नरेश सिंह नयाल(पी ई आई)
आदर्श विद्यालय
एन आई ई पी वी डी, देहरादून, उत्तराखंड
कुछ दिनों से देख रहा था
मन कुछ ख़यालों में खोया था
आँखें कई बार रोई हैं
आत्मा ने चित्कार किया है
देह भी थर्राई है
देखकर मंजर ‘उनका’
असमंजस में पड़ गया
साहस को सलाम करें
या फिर दर्द को बांट लें,
आज जब लिखने बैठा
तो कलम कांप रही थी
छाले ‘उनके’ पैरों के देख
पैर मेरे भी कांप रहे थे
न जाने क्यों खुद ब खुद
पैरों तले से ज़मीन
स्वतः ही खिसकी जा रही थी,
कौन है वो क्या वजूद है
कहाँ से आया है
और कहाँ इसे जाना है
रोया नहीं है
पर थका सा तो लगता है
सर पे गठरी
बगल में परिवार लिए
ये कहाँ निकल चला है,
हुक्मरान कहते हैं
हमें इनसे प्यार है
और उस प्यार का
दर्जा बहुत विशेष है
फिर ये कैसी दरियादिली है
वो सड़क पर विमार है
परिवार को लिए मिलों तक
खुद के कंधों पर सवार है
फिर भी राजा कहते हैं
हमें हर नुमाइंदे से प्यार है,
कौन है
जिसके पैरों के छाले देख
रास्ते भी हार गए हैं
वो जिसने इमारतें बनाई बड़ी-बड़ी
आज सर पर छत
ढूढने से नहीं मिल रही,
ये दंश है
या सत्ताधारियों का जोर
कहीं ऐसा तो नहीं
कि ये व्यर्थ ही
मचा रहा हो शोर
पर मिल जाए किसी को
तो पूछना जरूर
जिन सवालों के उत्तर
तुम उनकी किताबों में देखते हो
इनकी देह से
मिल जाएंगे तुमको जरूर,
चलो एक प्रश्न छोड़े जाता हूँ
इसकी व्यथा है
सह ही लेगा
पर तुम को मिले कोई
तख्तदार जब कहीं
तलब करना इसकी
इसकी इस दशा की,
ये जो भागता फिर रहा है
मजदूर है हक़ से
मजदूरी इसका पेशा
फिर कैसी हो गई है
आज ये मज़बूरी
पूछना जरूर।