“नेम-फेम से परे रहते पत्रकारिता करना जुनून है ” प्रोफेसर हंसराज सुमन
हिंदी पत्रकारिता हो या अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पूरी तरह माहिर। दिल्ली शहर में एक जाना पहचाना नाम है लेकिन यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है जिन्हें हम चलता फिरता पत्रकारिता कोश कहते हैं।पत्रकारिता की परिभाषा वे स्वंय गढ़ते है और कहते हैं कि बंधी-बंधाई परम्परा का निर्वहन तो सब करते हैं पर कुछ नया करके दिखाओ तो हमारा पाठक, दर्शक आपको लंबे समय तक याद करते हैं उसकी स्मृति पटल पर आपकी छवि अंकित रहती है। ऐसा मानना है श्री एस एस डोगरा जी का। श्री डोगरा जी वरिष्ठ पत्रकार ,स्क्रिप्ट राइटर,फ़िल्मकार,फीचर लेखक के अतिरिक्त अनेक मीडिया समूह से संबद्ध रहे हैं। इनका पत्रकारिता के क्षेत्र में 27 साल का अनुभव है। वे पत्रकार के साथ-साथ कई खेलों में रुचि रखने वाले खिलाड़ी भी है। इसीलिए उनकी रुचि पत्रकारिता की कई विधाओं में है।पत्रकारिता के दौरान वे देशभर के खेल, शिक्षा,पर्यटन, बॉलीवुड की महान हस्तियों के साथ साक्षात्कार ले चुके हैं।इसके अतिरिक्त आपने विभिन्न समाचार पत्रों जैसे–हरिभूमि, पंजाब केसरी, नायक भारती, पेपरमार्ट, दैनिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, गढ़वाल पोस्ट, गंभीर समाचार, हिमालिन पत्रिका-नेपाल ,गिरीराज तथा द्वारका परिचय, मीडिया ग्रुप, दिल्ली अप टू डेट, अभिनव इंडिया आदि समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहे हैं और कई समाचार पत्रों में स्तम्भ लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई है
पत्रकारिता को विस्तृत फलक प्रदान करने के लिए आपने क्रिएटिव वर्ल्ड मीडिया अकेडमी की स्थापना की है जिसमें नोसिखिये युवा पत्रकारों को पत्रकारिता का प्रशिक्षण देते हैं।इस प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें मीडिया के गुर सिखाने के साथ-साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती है ताकि वह यहां से प्रशिक्षण प्राप्त के बाद किसी मीडिया संस्थान पर निर्भर नहीं रहे।आपने देश-विदेश में भी पत्रकारिता पर कार्यशाला आयोजित कर मीडिया के छात्रों को नई-नई जानकारियों से परिचित कराया है। इसके अलावा आप विभिन्न मीडिया संगठनों से भी जुड़े हुए हैं।मीडिया के इन सभी संगठनों को एक प्लेटफार्म पर लाने की कोशिश काफी लंबे समय से कर रहे हैं, कुछ हद तक इसमें श्री डोगरा जी सफल भी हुए तो कई बार निराशा भी हाथ लगी लेकिन हाथ पर हाथ रखकर बैठे नहीं बल्कि लोगों को जोड़ते रहे।आज उसी का परिणाम है कि मीडिया का छोटा सा परिवार अपना विस्तार कर इतना बड़ा हो गया है कि उसकी शाखाएं देश के हर प्रांत में दिखाई देती है।
श्री डोगरा जी की रुचि कई ऐसे विषयों में है जिस पर गहन अध्ययन करना पड़ता है,उन्होंने बताया कि उनकी फिल्मों में विशेष रुचि है। फिल्मों में रुचि होने के कारण कई लघु फिल्मों का निर्माण किया है साथ ही बाल फ़िल्मोत्सव के माध्यम से बच्चों पर छोटी-छोटी फ़िल्म डॉक्यूमेंट्री बना चुके हैं।विद्यार्थियों को फिल्मों से जोड़ने, फिल्मों का सकारात्मक प्रभाव बताने के लिए आपने देश के कई शिक्षण संस्थानों में, स्कूल, कॉलेज के अलावा पंजाब, केरल व त्रिवेंद्रम, दिल्ली, बाल भवन स्कूल में फ़िल्मोत्सव आदि करवा चुके हैं।इसके अतिरिक्त हिंदी व अंग्रेजी में मीडिया पर बराबर हस्तक्षेप रखने के कारण है आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जो मीडिया के शोधार्थियों और छात्रों के लिए उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराती है।
कहते हैं कि कुंआ प्यासे के पास नहीं जाता बल्कि प्यासे व्यक्ति को कुंए के पास जाना पड़ता है।जब मै दैनिक समाचार पत्र, सांध्य समाचार, साप्ताहिक (चौथा अक्षर ) व मासिक पत्र में कार्य कर रहा था उसी दौरान श्री एस एस डोगरा जी से मुलाकात हुई। वे मुझसे मिलते ही पूछते गुरुजी आपका वह लेख पढ़ा बहुत अच्छा लिखा है।साथ ही खबरों की हेड लाइन, शीर्षक ,गांवों की खबरें कहां से और कैसे जुगाड़ करते हैं आदि पत्रकारिता संबंधी विषयों कनाटप्लेस ,मंडी हाउस ,जंतर मंतर पर चाय की दुकान पर खूब चर्चा होती थी।मेरे पत्रकारिता के दिनों में बहुत से दोस्त संपर्क में आए उन्हीं अच्छे मित्रों में श्री एस एस डोगरा जी भी है जो आज भी संपर्क में है। उनसे प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ वर्तमान में सबसे ज्यादा पापुलर मीडिया न्यू मीडिया, सोशल मीडिया, एडवांस जर्नलिज्म आदि विषयों पर घण्टों बातचीत होती रहती है।पिछले सप्ताह ही उन्होंने बताया कि वे मीडिया के कई प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहे हैं ,साथ ही अपने छात्रों के साथ मिलकर यूट्यूब चैनल शुरू किया है।इसके अलावा कोरोना काल में मीडिया का क्या प्रभाव लोगों पर पड़ा है इस काल मेंरेडियो और टेलीविजन चैनलों पर क्या परोसा जा रहा है, वे नेगिटिव चीजें ही क्यों दिखाते है कुछ पॉजिटिव भी है उसका प्रसारण क्यों नहीं करते आदि पर लंबी बातचीत हुई।
भाई डोगरा जी में एक एक खास बात यह है कि यदि कोई पुरानी बात याद आ गई तो वे समय भी भूल जाते हैं।बातों ही बातों में बीते दिनों और पुराने साथियों के साथ बिताएं दिन ,उनके साथ किए कार्यों को परत दर परत खूब खोलते चले जाते हैं।बात करेंगे पत्रकार संघ और पुराने साथियों की तो बीच में मेरे पत्रकारिता के छात्रों की चर्चा करने लगेंगे कि जो गुर उन्हें सिखाए है सर कुछ गुर मुझे भी दे दो।फिर बीच में ही अपने साथ और मेरे प्रिय छात्रों के पत्रकारिता में प्रवेश करने और उनके संबंधों पर भी चर्चा करने लगते हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह जब मेरा फेसबुक लाइव पर कोरोना काल में मीडिया और सोशल मीडिया ने क्या भूमिका निभाई है उसे सुना तो उनके वाक्य थे–गुरुजी इतनी एनर्जी कहां से लाते हो, बिना किसी लाग लपेट के कैसे बोल लेते हो ,मीडिया की इतनी जानकारी कहां से ग्रहण करते हैं, मुझे अपना शिष्य बना लो।और कहा था कि वे जल्द ही मुझसे मिलने आएंगे मीडिया पर नई पुस्तक की रूपरेखा लेकर।डोगरा जी ने बहुत पहले मीडिया पर प्रकाशित अपनी पुस्तक मुझे भेंट की। भेंट करने पर उन्होंने इस पर समीक्षा लिखने का आग्रह किया।पुस्तक पढ़कर जल्द ही समीक्षा लिख पाना मुश्किल कार्य है लेकिन उनकी भावना का सम्मान करते हुए जल्द ही समीक्षा लिखूंगा ताकि पत्रकारिता में आने वाली हमारी युवा पीढ़ी जिन्हें हमारे पत्रकारिता संस्थान उन्हें बड़े-बड़े को सपने दिखाते हैं और जब वे पत्रकारिता में प्रवेश करते हैं तब वास्तविक स्थिति का पता चलता है कि मीडिया में दूर के ढ़ोल सुहाने ,जो आता है वहीं इसको जाने ,पहचाने। ऐसा नहीं है कि पत्रकारिता में सब कुछ ही नकारात्मक है सकारात्मक सोच भी रखते हैं लेकिन ऐसे पत्रकारों की संख्या बहुत कम है।आपके हाथों में–जल्द ही श्री डोगरा जी के साथ मिलकर एक पुस्तक का प्रकाशन कर यह दिखाना कि पत्रकारिता में आने से पहले, कुछ जाने।ताकि जब इस व्यवसाय में कूदे तो उसके अंदर तक, उसकी गहराई को, भविष्य में सवाल ना उठा सको।
हंसराज ‘सुमन’
हिंदी विभाग–श्री अरबिंदो कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली