यह बात चार साढ़े चार वर्ष पुरानी होगी, एक दिन मुझे द्वारका में रहने वाले एक दोस्त ने फ़ोन पर सूचना देते हुए बताया, “भारद्वाज ! द्वारका में एक कॉलेज है – एपीजे स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट, यह कॉलेज अगले सप्ताह चार घंटे की एक ट्रेनिंग देने का आयोजन कर रहा है, ट्रेनिंग का कोई खर्चा नहीं है, मैंने इसके लिए अपना ऑनलाइन पंजीकरण कर लिया है, आपको भी इसका लिंक भेज रहा हूँ, आप भी यह काम कर लेना और फिर हम दोनों अगले हफ़्ते उसी कॉलेज में ही मिलेंगे ! पांच मिंट बाद मुझे उस ट्रेनिंग के लिए लिंक व्हाट्सप्प के माध्यम से मिल गया और मैसेज पढ़कर पहले तो मैंने ट्रेनिंग देने वाली प्रोफेसर मोनिका अरोड़ा से फ़ोन पर बातचीत की और ट्रेनिंग के बारे और जानकारी लेनी चाही ! प्रोफेसर साहिबां ने बताया कि यह ट्रेनिंग केवल वरिष्ठ नागरिकों के लिए ही है, अक्सर देखा जाता है कि वरिष्ठ नागरिक स्मार्ट फ़ोन तो ले लेते है, लेकिन उनको फ़ोन के बहुत से फ़ीचर्स की जानकारी ही नहीं होती, फ़ोन में उपलब्ध अनेक प्रकार की अप्लीकेशन होती हैं, जानकरी के आभाव से वह इन फीचर्स का उपयोग ही नहीं कर पाते , घर में उनके बच्चे / बहुरानी इत्यादि भी होते हैं जिनको इन फीचर के बारे में हमसे अधिक जानकारी होती है, लेकिन वह लोग भी अपनी २ जिंदगी में / नौकरियों में बिजी होते हैं, या फिर कभी २ उनका रवैया सीनियर सिटीजन्स को नई चीज़ें सिखाने का कम ही होता है, ऐसे हालत में बेचारे वरिष्ठ नागरिक मन मसोसकर रह जाते हैं और अपने महंगे फ़ोन को केवल बात सुनने / सुनाने तक ही सीमित रह जाते है ! अत; हमारे कॉलेज ने यह पहल की है कि हम लोग वरिष्ठ नागरिकों को स्मार्ट फ़ोन के बहुत से फीचर्स की जानकारी देंगे और उनको इस काबिल बनाएंगे कि वह अपने घर में मौजूद अच्छे पढ़े लिखे बच्चों की सहायता के बिना भी इसका अछे ढंग से प्रयोग कर सकें ! आप भी इसके लिए अपना छोटा सा पंजीकरण कर लें, क्योंकि इस क्लास में केवल 60 प्रतिभागी ही भाग ले सकेंगे और फिर अगले हफ्ते कॉलेज में आ जाना !
ट्रेनिंग के लिए अपना पंजीकरण करने के बाद जैसे प्रोफेसर साहिबां ने मुझे बोला था, मैंने उनको व्हाट्सएप पे एक संदेश भी भेज दिया कि मैं अगले सप्ताह उस ट्रेनिंग के लिए आ रहा हूँ ! सुबह दस बजे से दोपहर दो बजे तक चार घंटे की क्लास थी, और मैं इसके लिए दस मिनट पहले ही कॉलेज पहुँच गया ! क्लास के शुरुआत में सभी वरिष्ठ नागरिकों को एक दो मिंट में अपना परिचय देने के लिए बोला गया ताकि हम सभी एक दूसरे से वाकिफ़ हो जाएं ! उसके बाद प्रोफेसर साहिबां ने परिशिक्षण शुरू किया, स्मार्ट फ़ोन में फैक्ट्री से निकलने से पहले ही इनस्टॉल किये गए फीचर्स की जानकारी दी और बाद में इस फ़ोन के जरिये और बहुत से और भी किये जा सकने वाले कार्यों की जानकारी दी – जैसे कि घर बैठे २ ही इधर उधर जाने के लिए टैक्सी बुक करना, रेल / हवाई यात्रा की टिकट बुक करना, ऑनलाइन शॉपिंग करना, किसी सोशल मीडिया की एप्लीकेशन कैसे चलानी है, यूट्यूब का इस्तेमाल कैसे करना है, विदेशों में बैठे किसी दोस्त मित्र या रिश्तेदार से बात करने के लिए अंतर्देशीय काल फैसिलिटी उपलब्ध ना होने के बावजूद भी कनाडा अमरीका या फिर इंग्लैंड में कैसे बात कर सकते हैं, इन सभी साधनों को भी जानकारी हमें दी गई ! बीच २ में थोड़ी बहुत हंसी मज़ाक भी चलता रहा, क्योंकि कुछ वरिष्ठ नागरिक भी दोबारा बच्चे ही बन जाते हैं और कोई नई चीज़ सीखने में उनको भी कभी २ ज़्यादा वक़्त लगता है, ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए प्रोफेसर साहिबां ने अपनी कॉलेज की क्लास के 7 / 8 विद्यार्थी भी हमारी सहायता के लिए वहाँ बुलाए हुए थे ! वह सभी बड़े प्यार, धीरज और दोस्ताना तरीके से हमें सिखा रहे थे !
लगभग डेढ़ घण्टे बाद चाय के लिए 15 मिंट की ब्रेक दी गई ! इसी ब्रेक के दौरान चाय पीते समय हमारी क्लॉस में हमारी कंपनी से 2004 में सेवानिवृत हुए एक मुख्या महाप्रबंधक (मानव संसाधन ), कमल किशोर दाखिल हुए ! वह मुझे देखकर बड़े खुश हुए और उन्होंने पूरी गर्मजोशी से मेरे साथ हाथ मिलाया और मेरा हालचाल पूछा और मेरे कंधे पे हाथ रखकर अपनेपन का एहसास दिलाया ! लगभग दस मिंट कक्षा में रहने के बाद वह वापस अपने ऑफिस में जाने से पहले उन्होंने मुझसे कहा, “भारद्वाज ! क्लास समाप्त होने के बाद मेरे ऑफिस में आना !” उस वक़्त मुझे पता चला की कमल किशोर जी उस कॉलेज में डायरेक्टर को पोस्ट पर कार्यरत हैं और हमारे दफ़्तर से ही सेवानिवृत हुए हमारे एक और सहकर्मी, एस के माटा भी वहीं जॉब कर रहे थे और वह कमल किशोर जी के निजी सचिव थे ! कमल किशोर जी के जाने के बाद उसी कॉलेज में कार्यरत 35 / 36 वर्ष की एक लड़की मेरे पास आई और उसने हाथ जोड़कर मुझे सतसिरी अकाल बुलाई और मैंने उस लड़की से सवाल किया , “क्या हम पहले भी कभी मिल चुके हैं ?” लड़की ने जवाब दिया, “नहीं सर ! हम पहले कभी नहीं मिले, आप मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं आपको जानती हूँ !’ मैंने सवाल किया , “वोह कैसे ?” लड़की ने उत्तर दिया, “सर ! आपने अपने परिचय में बताया था कि आप आईएफसीआई से मैनेजर की पोस्ट से रिटायर हुए हो, मेरे पापा भी इसी कंपनी से ही रिटायर हुए थे ! इस तरीके से मैं आपको जानती हूँ ! मैंने पापा को फ़ोन करके आपके बारे में बता दिया है, वह आपको दो बजे के बाद फ़ोन करेंगे !” मैंने पूछा, “आपके पापा का नाम क्या है ?” जवाब मिला – “सुखचरण सिंह !” सुनकर बड़ा अच्छा लगा और मैंने अपनी प्रतिक्रिया दी, “हाँ ! मैं और सुखचरण सिंह एक दूसरे को बड़ी अच्छी तरह जानते हैं ! वह मेरे अच्छे दोस्तों में से एक हैं ! फिर मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और उस लड़की के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गई !
