मंहगाई की मार भी दिख रही है पारम्परिक मटकों पर

गर्ममियों पर विशेष फीचर : गर्मी में देशी फ्रिज मटके के आगे सब फेल

अशोक कुमार निर्भय

गर्मी के दिनों में यदि कोई चीज सर्वाधिक सकून देती है तो वह जल है, लेकिन अपनी शीतलता से लोगों की प्यास बुझाने वाला जल भी गर्मी में बढ़ते तापमान में अपनी ठंडक खो देता है। गमी से परेशान सभी की चाहत होती है कि गर्मी में उसे फ्रिज का शीतल जल मिले , पर ऐसा करना हर वर्ग के लिए संभव नहीं होता । तब लोगों की जेहन में देशी फ्रिज यानी मटका,सुराही,मटकी आदि की याद आती है। समय से पूर्व दस्तक दे चुकी गर्मी से राजधानी दिल्ली समेत पुरे उत्तर भारत के लोगों का हाल-बेहाल है। 

गर्मी से बचने के लिए लोग तरह-तरह जुगत में लगे हैं। कोई छतरी लेकर चल रहा है तो पूरे चेहरे को ढंक कर लेकिन हर कोई ठंडे पानी की बोतल अपने साथ जरूर लेकर चल रहा है। अब चुकी हर किसी के लिए फ्रिज खरीदना संभव नहीं है, इसलिए आम आदमी एक बार फिर परम्परागत फ्रिज यानी मटका -सुराही के सहारे गर्मी निकालने के लिए निर्भर रहने को मजबूर है। लोगों की जरूरतों के मुद्देनजर राजधानी पटना में जगह-जगह मिट्टी की बर्तनों की दुकानें सजी गयी है और खरीददारी का काम भी शुरु हो गया। हालांकि मटकों के दामों में पिछले वर्ष की अपेक्षा अबकी डेढ़ गुणे का इजाफा हो गया है। लोग मटकों की खरीददारी में खासी रुचि दिखा रहे है। 
अप्रैल माह के पहले सप्ताह से गर्मी ने अपना प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। सुबह से ही धूप की तपिश लोगों को दोपहर का अहसास करा रही है। यही वजह है कि लोगों को अपना गला तर करने के लिये ठंडे पानी का सहारा लेना पड़ रहा है। राजधानी के तितारपुर,मादीपुर,शकूर पुर,पल्ला, बख्तावरपुर,शादीपुर, बसई दारापुर और पहाड़ी धीरज,हरिनगर,ख्याला,नांगलोई,आदि अनेक बाजारों में मटके,सुराही,कमोई की दुकानें सजी चुकी हैं। कई मुख्य सडकों के किनारे भी आपको मटका बेचने वाले मिल जायेंगे। पिछले कुछ सालों पर गौर करें तो महंगाई की मार मटकों पर भी पड़ी है क्योंकि पिछले वर्ष साठ से 70 रुपये में बिकने वाला मटका इस बार 100-150 रुपये में बिक रहा है। वहीं बड़े घड़े की कीमत 200 रुपये तक पहुंच गयी है। बाजार में इन दिनों नल लगे मटके और सुराही मिल रहे हैं जिनकी कीमत आम मटकों तथा सुराही से अधिक है । साधारण मटके जहां 50 से 70 रूपये के बीच है वही नल लगे सुराही की कीमत 140 से 200 के बीच है। इसके अलावा डिजायनर मटके भी बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। मटका बनाने वाले कुम्हार का सामान बड़ी मार्किट में अपनी संस्था के माध्यम से उपलब्ध कराकर सेवा करने वाले समाजसेवी संजय प्रजापति का कहना है कि हमारे कुम्भकार समाज के लोग के लिए मुसीबत है की परंपरागत मटकों की जगह अन्य साधनों ने ले ली है। 
आज मिट्टी से लेकर घड़ा बनाने मे उपयोग होने वाली अन्य सामग्री के दामों में पिछले साल के मुकाबले भारी इजाफा हुआ है जिससे घड़ों के दाम बढ़ाना आवश्यक हो गया था । दाम बढ़ाने के बावजूद भी मेहनत और लागत निकालने में दिक्कतें हो रही है। संजय ने बताया कि बड़े घर के लोग तो गर्मी में फ्रिज, कूलर और एयर कंडीशनर रखकर गर्मी को दूर भगा देते हैं, लेकिन आम आदमी के लिए ये सुविधा कहां है। मटका सबसे सस्ता और सुगम उपाय है। इससे हम फ्रिज जैसा ठंडा जल पा सकते हैं। पानी का स्वाद और मिट्टी की गुणवत्ता से मटके का पानी प्यास बुझाने वाला और स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। फ्रिज में ये बात कहां हैं। मटका विक्रेता सतीश ने बताया कि फ्रिज से हम मिट्टी के घड़े की तुलना करें, तो महंगे फ्रिज से पंद्रह-बीस रुपए का घड़ा श्रेष्ठ है। बस घड़े के चारों तरफ साफ तथा गीला कपड़ा लपेटकर ऐसे स्थान पर रखें, जहां पर्याप्त हवा आती हो। मटके और कपड़े को रोजाना साफ करें और लपेटे कपड़े को गीला करें। घड़े का जल सर्दी नहीं करेगा और स्वादिष्ट भी लगेगा। यह मटका सस्ता और बहुपयोगी होने के साथ-साथ आम जनजीवन में बहुत महत्व रखता है।