आत्मज्ञान


वासुदेव शर्मा  

पंडित लोग (बुद्धिमान) न मरों का शोक करते हैं, न जीवितों का | इस देह में बचपन (लड़कपन), जवानी, बुढ़ापा ये अवस्था होती हैं, तैसे ही मृत्यु के बाद दूसरी देह की भी होती है | हे नरश्रेष्ठ ! सुख-दुःख को सामान मानने वाले जिस वीर पुरुष को ये बाह्य पदार्थ क्लेश नहीं देते, वह मोक्ष पाने का अधिकारी है | 

इस नाश रहित आत्मा का विनाश करने में कोई समर्थ नहीं है | जो पुरुष इस आत्मा को मारने वाला तथा जो मरने वाला मानते हैं, ये दोनों ही ज्ञानी नहीं हैं | क्योंकि यह आत्मा न मरती है, ना मारती है, आत्मा न कभी जन्मती है और न कभी मृत्यु को प्राप्त होती है | नष्ट होने पर भी वह नाश को प्राप्त नहीं होती | जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को फेंककर नए वस्त्र ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुरानी देह छोड़कर नई देह धारण करती है | यदि तुम इस आत्मा को नित्य जन्म लेने और नित्य मरने वाली मानते हो तो भी तुमको शोक नहीं करना चाहिए क्योंकि जो जन्मा है, उसकी मृत्यु और जिसकी मृत्यु हुई है उसका जन्म निश्चय है अतएव जो बात अनिवार्य है, उसके लिए सोच करना व्यर्थ है | जन्म लेने से पहले क्या था – किसी को मालूम नहीं, फिर मरने के पीछे क्या होगा कोई नहीं जानता |

तुमको केवल कर्म करना चाहिए फल तुम्हारे अधिकार में नहीं है | फल की आशा त्यागकर, कार्य की सफलता को समान मानकर तुम योगस्थ होकर कर्म करो | यही कर्म ज्ञानयोग है | कर्मफल को त्यागकर ही बुद्धि युक्त ज्ञानी पुरुष जन्म-बंधन से हटकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं |