शहीद राजगुरु की जयंती पर 24अगस्त को आरजेएस फैमिली का विशेष फेसबुक लाईव- उदय मन्ना

सकारात्मक भारत आंदोलन की पांचवीं वर्षगांठ पर राष्ट्रप्रथम वंदेमातरम्-जयहिंद जय भारत की सकारात्मक सोच देशवासियों से साझा करने के लिए 20 अगस्त 2020 से आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया का फेसबुक लाईव सायं आठ बजे रोजाना पेश किया जा रहा है।

आरजेएस ,राम-जानकी संस्थान के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने कहा कि 24 अगस्त शहीद राजगुरु की जयंती पर फेसबुक लाईव का विशेष प्रसारण किया जाएगा।इसमें आरजेएस फैमिली से जुड़े 25 राज्यों के फेसबुक फ्रेंड्स से बातचीत के बाद आरजेएस के 19 वट्सअप ग्रुपों,ट्विटर और इंस्टाग्राम पर साझा किया जाएगा ताकि नई पीढ़ी शहीदों के बलिदान को याद रखे। 23मार्च भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का दिन , देशवासियों के लिए श्रद्धांजलि का अहम दिन तो होता ही है। राजगुरु की जयंती पर 24अगस्त को भी इन शहीदों को आरजेएस फैमिली याद करेगी।”शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,वतन पे मिटने वालों का यही बाक़ी निशां होगा।”

 इंदौर ,मध्यप्रदेश से आरजेएस फैमिली से जुड़े ऐलान ए इंक्लाब के राहुल इंक्लाब से जानते हैं राजगुरु की कहानी—— ” बढ़ता हैं शौक़ – ए – शहादत हर सजा पाने के बाद “

जी हां, यही जज्बा वतन के लिए हंसते-हंसते जान लुटाने वाले शहीद शिवराम हरि राजगुरू का था। भगतसिंह और सुखदेव का नाम तब तक अधूरा है जब तक उनके साथ राजगुरू का नाम ना लिया जाए।

भारत के इस लाल का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था, ये महाराष्ट्र के रहने वाले थे। भगत सिंह व सुखदेव के साथ ही इन्हें भी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।

जन्म 24 अगस्त 1908 को हरि जी और पार्वती देवी के यहां एक बालक का जन्म हुआ जिसे हम सब राजगुरु के नाम से जानते हैं। बालक का जन्म पुणे के पास खेड़ नामक गांव (वर्तमान में राजगुरु नगर) में हुआ था।

मात्र 6 साल की अवस्था में इन्होंने अपने पिता को खो दिया था। पिता के निधन के बाद ये ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे।

बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग-ए-आज़ादी में शामिल होने की ललक थी। वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए, उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल थी। इनका और उनके साथियों का मुख्य मकसद था ब्रिटिश अधिकारियोंके मन में खौफ पैदा करना। साथ ही वे घूम-घूम कर लोगों को जागरूक करते थे और जंग-ए-आज़ादी के लिये जागृत करते थे।

राजगुरु क्रांतिकारी तरीके से हथियारों के बल पर आजादी हासिल करना चाहते थे, हिंदूस्तान रिपब्लिकन सोश्यलिस्ट एसोसिएशन में इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे।

19 दिसंबर 1928 को राजगुरू ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस ऑफीसर जेपी साण्डर्स की हत्या की थी। असल में यह वारदात लाला लाजपत राय की मौत का बदला थी, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त हुई थी। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव का खौफ ब्रिटिश प्रशासन पर इस कदर हावी हो गया था कि इन तीनों को पकड़ने के लिये पुलिस को विशेष अभियान चलाना पड़ा।

इससे पहले कि राजगुरू आगे की योजना पर चलते, पुणे में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया गया। तीनों का शव पुलिस ने जला दिया बाद में जनसमुदाय ने पहूंच कर शव को छत विक्षिप्त अवस्था में पाया और ससम्मान शवों का दाह संस्कार फिरोज़पुर जिले में सतलज नदी के तट पर हुसैनवाला में किया गया।

आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया के लिए उदय मन्ना और राहुल इंक्लाब की रिपोर्ट ।