प्रवीण कुमार शर्मा
प्रक्रति प्रेमी
मैने पूछा
इतनी गर्मी, इतनी सर्दी
तुम (प्रकृति) बदल रही हो।
प्रकृति बोली
इतना कूडा, इतनी गन्दगी
तुम (मनुष्य) बदल रहे हो।
प्रदूषण बढ़ रहा है।
गाड़िया बढ़ रही है।
Park before 4 months |
मनुष्य मर रहे है।
पेड़ कट रहे है।
मैने पूछा
ये कैसे जवाब है।
ये कैसे सवाल है।
ये कैसा मजाक है।
मुझे जो दिया है
वही लोटा रही हूँ
प्रकृति बोली
अब बस भी करो
पार्क और अपने आस-पास
का वातावरण
बीमारिया, डेंगू व मलेरिया फैला रहे है
अब बस भी करो
पार्क और आपके आस-पास
के इन्सान
कूडा, करकट व गन्दगीं फैला रहे है।
Park after adopted by SDWSociety, NGO(Regd.) |
अब बस भी करो
यही तो मै कह रही हूँ
प्रकृति बोली
अब बस भी करो
जाकर नरेश लाम्बा जी से मिलो।
पार्क का सौन्दर्यकरण
एक अच्छी शुरूआत है।
प्रकृति बोली
मेरा प्रकोप ग्लोबल वार्मिंग
तुम बदले, मै बदली, मौसम बदला
अब भी वक्त है सुधर जाओ
धरती को हरा-भरा बनाओ
कुछ ओर नए वृक्ष लगाओं
कुछ ओर पार्को को सुन्दर बनाओ
मै तुम्हे खुशियों की सौगात दूँगी
अनाज, सब्जीयों से धरती को भर दूँगी
धरती को रगों में रंग दूँगी
तुम्हारे जीवन को फूलो की खुशबु से भर दूँगी
प्रकृति बोली।
प्रकृति बोली।।