जौली अंकल
सरंक्षक-द्वारका परिचय
राव साहब का बेटा आज कनाड़ा से एम.बी.ए. की पढ़ाई पूरी करके बरसों बाद घर वापिस आ रहा था। सभी घरवालों के साथ रसोई के बर्तन भी चमचमाने लगे थे। इस खुशी का खास कारण यह था कि बेटे को परीक्षा पास करते ही एक बहुत बड़ी कम्पनी से दो लाख रूप्ये महीने की नौकरी मिल गई थी। राव साहब ने बेटे से कहा कि तुम्हें तो मालूम ही है कि हम बरसों से बच्चों के खिलोने बनाने की फैक्ट्री चला रहे है। मैं जानता हॅू कि जितनी बड़ी नौकरी की ऑफर तुम्हें मिली है उतना पैसा हम लोगो ने अपने सारे जीवन में एक साथ कभी नही देखा। फिर भी मेरी इच्छा है कि अब तुम इस फैक्ट्री की जिम्मेंदारी को संभालों। इतने में राव साहब की पत्नी गर्मा-गर्म खाना बना कर ले आई। नाश्ते के दौरान श्रीमति जी ने कहा कि बेटा चाहे नौकरी करे या आपकी फैक्ट्री संभाले। परंतु उससे पहले इसको कुछ दिन मेरे साथ पूजा के लिये जाना होगा। क्योंकि मैने इसकी सफलता के लिये अलग-अलग देवी-देवताओं से मंत्रतें मांगी थी। अब उन सभी का धन्यवाद करने के लिये मुझे बहुत सारे धर्मिक स्थलों पर जाना है।
राव साहब भी पत्नी का हुक्म मानते हुए अगले दिन सुबह से ही हर भगवान को खुश करने के लिये उनके द्वार पर माथा टेकने के लिये चल पड़े। कई दिनों तक लगातार अपने बेटे के साथ रहते हुए राव साहब ने अपनी फैक्ट्री की कई परेशानिया बेटे को बताई। बेटे ने पिता से कहा कि अगर फैक्ट्री से अच्छी कमाई नही हो रही और उसमें सिर्फ कठिनाईयां ही है तो आप इस बंद क्यूं नही कर देते?राव साहब ने कहा मैने इस बारे में कोशिश की थी लेकिन कुछ मजदूरों ने युनियन बना कर कोर्ट में केस कर दिया है। अब जब तक अदालत अपना फैंसला नही सुना देती, मैं किसी भी हालात में फैक्ट्री बंद करने की सोच भी नही सकता। वैसे भी फैक्ट्री बंद करने से समाज़ और रिश्तेदारी में बहुत बदनामी होगी। आज जैसी भी है लेकिन दुनिया में इज्जत बनी हुई है कि हमारी बहुत बड़ी फैक्ट्री है। बंद हो जाने पर लोग न जाने कैसी-कैसी बाते करेगे?
बेटे ने राव साहब से कहा कि सबसे पहले तो अपने मन से दुनिया का यह सबसे पुराना रोग निकाल फैंको। राव साहब ने कहा कि मैं कुछ समझा नही कि तुम किस रोग के बारे में बात कर रहे हो। बेटे ने कहा कि हम लोग अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा केवल इसलिये बर्बाद कर देते है कि ‘क्या कहेगे लोग’? राव साहब ने बेटे से कहा कि तुमने किताबी पढ़ाई जरूर पूरी कर ली है। लेकिन जो कुछ तुम कह रहे हो उसे अमली जामा पहनाना इतना आसान नही है। बेटे ने पिता से कहा कि जहां तक मैं आपकी परेशानियों को समझ पाया हॅू तो आप दो चीजों के कारण दुखी है। एक तो पैसे का अभाव और दूसरा आपका अपना स्वभाव। पिता जी विदेश में पढ़ाई करके मैं इतना तो सीख चुका हॅू कि विपरीत परिस्थितियों में कोई भी इंसान कभी भी फौज़ खड़ी नही कर सकता परंतु मजबूत इरादों से कर्म करने की कोशिश करे तो बहुत सारी समस्यायें खुद-ब-खुद खत्म हो सकती है। अब अगर आप अपनी फैक्ट्री की यह जिम्मेंदारी मुझे सौंप दे तो मैं कुछ ही दिनों में इसका रंग-रूप बदल दूंगा। इसी के साथ बेटे ने राव साहब से कहा कि अपनी फैक्ट्री में खिलोने बनाने की बजाए उन्हें दूसरे देशो से आयात करके उनके ऊपर अपना लेबल लगा कर मोटा मुनाफा कमा सकते है। साथ ही फैक्ट्री में दायें-बायें जो बेकार की जगह पड़ी हुई है उसमें शानदार दुकानें और दफतर बना कर उन्हें अच्छी कीमत पर बेचा जा सकता है। जिसकी बदौलत लक्ष्मी मां आपके लिये घर बैठे ही कुबेर का खज़ाना खोल देगी। राव साहब ने एक दम से नाराज़ होते हुए कहा कि इससे हमारे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी।
बेटे की तरफदारी करते हुए श्रीमति जी ने राव जी से कहा कि आप चाहे मानों या न मानों बेटे की बात सुनने में क्या जाता है, कई बार नेक सलाह काम आ जाती है। आप खुद भी तो यह कहते रहते हो कि हमें सदा मन के खिड़की दरवाजे खुले रखने चाहिये क्योंकि कई बार दूसरों का अनुभव भी बहुत कुछ सिखा जाता है। लेकिन इस कल के छोकरे के पास अभी अनुभव है कहा, जो यह इतनी बड़ी सफलता का दावा कर रहा है। मां ने जब बेटे से उसके सफल होने का रहस्य पूछा तो उसने जवाब दिया कि मां सफलता हमेशा सही निर्णय लेने से मिलती है। अब मां ने पूछा कि तुम सही निर्णय कैसे लेते हो? इस पर बेटे ने कहा कि अनुभव से। राव साहब ने पत्नी से कहा कि इससे पूछो कि इसके पास अनुभव आया कहां से? अब बेटे ने हंसते हुए कहा कि यह तो आप जैसे लोगो के गलत निर्णयों से ही आता है। राव साहब ने बेटे से कहा कि जिस मंजिल का तुम ख्वाब देख रहे हो उसकी राह तो कांटों से भरी हुई है। बेटे ने जवाब दिया कि जब मंजिल पर पहुंचना है तो राह के कांटो से क्या घबराना, वैसे भी जहां कांटे हो वहां हमारी रफतार बढ़ जाती है। बेटे के आत्मविश्वास और उसकी काबलियत को देख कर राव साहब भी मन ही मन गर्व करते हुए यह सोचने लगे कि वाक्य ही यह सच है कि प्रतिभा कभी आसमान से नही बरसती, वह तो अंदर से ही जागती है और उसे जगाने के लिए सच्चे मन से कोशिश करने की जरूरत होती है। कामयाबी केवल दूसरों को देख कर या उनकी बातें सुन कर नही बल्कि कर्म करने से ही पाई जा सकती है। इतना सब कुछ जानने के बाद जौली अंकल भी इस बात को ख़ुशी से कबूल करते है कि कोई भी इंसान जन्म से नही बल्कि अपने कर्मो से ही कामयाब इंसान बनता है।