दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा #महर्षि_वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में दिनांक 2 नवम्बर 2020 को “युवा चेतना के प्रेरक: महर्षि वाल्मीकि” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया । डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड की अध्यक्षता एवं श्री महेश चन्द्र शर्मा, उपाध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के सानिध्य में आयोजित इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री सुभाष चन्द्र कंखेरिया, सदस्य, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड तथा वक्ता के रूप में श्री उदय कुमार मन्ना, वरिष्ठ पत्रकार व आरजेएस राष्ट्रीय संयोजक एवं डॉ. श्रीराम परिहार, वरिष्ठ साहित्यकार एवं संपादक उपस्थित रहे ।
श्री महेश चन्द्र शर्मा द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित सभी गणमान्य जनों एवं श्रोताओं का अभिनन्दन कर संगोष्ठी का प्रारंभ किया गया । उन्होंने बताया कि भारत आदिकाल से ही ऋषि-मुनियों, संतों तथा महान पुरुषों का देश रहा है । भारत की भूमि पर अनेक महावीर और पराक्रमियों ने जन्म लेकर उसे गौरवान्वित किया है । आदिकवि महर्षि #वाल्मीकि जी भी भारतवर्ष में जन्में पूजनीय व वन्दनीय महात्माओं में से एक हैं जिन्होंने रामायण जैसे महान ग्रन्थ की रचना कर समाज को भगवान श्रीराम की मर्यादाओं से परिचित करवाया तथा सामाजिक उत्थान का दिशादर्शन किया ।
श्री उदय कुमार मन्ना ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि एक विराट एवं प्रेरक व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं । उन्होंने कठोर तपस्या, ध्यान, योग, अध्ययन से महर्षि पद प्राप्त किया । इससे युवाओं को अपने कार्यक्षेत्र में पूरी तल्लीनता से कार्यरत रहने की प्रेरणा मिलती है । महर्षि वाल्मीकि शास्त्रों के ज्ञान के साथ-साथ अस्त्र शस्त्र विद्या में भी पारंगत थे । उन्होंने समस्त विश्व को अद्भुत चिंतन के द्वारा सामाजिक समरसता का संदेश दिया। असाधारण व्यक्तित्व वाले महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर अपना जीवन पथ बदल दिया जिसके फलस्वरूप वे महान पूज्यनीय विभूतियों में से एक बने । उनके इसी चरित्र से हमें प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सही पथ पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए ।
डॉ. श्रीराम परिहार ने अपने वक्तव्य में बताया कि महर्षि वाल्मीकि युग पुरुष थे । वह अपनी पीढ़ी के साथ-साथ आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा श्रोत हैं । वह देवभूमि के ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने समाज को धीरवान, शीलवान, सदाचारी, प्रजापालक, सद्विचारी, सद्भावी, सत्कर्मी, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का चित्रण कर मानव चरित्र की पराकाष्ठा को उजागर किया । उन्होंने शारीरिक रूप से बलवान होने के साथ-साथ हृदय, बुद्धि व चरित्र से भी बलवान बनने की प्रेरणा प्रदान की है । डॉ. श्रीराम परिहार ने बताया कि विद्वत्व को वे मनुष्य ही प्राप्त कर सकते हैं जिनके पास श्रीराम के समान सुख और दुःख को समभाव से लेने की क्षमता है । श्रीराम के गुणों का निर्वहन करते हुए व्यक्ति अकेले भी कई रावणों को पराजित कर सकता है ।
डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड ने अत्यंत प्रभावशाली वक्तव्य के माध्यम से युवाओं को महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा प्रतिपादित श्रीराम के सद्गुणों का अनुकरण करने का निवेदन किया । उन्होंने बताया कि भारत की सांस्कृतिक चेतना के शिखर पुरुष वाल्मीकि जी ने महर्षि नारद से श्रीराम का आख्यान सुन कर उनके निर्देश पर संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना कर विश्व को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के श्रेष्ठ मानवीय गुणों तथा आदर्श जीवन कथा को जन-जन तक पहुँचाया । संस्कृत काव्य में श्लोक की रचना सर्वप्रथम उनके द्वारा ही की गयी । डॉ. रामशरण गौड़ ने महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन से जुड़े अहम् पहलुओं, गुणों और कथाओं से श्रोताओं को परिचित करवाया तथा उन्हें भौतिक सुख से परे समाज के उत्थान हेतु क्रियाशील रहने के लिए प्रेरित किया ।
श्री सुभाष चन्द्र कंखेरिया ने आत्मज्ञान को प्राप्त कर समाज को सुदिशा दिखने वाले महर्षि वाल्मीकि जी को केवल उनकी जयंती पर याद न कर आजीवन उनका वंदन कर उनके द्वारा चरित्रित श्रीराम के जीवन का अनुपालन करने का आग्रह कर धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया ।