प्रो. उर्मिला पोरवाल (सेठिया)
लोहड़ी पर्व : पंजाब की सभ्यता का प्रतीक है। पंजाब एक ऐसा राज्य है, जहां हर दिन कोई ना कोई त्योहार मनाया जाता है। पंजाबी दुनिया में जहां अपनी अलग पहचान रखते हैं, पंजाबी समाज की विशेषता गुरुबानी व कुर्बानी का पर्व है। पंजाबी हमेशा गुरु की बानी और उनके द्वारा दिए गए संस्कारों पर चलने की कोशिश करते हैं और कुर्बानी में भी आगे रहते हैं चाहे वह धर्म के लिए हो देश के लिए। पंजाब के त्योहारों की भी अपनी एक अलग जगह है।
बाकी त्योहारों जैसे दिवाली, वैसाखी की तरह इस त्योहार के साथ कोई धार्मिक घटना नहीं जुड़ी हुई है, इसी कारण यह त्योहार पंजाब की सभ्यता का प्रतीक बन गया है। लोहड़ी शब्द तिल + रोड़ी शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
लोहड़ी का सबंध कई ऐतिहासिक कहानियों के साथ जोड़ा जाता है इस त्योहार का सबंध फसल से भी है, इस समय गेहूं और सरसों की फसलें अपने यौवन पर होती हैं, खेतों में गेहूं, छोले और सरसों जैसी फसलें लहराती हैं।
पंजाब का परंपरागत त्योहार लोहड़ी केवल फसल पकने और घर में नए मेहमान के स्वागत का पर्व ही नहीं, यह जीवन में उल्लास बिखराने वाला उत्सव है। लोहड़ी के मौके पर ऐसा ही उत्साह और उमंग देखने को मिलता है.
लोहड़ी के दिन गुरुद्वारों में भी इस पर्व पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है। गुरुद्वारा बंगला साहिब एवं अन्य गुरुद्वारों के सरोवरों में लोग डूबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करते हैं। गुरुद्वारों में विशेष शबद कीर्तन भी होता है। इस उत्सव के दिन का अनोखा ही नजारा रहता देता है जिसमें श्रद्धालुजन यमुना स्नान, गुरुद्वारों के पवित्र सरोवरों में स्नान एवं दान-पुण्य में मशगूल रहते हैं।
मकर संक्राति से पूर्व शाम के समय लोग लकड़ियां जलकर आग सेंकते हुए लोक गीतों का आनंद लेते हैं। ढोल की थाप पर थिकरते लोग गिद्दा और भांगड़ा करते हुए लोहड़ी पर्व मनाते हैं। प्रातःकाल नदियों में स्नान करने के बाद आने वाले लोगों के लिए आग जलाकर रखने का धार्मिक महत्व भी छिपा हुआ है। भारत की लोक संस्कृति में परोपकार की भावना निहित होती है। इस उत्सव को विशेषकर पंजाब के लोगों द्वारा बड़े उत्साह के साथ बनाया जाता है। इस अवसर पर खुशी मनाते हुए रेवड़ी, गजक, मूंगफली एवं गुड़ चना बांटते हुए बधाइयां दी जाती हैं। नर-नारी, बालक-वृद्ध सभी एक साथ इस उत्सव में नाचने लगते हैं।
देश भर में लोहड़ी की धूम मची रहती है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ मस्ती में झूमते हुए एक-दूसरे को बधाई देते हैं। समय के बदलते रंग के साथ कई पुरानी रस्में और त्योहारों का आधुनिकीकरण हो गया है, लोहड़ी पर भी इसका प्रभाव पड़ा है।
भले कुछ भी हो, लेकिन लोहड़ी रिश्तों की मधुरता, सुकून और प्रेम का प्रतीक है। दुखों का नाश, प्यार और भाईचारे से मिलजुल कर नफरत के बीज का नाश करने का नाम है लोहड़ी। लोहड़ी की रात परिवार और सगे-सबंधियों के साथ मिल बैठ कर हंसी-मजाक, नाच-गाना कर रिश्तों में मिठास भरने, सद्भावना से रहने का संदेश देती है। लोहड़ी की महत्ता आज भी बरकरार है,
लोहड़ी जैसे परंपरागत त्योहार सभी को उत्साह व उमंग से भर देते हैं। इस त्योहार के माध्यम से समाज में आपसी मेल-मिलाप व भाईचारा बढ़ता है। ऐसा लगता है कि पूरा पंजाब उमड़कर एक जगह आ गया हो।
नए साल का यह पहला त्योहार लोगों के दिलों को खुशियों से भर देता है। लोहड़ी का त्योहार जीवन में खुशहाली का संदेश लेकर आती है। वस्तुतः अगले दिन इसके मकर संक्राति रहती है मकर संक्रांति सूर्य दर्शन का पर्व है मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय और धार्मिक भावना को सुदृढ़ करता है। इस दिन अथवा एक दिन आगे-पीछे भारत में मकर संक्रांति का पर्व पूर्वी-उत्तर भारत में खिचड़ी पर्व, पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, केरल में अयप्पा दर्शन, पूर्वी भारत में बिहू आदि पर्वों की श्रृंखला है। पवित्र नदियों एवं सरोवरों के तट पर स्नानदान एवं मेलों की परंपरा है। मकर राशि में जब सूर्य देवता आते हैं तो देवता, नाग, गंधर्व, किन्नर, ऋषि-मुनि, संत आदि घाटों पर स्नान करते हैं। रामचरित मानस में भी संक्रांति पर्व का महत्व बताया गया है। इस दिन स्नान से मनुष्य शारीरिक व मानसिक रोगों से मुक्त होता है। लोहड़ी और मकर संक्राति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!