फिर एक मिंट बाद प्रशिक्षण देने वाली प्रोफेसर मोनिका अरोड़ा मुझसे पूछने लगी, “आप हमारे डायरेक्टर साहिब को कैसे जानते हो ?” मैंने उनको बताया कि कमल किशोर जी हमारी कंपनी में मुख्य महाप्रबंधक (मानव संसाधन) होते थे और 2004 में वीआरएस के माध्यम से सेवानिवृत्त हुए थे ! फिर वह थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ में कहने लगी, “तब तो मुझे आपका ख़ास ख़्याल रखना पड़ेगा !” क्लास समाप्त होने के बाद मैं कमल किशोर जी के ऑफिस में गया ! दो तीन मिनट बातें करने के बाद उन्होंने इण्टरकॉम पे चाय के लिए जब ऑर्डर किया तो मैंने उनको कहा, “सर ! अभी थोड़ी देर पहले ही तो चाय पी है ! कमल किशोर ने उत्तर दिया , “यार कितने वर्षों के बाद हम मिले हैं , अच्छा चलो , चाय नहीं तो कॉफ़ी पी लेंगे !” कॉफ़ी के दौरान तकरीबन दस / बारह मिंट उनसे बातचीत चलती रही, उन्होंने मेरे घर परिवार के बारे में पूछा , द्वारका में कहां रहते हों, घर तो आपका अपना ही होगा, ऐसा मैं मानता हूँ ! फिर मुझे कहने लगे, “अगर हमारे कॉलेज में आपने या आपके किसी दोस्त मित्र / रिश्तेदार के बच्चे का एडमिशन करवाना हो और दिक्कत आ रही हो तो सीधे मेरे पास आ जाना, मैं आपकी हेल्प करूँगा !
अब जब 19 अगस्त, 2023 को कमल किशोर जी के स्वर्गवास हो जाने के बारे में व्हाट्सप्प पे समाचार पढ़ने को मिला तो मुझे यह सब पुरानी बातें अपने आप ही याद आ गईं और आईएफसीआई में बिताये हुए पुराने दिन भी फ़्लैश बैक में मेरी आँखों के सामने घूमने लगे ! कमल किशोर जी मुझसे कहने लगे, “भारद्वाज ! अगर आप अपनी सर्विस के दौरान यूनियन-बाज़ी में ना पड़ते तो आप डीजीएम के पद से सेवानिवृत होते ! मैंने उनके सवाल का उत्तर दिया, “सर ! सर्विस के दौरान कुच्छ कर्मचारियों के साथ जाने अनजाने से दुर्व्यवहार हो जाता है, कुछ लोगों की प्रमोशन में जरुरत से ज्यादा देर लगती है, जबकि अन्य लोगों की प्रोमोशंस टाइम पे होती रहती हैं , ऐसे हालत में किसी न किसी को तो प्रबंधक वर्ग से उसका केस लड़ना ही पड़ता है , नहीं तो पीड़ित कर्मचारी तो मानसिक तनाव में ही रहता है ! उसका यह तनाव शीघ्र दूर न किया जाये तो वह किसी दिन मानसिक रोगी भी बन सकता है ! एक और बात भी है, मैनेजमेंट को अपने तो गधे भी घोड़े नज़र आते हैं और हमारे घोड़ों को भी गधे समझने लग जाते हैं, अब किसी पीड़ित बंदे के लिए लड़ने वाले बन्दे को आप यूनियन लीडर बोलकर उसका तिरस्कार / अवहेलना करने में लग जाओ, यह तो अच्छी बात नहीं है ! तीसरी बात – प्रबंधक वर्ग में बैठे अधिकारियों को दूसरों का नुकसान करने में परपीड़न आनंद ( Sadistic pleasure ) की बड़ी अनुभूति होती है, और तब, हम जैसों को उसके लिए लड़ने और उसका बनता अधिकार दिलवाने के लिए सामने आना ही पड़ता है, यह बात भी सही है कि इस चक्कर में कभी २ हम लोग भी मैनेजमेंट की नज़रों में बुरे बन जाते हैं, जबकि हम लोग प्रबंधक वर्ग की ग़लत नीतियों का विरोध करते हैं, किसी व्यक्ति विशेष का नहीं ! अगर कोई न्याय दिलवाने के लिए पहल ही नहीं करता, तो फिर आज़ादी से पहले वाले अंग्रेजों के शासन प्रसाशन और अब के हालात में अंतर ही क्या रह जायेगा ? समाज / देश से प्यार करने वालों को और आम नागरिकों को उनके बनते अधिकार दिलवाने के लिए हो तो देश-प्रेमी / सामाजिक कार्यकर्ता बीच में कूदते हैं, वरना आज भी हमारा देश गुलाम ही रहता ! कभी २ एक और स्थिति भी तो पैदा हो जाती है – दफ़्तर में किसी कमतर परफॉरमेंस वाले बंदे को मैनेजमेंट पदोन्नति देकर किसी बढ़िया परफॉरमेंस वाले बंदे के सिर पर बिठा देती है , उस वक़्त बड़ा कठिन हो जाता है वहाँ काम करना, तब हम जैसों को बड़े मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है ! और प्रबंधक वर्ग की ऐसी हज़ारों बेरुखियों / ज़्यादतियों के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं – दलित शोषित वंचित समाज के लोग, क्योंकि नई नौकरियों के लिए उम्मीदवारों के चयन के वक़्त और पदोन्नति के समय उनके समाज के उम्मीदवारों को यह बोलकर हाशिये पर धकेल दिया जाता है – “नॉट फॉउन्ड सूटेबल !” चौथी बात – जिसकी हज़ारों कंपनियों के प्रबंधक वर्ग अक्सर अवेहला करते ही रहते हैं – आज़ादी के बाद, देश के प्रत्येक क्षेत्र में आई आर्थिक खुशहाली और संपन्नता का लाभ तो देश के सभी वर्गो को बिना किसी भेदभाव के मिलना चाहिए, नाकि केवल 18 / 20 % अगड़ी जातियों के लोगों को ही ? और अंतिम बात – पांच हज़ार वर्ष पहले तो एक होनहार और प्रतिभाशाली भील / शूद्र विद्यार्थी एकलव्य का, एक सोची समझी मनुवादी मानसिकता / साज़िश के अंतर्गत अंगूठा काटकर एक गुरु दोर्णाचार्य ने उसे हमेशा के लिए प्रतियोगिता से बाहर कर दिया था, अब तो पूरे देश में ना जाने जगह २ कितने हज़ार द्रोणाचार्य भरे पड़े हैं, तो दलित शोषित वंचित समाज के होनहार / बुद्धिमान दलित विद्यार्थियों को इन्साफ़ कैसे मिलेगा और कौन दिलवाएगा ?
मेरा व्याख्यान सुनकर कमल किशोर को शायद अच्छा नहीं लगा और वह थोड़ा परेशान होकर मुझसे कहने लगे, “भारद्वाज ! यह बहस तो बहुत लंबी चल सकती है, अच्छा है हम इसे यहीं समाप्त कर दें और फिर कभी मिलेंगे !” कमल किशोर की भावना का सम्मान करते हुए मैं भी सीट से उठकर खड़ा हो गया और उनसे हाथ मिलाया और वापिस अपने घर आ गया !
आर डी भारद्वाज ” नूरपुरी ”