे वहाँ बुलाया ! स्टेशनरी की लिस्ट देखकर ऋषि जी ने मुझे कहा कि, अमूमन ऐसी स्टेशनरी हम मंगवाते नहीं हैं, अगर आपको चाहिए तो ऐसा करो, आप खुद ही जनपथ पर जाकर यह सब आइटम्स खरीद लें और हम आपके बिल की अदायगी कर देंगे !” तो ऐसे मैंने स्टेशनरी शॉप से अपनी जरुरत के हिसाब से रंगीन पेंसिल्स , 20 / 25 बड़े चार्ट्स, रूलर वगेराह सामान खरीद लिया और सेक्शन में आने के बाद भटनागर जी ने फिर मुझे बुलाया और समझाने लग गए , “देखो भारद्वाज ! आप यह काम करने लगे हो तो बड़ी अच्छी बात है, लेकिन एक और बात भी है, जिसका हम दोनों को ध्यान रखना है ? इस काम के अलावा आपका जो रोजाना का नार्मल काम होता है, इसके चक्कर में कहीं वोह पेंडिंग ना रह जाए , इसके बारे में भी हमें बात कर लेनी चाहिए ?” मैंने सवाल किया, आपकी इतनी बड़ी समस्या हल करने का मैंने वादा किया है और आप मुझे यदि रोजाना वाले काम से फ्री नहीं करेंगे, तो मैं 100 – 110 शुगर मिल्स की स्टडी कैसे करूँगा ?” “हाँ ! मैं समझता हूँ कि आपने बहुत बड़े काम की जिम्मेवारी ली है , लेकिन इसकी वजह से बाकी काम की अनदेखी नहीं होनी चाहिए , इसके लिए मैं सोचता हूँ कि आप लंच तक रोजाना अपना नित प्रतिदिन का काम कर लिया करो और लंच के बाद यह ग्राफ्स बना लेना !” लंच के बाद मैं आपको कोई और काम नहीं दूंगा , यह मेरा वादा रहा !” मुझे उनकी बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी, लेकिन मैंने संक्षेप में उत्तर दिया , “चलो ठीक है, ऐसा ही करेंगे !”
अगले दिन सबसे पहले जरुरी काम के लिए यह था कि पिछले वर्ष दिसम्बर से शरू करते हुए फ़ाइल रजिस्टर से पिछले 110 कैसिज की लिस्ट बनाई और उनकी मूल्याँकन रिपोर्ट्स ढूंढ़ना शुरू किया ! उस लिस्ट में से पहले केवल पच्चास मामलों की मूल्याँकन रिपोर्ट्स इक्कठी की ! कुछ तो आसानी से मिल गए और कुछ के लिए काफ़ी माथापच्ची करनी पड़ी ! पुराणी बंद पड़ी अलमारियों और धूल मिट्टी से सन्ने हुए रैक्स में से यह रिपोर्ट्स ढूंढ़ने में मेरे कपड़े भी अक्सर गंदे हो जाते ! फिर उन मूल्याँकन रिपोर्ट्स में से उन शूगर मिलों की कीमत की सारणियाँ एक कॉपी पर नोट की, उसके बाद ग्राफ्स बनाने का काम शुरू हुआ ! और इस पूरे काम के लिए मुझे हमेशा खड़े रहना पड़ता था, क्योंकि ग्राफ्स बनाने का काम बैठकर नहीं किया जा सकता ! मेरे सेक्शन में से कभी कोई उठकर आ जाता, कभी कोई और , यह देखने और समझने के लिए कि यह काम आखिरकार मैं कर कैसे रहा हूँ ? उन सबके लिए यह एक नया तजुर्बा था ! हमेश मुझे कोई न कोई यही कहता , भारद्वाज, बैठ जा, सारा दिन खड़े २ थक जायेगा ! शाम होते – २ मैंने जब 7-8 कंपनियों का पहला ग्राफ बनाया तो मेरे सहकर्मी कहने लगे , “भारद्वाज ! यह ग्राफ देखने में तो बहुत बढ़िया लग रहा है, लेकिन इससे समझायेगा कैसे, कि चार्ट में किन्न – २ कारणों की वजह से चीनी मिल की कीमत बढ़ रही है ? दफ़्तर में काम करने वाले सभी सहकर्मी हमारे दोस्त नहीं होते, क्योंकि उन में से कुछ तो उलटी सीधी टिप्णियाँ भी करते रहते थे ! इस लिए मैं उनको आम भाषा में ही जवाब दे देता, “देखो ! अभी तो चावल साफ़ करके, इसमें एक खास मात्रा के हिसाब से इसमें चावल, चिक्कन, अधरक, लहसुन, निम्बू , दाल चीनी और अन्य सामग्री मिलाकर कूकर गैस पर चढ़ाया है, जब यह बिरयानी पककर तैयार हो जाएगी, फिर मैं आपको दिखायूँगा, तब आप चखकर खुद ही इसका स्वाद बताना ?”
अब यह मेरा रोज का ही काम हो गया था, ग्राफ्स बनाने के लिए पहले एचबी पेंसिल से कच्चा काम करना, फिर अलग २ बड़े चार्ट पे किस्म की लाईने लगाना, फिर उसमें रंग भरना और चार्ट के बेस में कंपनियों के नाम लिखना , जिससे उस कंपनी की लागत पता चल सके और जब हम एकसार एक ही चार्ट में 6 / 7 कंपनियों की लागत को देखते हैं तो हमें उनकी तुलनात्मिक लागत पता चलती है ! साथ ही साथ मैं उन कम्पनियॉ को ऋण मंजूरी की तारीखें भी लिख रहा था , ताकि यह भी पता चल सके कि इसकी कीमत कब २ बढ़नी शुरू हुई है ! जैसे २ मेरा यह काम आगे बढ़ता जा रहा था , भटनागर जी के चेहरे पर संतोष की झलक दिखाई देने लग गई ! उनको यकीन होने लग गया अब यह काम मुक्कमल होने में ज़्यादा देर नहीं है और इसके बाद हमारे महाप्रबंधक भी उनसे खुश हो जाएंगे ! लेकिन हमारे सेक्शन के अन्य सहकर्मी भटनागर से चोरी २ मेरे पास आकर यह भी मुझे बोल देते, “भारद्वाज ! सबी देख रहे हैं कि आप कितने दिनों से इतनी ज्यादा मेहनत तो कर रहे हो, इस काम के लिए आपको सारा दिन खड़े ही करना पड़ता है, लेकिन इसका श्रेय आपको नहीं मिलेगा, आपका बॉस ही पूरा क्रेडिट ले जायेगा !” मैं सबकी बातें सुनता रहता, लेकिन अपने काम में बिज़ी रहता ! ऐसे करते लगभग 24 / 25 दिन में मैंने 110 कंपनियों के तुलनात्मक ग्राफ्स बनाने का काम पूरा कर दिया ! जब मैंने भटनागर जी को इसकी सूचना दी तो वह बड़े प्रसन्न हो गए और कहने लगे इन सबको लपेट दो, मैं अभी पहले गुरंग साब को दिखाता हूँ !” मैंने उत्तर दिया, “भटनागर जी ! यह तो अभी केवल ग्राफ्स ही मुक्कमल हुए हैं, इनको समझाने के लिए रिपोर्ट लिखनी तो अभी बाकी है !” मेरी बात सुनकर उन्होंने माथे पे हाथ मारा और बोले, “अरे हाँ ! मुझे भी याद आ गया , चेयरमैन साहेब ने बोला था, ग्राफ्स बनाने के बाद 7- 8 पन्नो की रिपोर्ट भी बनाई जाएगी, ताकि ग्रैफ्स द्वारा सिद्ध की गई बातें आसानी से समझ आ सकें !” मैंने उनको पूरी बात समझाते हुए अनुरोध किया कि यह सभी ग्राफ्स मैं आपको समझा देता हूँ , ऐसा करो कि इनकी रिपोर्ट आप ड्राफ्ट कर लेना ! सुनकर भटनागर जी थोड़ा गुस्से से मुझे देखने लग गए और फिर बोले, “ऐसा है, भारद्वाज ! यह सभी ग्राफ्स तो अपने ही बनाए हैं, तो इनको समझाने के लिए रिपोर्ट का ड्राफ्ट / मसौदा भी आप ही बना देना, फिर उसे फाइनल मैं कर दूँगा !” इतना बोलकर वह वहाँ से उठकर अपनी सीट की और चल दिए !
