ईद पर विशेष संपादकीय

मीर का ईद के बारें में शेर पर गौर फरमाएँ 
ईद आई है बन के दुल्हन दोस्तों,
खिल उठे हैं चमन-दर-चमन दोस्तों। 
मिल रहे हैं खुशी से यहाँ सब गले, 
… एक होने लगे जान-ओ-तन दोस्तों। 


जी हाँ आज ईद के मौके पर उक्त पंक्तियाँ हमारे दिलो-दिमाग में नई ऊर्जा भर देती है। वैसे दुनिया हर धर्म एक अच्छे इंसान बनने का सबक देता है। एक दूसरे धर्म व इंसान को इज्जत बकशने का पैगाम देता है। पिछले दिनो मुझे निज़ामुद्दीन औलिया अपनी बॉलीवुड स्टार वीना मलिक द्वारा मज़ार पर चद्दर चढ़ाने की वजह से जाना हुआ। वहाँ रोजे के दिनों में मुसलमान भाइयों को मस्जिद में जाकर नमाज व रोजा खोलने की प्रक्रिया को नजदीकयों से देखने का मौका मिला। वहाँ स्थित एक बुक स्टाल से मैंने एक पुस्तक खरीदी जिसमें निम्न पंक्तियाँ मुझे भा गई। वही आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ।


तबलीग
मुसलमानो!
तुम आराम और राहत के लिए नहीं पैदा किए गए। तुम इस लिए पैदा किए गए हो कि इस्लाम का बोल बाला करो, अल्लाह से रिश्ता जोड़ो, इंसाफ और सच्चाई को फैलाओ और बुरी बातों को दुनिया से खत्म करो। 
मुसलमान होने का यह मकसूद नहीं कि दुनिया में ऐश व आराम मिलेगा, या दौलत या इज्जत मिलेगी। मुसलमान होने का मतलब यह है कि इंसाफ और सच्चाई के रास्ते पर अमल करो, अपनी आखिरत दुरस्त करो। तुम अगर इंसाफ और सच्चाई के रास्ते पर अमल करोगे तो दुनिया की इससत और दौलत भी तुम्हारे कदम चूमेगी मगर पहले सच्चाई के साथ जीना सीखो, इंसाफ के लिए मरना सीखो, अल्लाह के लिए कुर्बान होना सीखो।  


दीन और ईमान की आज़माइश 
मुसलमानो!

अल्लाह के प्यारे नबी मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलेहि व सल्लम की ज़िंदगी से सबक हासिल करो। 
दीन के लिए मुसीबतें उठाना सीखो। 
ईमान के लिए अजीयतें सहनी सीखो। 
सच्चाई के लिए कुर्बान होना सीखो।
सच्चों के लिए मरना सीखो। 
अल्लाह के लिए शहीद होना सीखो। 

उक्त पंक्तियाँ इस्लाम धर्म के बारें में हज़रत मौलाना हकीम मुहम्मद अखतर साहिब द्वारा रचित 
“रसूलुल्लाह अलेहि वसल्लम की सुन्नतें” पुस्तक के पृष्ठ संख्या 48 से ली गई हैं। जिसमें मुसलमियत को बखूबी बयां किया गया है। ना जाने फिर भी हम एक दूसरे के धर्मों में क्यों दोषारोपण करते हैं।


ग्रन्थ चाहें वह किसी धर्म के हों हिंसा की कहीं पर आज्ञा नहीं देते हैं धर्म के तथाकथित ठेकेदारों नें अपनी अपनी धार्मिक दुकानें चलानें के लिए साम दाम दंड भेद इन चारों नीतियों को अपना रखा है और हम उनकी बातों में फसकर अपने उन संतों के आदर्शों को भूलते जा रहें है जो हमें सद्भाव और मैत्री की शिक्षा देते हैं | हम स्वार्थवश यह भी भूलते जा रहे हैं की हमारे पैगम्बर और अवतार हमें जो ज्ञान और शिक्षा देकर गए हैं वह आज भी हमारे सर्व मान्य ग्रंथों में स्वर्णाक्षरों में उचित प्रकार से मौजूद है हम अवतारों और पैगम्बरों के नाम पर आडम्बर तो बहुत करते हैं परन्तु उनके मूल उद्देश्यों से भटकते जा रहें हैं | अगर हम आपस में भाईचारा रखते हुए सबसे प्रेम का व्यवहार रखेंगे तभी सर्वधर्म समभाव् और अहिंसा परमोधर्मः का अर्थ स्पष्ट कर पायेंगे, जो हमारी आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करने में सर्वोत्तम सहायक सिद्ध होगा|

All humans are humans, the only difference is their believing and no one should really bothered by each other. Leave peacefully and let other peacefully.

अल्लामा इक़बाल का यह शेरमजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,

हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ता हमारा ||
अपने आप ही खुद की खुदाई बयां कर देता है। 
सभी धार्मिक त्योहार किसी विशेष धर्म की धरोहर नहीं है वे हर उस इंसान का त्योहार जो इंसानियत के बात करे। आओ सभी धर्मों के लोग दिल से गले मिलकर ईद मनाएँ। हिंदुस्तान ही नहीं पूरे जगत को अपना घर समझे और सभी देशवाशियों को अपना सगा व हितैषी समझकर स्वच्छ समाज निर्माण में सहायक साबित हो सकें। तभी इंसानियत की जीत होगी जो सभी धर्मों से बढ़कर है हमें इसका सम्मान करना चाहिए। आपके सुझाव व प्रति क्रियाएँ अपेक्षित हैं। उचित समझे तो जरूर शेयर करें। इससे हमें और अधिक प्रेरणा मिलेगी। 

सुरेन्द्र सिंह डोगरा
ssdogra@journalist.com

Photo : Shivam Saxena