ब्रह्माकुमारीज़ के भोड़ाकलां स्थित ओम शांति रिट्रीट सेंटर में व्यापारी एवं उद्योगपतियों के लिए आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हुआ। संस्था के व्यापार एवं उद्योग प्रभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश से व्यापार को एक सार्थक दिशा प्रदान करना है। व्यापार एवं उद्योग श्रेत्र से जुड़े अनेक लोगों ने अनुभव किया कि वर्तमान परिदृश्य में जीवन में संतुलन स्थापन करने के लिए योग जरूरी है।
इस अवसर पर विशेष रूप से सुप्रसिद्ध मोटीवेशनल स्पीकर बी.के. शिवानी ने अपने संबोधन में कहा कि हम जो धन कमाते हैं उसका सात्विक होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य मात्र धन कमाना नहीं बल्कि दुआएं कमाना होना चाहिए। जो धन कमाता है ये जरूरी नहीं कि वो दुआएं भी कमाता है। लेकिन जो दुआएं कमाता है वो अपनी क्षमता से भी अधिक धन कमाता है। उन्होंने कहा कि जितना हम अपने फायदे से अधिक दूसरे का फायदा देखते हैं, उतनी ही अधिक हम दुआएं मिलती हैं। जीवन मे सदा दूसरों को देने की भावना से ही खुशियों का संचार होता है। उन्होंने कहा कि राजयोग हमें स्वयं के स्वाभाविक स्वरूप की ओर ले जाता है। हमारा स्वाभाविक स्वरूप वास्तव में शान्ति, प्रेम और आनन्द से भरपूर है। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी भी दूसरों को कंट्रोल करने की कोशिश न करें। हम केवल अपने को ही कन्ट्रोल कर सकते हैं। जितना हम स्वयं को सयंम और नियम से चलाते हैं उतनी ही चीजें हमारे कन्ट्रोल में आने लगती हैं।
हैदराबाद से पधारी बी.के.राधिका ने कहा कि वास्तव में मानव अपेक्षाओं और उपेक्षाओं के शिकार होने के कारण ही दु:खी है। उन्होंने कहा कि जैसे हमारे विचार होते हैं, हम दूसरों को भी वैसा ही देखते हैं। उन्होंने कहा कि दूसरों के साथ व्यवहार में आते समय हमें केवल उनकी अच्छाईयों पर ही ध्यान देना चाहिए। परिस्थिति कैसी भी हो लेकिन अपने सकारात्मक दृष्टिकोण ही हम उसका सामना कर सकते हैं।
मुंबई से पधारी बी.के. दीपा ने कहा कि अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए हमें स्वयं को बेहतर बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे अंदर का संसार जितना अच्छा होगा, उतना ही अच्छा हमारा बाहरी संसार होगा। दो दिवसीय कार्यक्रम में लोगों को योग पर गहरी जानकारी के साथ-साथ गहन अनुभव भी कराया गया। अनेक वक्तावों स्वयं के अनुभवों को भी साझा किया। कार्यक्रम में आये हुए अनेक लोगों ने अपने अनुभव साझा करते हुए योग को जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने की प्रतिज्ञा की।