मेरी सीट के पास ही बैठे टेक चंद, जिसने मेरी और भटनागर की सारी बातें सुन ली थी, भटनागर जी के जाने के बाद उन्होंने मेरी तरफ़ बड़े बेचारगी के आलम में देखा और धीरे से कहा , “याद है ना , हमने आपको क्या बोला था ?” ख़ैर , दूसरे दिन मैंने एक २ ग्राफ सामने रखकर उसपे ड्राफ्ट रिपोर्ट के लिए पॉइंट्स नोट करने शुरू किये और ऐसे करते २ दो दिन में रिपोर्ट भी तैयार कर दी ! जब वह रिपोर्ट भी तैयार हो गई , भटनागर जी ने मेरी लिखी हुई रिपोर्ट सरसरी नज़र से देखी, फिर सभी ग्राफ्स लपेटकर, रिपोर्ट उठाकर चलने लगे ! उनको ऐसा करते हुए देखकर मुझे बड़ा ताजुब हुआ और मैं थोड़ा जोर से बोला , “भटनागर जी ! यह आप क्या कर रहे हो, थोड़ा रुको, मैं भी आपके साथ चलता हूँ ! ” लेकिन मेरी बात को अनसुना करते हुए भटनागर जी बोले, “भारद्वाज ! आज शाम की फ़लानी कंपनी के अधिकारी आ रहे हैं , आप उस केस की फ़ाइल ज़रा देख लेना !” इतना बोलकर भटनागर जी महाप्रबंधक के कमरे की और चल दिए, उसके बाद उन दोनों ने चेयरमैन साहेब के पास जाना था !” भटनागर जी का यह रवैया देखकर हमारे सेक्शन के सभी सहकर्मी मेरी तरफ़ बड़ी दया की दृष्टि से देखने लग गए, एक ने फिर से बोल दिया , “हमने तो आपको पहले ही समझाया था कि इतनी मेहनत मत करो, इसका पूरा क्रेडिट आपका बॉस ही ले जायेगा ! शायद आपको पता नहीं है कि पिछले 7 – 8 वर्षों से भटनागर जी की प्रमोशन नहीं हुई है, अब इस काम के ज़रिये उनको अपनी प्रमोशन होती नज़र आ रही है !” बॉस के व्यवहार से गुस्सा तो मुझे बहुत आ रहा था , खैर मैं अपना गुस्सा अंदर ही पी गया और मैंने थोड़ा हिम्मत से काम लेते हुए उत्तर दिया , “कोई बात नहीं ! अब मैं चाहता हूँ कि गुरंग साब या फ़िर चेयरमैन साहेब यह ग्राफ्स देखकर पाँच सात सवाल अवश्य पूछें , भटनागर जी उनके किसी भी सवाल का जवाब तो दे नहीं सकते ! उन्होंने तो यह ग्राफ्स अच्छी तरह समझे भी नहीं हैं !”
तो ऐसे अपनी प्रतिक्रिया देकर मैं अपनी सीट पर बैठकर वैसे ही फाईलें इधर उधर सरकाने लग गया ! मेरा अब काम में दिल नहीं लग रहा था ! मुझे ख़फ़ा देखकर एक दोस्त पास आया और मुझे समझाने लगा , “भारद्वाज ! दिल पे मत ले, यार ! दुनियाँ इसी का नाम है , यहाँ कमाता कोई है और खाता कोई और है ! बहुत जगह ऐसे ही चल रहा है ! आपने भी तो देखा होगा कि सारी दुनियाँ के लिए तरह २ फ़सलें उगाने वाले किसान को भी उसकी मेहनत का फ़ल कब मिलता है ? चल उठ , कैन्टीन चलते हैं, मैं तुझे कॉफ़ी पिलाता हूँ ! मेरे मना करने के बावज़ूद भी वह मुझे खींचने लग गया ! हम उठकर अभी अपने सेक्शन से बाहर भी नहीं निकले थे कि इण्टरकॉम की घंटी बजी, दीन दयाल जी ने फ़ोन सुना और मुझे आवाज़ देकर बोले , “भारद्वाज ! आपको चेयरमैन सेक्रटरिएट में बुलाया है , जोगिन्द्रा जी का फ़ोन है, जल्दी वहाँ पहुँच !” फ़ोन वाली बात सुनकर मेरे दोस्त ने अपने आप ही मेरा हाथ छोड़ दिया और मैं फ़टाफ़ट अपनी कॉपी लेकर आठवीं मंज़िल पर जोगिन्द्रा जी के केबिन में पहुँच गया ! मुझे आते ही देखकर उन्होंने चेयरमैन साहब से बात की और फिर मुझे अंदर जाने के लिए इशारा कर दिया ! अंदर जाकर देखा कि चेयरमैन साहब भटनागर जी से कुछ सवाल पूछ रहे हैं लेकिन भटनागर जी उसका कोई जवाब नहीं दे पा रहे थे ! मुझे आया देखकर उन्होंने चेयरमैन साहेब से कहा , “सर ! यही है भारद्वाज , इसी ने यह ग्राफ्स बनाये हैं और आपके सवालों का जवाब यही दे सकता है !” अपने टेबल पर फ़ैलाये हुए एक चार्ट की ओर इशारा करके चेयरमैन साहेब ने सवाल किया , “भारद्वाज ! यह बताओ कि इस ग्राफ में यह चार पाँच अलग २ रंगों की लाईनों की ऊँचाई देखकर हम कैसे अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस कंपनी की लागत कितनी आई थी ?” मैंने बड़े धीरज से उत्तर दिया , “सर ! प्रत्येक ग्राफ़ की एक इंच लम्बाई कीमत के पाँच लाख दर्शाती है , आप किसी भी मामले में अलग २ हेड्स में कितनी कीमत आई है , यह जानने के लिए उसकी इंचों में लम्बाई देखनी है, और इन सभी ग्राफ्स का स्केल भी नीचे दिया हुआ है , जैसे कि अगर हमने इस मामले के बारे में जानना है , तो इसमें जमीन की यह लाइन साढ़े सात इंच है, इसका अर्थ है कि जमीन की कीमत 37.5 लाख रूपये है , और इसमें दूसरा बड़ा खर्चा गन्ने की मिल की मशीनों की कीमत नौ इंच की लाइन 45 लाख रूपये दर्शाती है , इसी तरह हम किसी भी मिल की पूरी कीमत और उसमें अलग २ हेड्स में क्या कीमत आई है , यह भी हम जान सकते हैं !”
तो ऐसे करते २ डॉवर साहेब ने आठ दस ग्राफ्स देखे और अपने सवालों के माध्यम से उनकी कीमतों की जानकारी हासिल की ! फिर मुझे पूछने लगे, “आपने तो यह सारे ग्राफ्स बनाये हैं , इनसे आपको क्या पता चला कि किन २ कारणों की वजह से चीनी मिलों की कीमत इतनी बढ़ रही हैं ! मैंने उनको अलग २ ग्राफ्स दिखाते हुए बताया कि वैसे तो अलग २ राज्यों में जमीन की कीमत में थोड़ा अंतर भी है , लेकिन अगर हम इनसे किसी पक्के नतीजे पे पहुंचना है तो यह पता चलेगा कि चीनी के कारखानों की कीमत बढ़ने के मुख्या तौर पे दो तीन कारण है – सबसे बड़ा – वहाँ की जमीन की कीमत और उसके विकास के खर्चे, दूसरा – फैक्ट्री में लगने वाली मशीनरी और तीसरा – टेक्नॉलजी ट्रांसफर के खर्चे ! ऐसा भी नहीं है कि बाकी खर्चों हमेशा एकसार ही रहे हों, वह भी थोड़े २ बढ़ते रहे हैं, लेकिन यह तीन पहलुओं की वजह से चीनी मिल लगाने की कीमतें ज़्यादा बढ़ी हैं !
इस स्टडी से एक और बात सामने आई है – हमारे देश में चीनी के लगभग 80 प्रतिशत कारखाने सहकारी क्षेत्र में और 20 प्रतिशत प्राइवेट क्षेत्र में लगे हैं ! उसके बाद चेयरमैन साहेब ने कुछ और सवाल भी किए जिसका मैंने ग्राफ्स सामने रखकर उनको तस्सली से जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शाँत किया ! उसके बाद चेयरमैन साहेब ने उसपे लिखी हुई रिपोर्ट पढ़ने के लिए रख ली और हम वापिस अपने सेक्शन में आ गए ! और हाँ ! पहले कुछ वर्षों की तरह ही उस वर्ष भी भटनागर जी की पदोन्नति नहीं हो पाई !
रचना : आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “