शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि देवी-देवताओं का आवास पर्वतीय स्थल पर हुआ करता था। इसीलिए आज भी पर्वतीय स्थल विशेषकर हिमालयन क्षेत्र को देवभूमि के नाम से पुकारा जाता है। हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं की सुन्दर बर्फीली चोटियों के बीच स्थित कैलाश पर्वत पवित्रता, आस्था का प्रतीक है। तिब्बत के सुदुर पश्चिम में पृथ्वी का उच्चतम कैलाश पर्वत स्थित है। पवित्र कैलाश पर्वत के बारे में यह मत है कि यह तीन करोड़ वर्ष पुराना है। यह समुद्रतल से 22,028 फुट ऊँचाई पर स्थित है। प्राचीन पवित्र ग्रंथ मेघदूत में भी कैलाश पर्वत के बारे में निम्न पंक्तियाँ लिखी गई हैं:
गत्वा चोध्र्य दशमुखभु जोच्छ् वासितप्रस्थसंधैः।
कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथिः स्याः।।
शृंगोच्छायैः कुमुदविशदैर्यो वितत्थ स्थितः।
राशीभूतः प्रतिदिनमिव त्रयम्बकस्याट्टहासः।।
संस्कृत भाषा में लिखित उक्त श्लोक का अर्थ है कि हे मेघ! आगे बढ़कर कैलाश पर्वत के अतिथि होना जो अपनी शुभ्रता के कारण देव गणनाओं के लिए दर्पण के समान है। उसकी धारों के जोड़ रावण की भुजाओं से झड़झड़ाए जाने के कारण ढीले पड़ गये हैं। वह कुमुद के पुष्प जैसी श्वेत बर्फीली चोटियों की ऊँचाई से आसमान को छाए हुए ऐसे खड़ा है मानो शिव के प्रतिदिन के अट्हास का ढेर लग गया है। मेघदूत के एक और शलोक –
हित्वा तस्मिन्भुजगवलयं शंभुना दत्तहस्ता
कीढाशैले यदि च विचरेत्पादचारेण गौरी !
भड्गीभक्त्या विरचिवपुः
स्ताम्भितार्न्जलाघः
सोपातत्वं कुरू
मणितटारोहणायाग्रयायी।
श्लोक के अनुसार जिस पर लिपटा सर्परूपी कंगन उतार कर रख दिया गया है, शिव के हाथ में अपना हाथ लिए यदि पार्वती जी उस क्रीडा पर्वत पर पैदल घूमती हों, तो तुम उनके आगे जाकर अपने जलों को भीतर ही बर्फ के रूप में रोके हुए अपने शरीर से नीचे-ऊँचे खंड सजाकर सोपान बना देना जिससे वे तुम्हारे ऊपर पैर रखकर मणितट पर आरोहण कर सकें।
कैलाश मानसरोवर हालांकि चीन में स्थित है लेकिन प्राचीन काल से ही यह स्थल हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों तथा लामाओं के लिए सर्वोत्तम पवित्र तीर्थ माना जाता है। हिन्दु धर्म की पवित्र पुस्तक रामायण में कैलाश मानसरोवर के लिए कहा गया है कि जिस व्यक्ति का शरीर इस धरती से छू जाता है तथा जो व्यक्ति उस सरोवर में स्नान कर लेता है, वह मृत्यु के उपरांत ब्रह्मा के स्वर्ग में स्थान पाता है। जो इस जल को ग्रहण करता है, वह शिव के स्वर्ग में जाता है और वह हजार जन्मों के पापों से मुक्ति पा लेता है। इसी तरह जैनियों का मत है कि जैन धर्म के ऊषाकाल में प्रथम तीर्थंकर, नियमों के निर्माता, भगवान ऋषभदेव ने यहीं कैलाश में निर्वाण प्राप्त किया था। जबकि बौद्ध अनुयायी का ऐसा विश्वास है कि कारिम्पोचे अर्थात् यह पवित्र शिखरों में पवित्रतम् शिखर है। बोधिसत्व का अंतिम प्रमाण स्थल अनोताता (पाली भाषा में मानसरोवर का नाम) है रानी माया को स्वप्न आया कि देवतागण उन्हें रथ में बैठाकर इस सरोवर की दिशा में ले जा रहे हैं। इसमें स्नान कर उनके आन्तरिक शरीर की पूरी गंदगी, मैल आदि धुलकर स्वच्छ हो गया जिससे भगवान बुद्ध उनके गर्भ में स्थापित हो सकें। वे श्वेत मेघ के रूप में कैलाश पर्वत में उदिल हुए थे।
इसी कड़ी में बोनपाओ (बुद्ध-पूर्व काल में तिब्बत का धर्म) का ऐसा विश्वास है कि कैलाश एक नवमंजिला स्वास्तिक शिखर है तथा धरती का मर्म स्थल है। गौरतलब है कि वर्ष 1888 में स्वामी विवेकानंद जी ने भी कैलाश मानसरोवर की पवित्र यात्रा की। इसी तरह स्वामी प्रवणानन्द महाराज ने तो कैलाश मानसरोवर की 25 बार परिक्रमा की तथा उन्होने इस स्थल की भौगोलिक, अध्यातमिक व वैज्ञानिक विषयों पर शोधपूर्ण अनुभवों को पिरोकर एक पुस्तक भी लिखी।
पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा पंजीकृत होती है। कुमांऊ मण्डल विकास निगम लिमिटेड के क्षेत्रीय पर्यटन प्रबन्धक डी. के. शर्मा ने बताया कि निगम दिल्ली से लेकर लिप्पुपास के बीच आने-जाने के सफर में प्रत्येक बैच को काठगोदाम, अल्मोड़ा, चाकौरी, धारचूला आदि स्थलों पर 16-17 दिनों का ठहराव होता है। इस दौरान रहने, खाने, समान सुरक्षा, गाईड और यातायात व्यवस्था के लिए निगम के लगभग 90 कर्मचारी 24 घंटे सेवा में तैनात रहते हैं।
इस पवित्र यात्रा को अधिक सुगम तथा यादगार बनाने हेतु प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी प्रशंसनीय प्रयास किये हैं। वर्ष 2006 में चीन के राष्ट्रपति से डा. सिंह ने बातचीत के दौरान यात्रा के लिए वैकल्पिक रास्ते खोलने का प्रस्ताव भी दिया। इसके अलावा चीन से यात्रा के समय तीर्थ यात्रियों को और अधिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए चीन ने भी सहमती जताई थी।
भारत चीन द्वारा पारित आपसी समझौते के तहत यह यात्रा 1981 से पुनः शुरू हुई। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष जून से सितम्बर माह तक चलती है। पर्वतारोहण तथा धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए यह यात्रा वास्तव में रमणीक अनुभव संजोने के समान है। इस पवित्र यात्रा को तय करने में लगभग 28 दिन लग जाते हैं। हालांकि इस यात्रा में शामिल होने के लिए आवेदन प्रक्रिया फरवरी-मार्च माह में शुरू हो जाती है। परन्तु इस यात्रा के लिए आवेदन वयस्क (18 वर्ष से अधिक आयु) तथा अधिकतम आयु 70 वर्ष होना अनिवार्य है। इसके साथ-साथ आवेदक को शारीरिक स्वस्थता का प्रमाण देने के लिए मेडिकल फिटनेस तथा वीजा संबंधी औपचारिकताओं से भी गुजरना पड़ता है।
भारत वर्ष की राजधानी दिल्ली से आरम्भ होने वाली पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा करते हुए पवित्र कैलाश पर्वत की लगभग 865 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है। दिल्ली से काठगोदाम, भवाली, अल्मोड़ा, तकूला, बागेश्वर, डिडीहॅट, धारचूला, तवाघाट, मंगती, गाला गढ़, मालपा, बुद्धि गुन्जी, कालापानी नवीधांग, लिप्पूलेख पास, तकलाकोट, राक्षसताल, जैदी, परखा प्लेनस, तारचेन तक पहुंच कर पवित्र कैलाश पर्वत की परिधि 54 किलोमीटर परिक्रमा आरंभ होती है। तारचेन से दिरूपूल, डोलमा पास, जोंग जेरबू से पुनः तारचेन की परिक्रमा में लगभग तीन दिन की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। तारचेन से वापिस परखा प्लेनस आकर पवित्र मानसरोवर झील की 32 किलोमीटर की यात्रा के होरे, छुग्गु, जैदी पड़ावों को तय करना पड़ता है। भारत सरकार द्वारा इस यात्रा में 60 श्रद्धालुओं के समूह, सरकारी राजपत्रित अधिकारी के नेतृत्व में 16 बैचों को भेजा जाता हैं। सूत्रों के मुताबिक इस यात्रा को करने में लगभग 75-80 हजार रुपये का खर्च उठाना पड़ता है। इस यात्रा को करने वाले यात्रियों को कुछ राज्य सरकारें प्रोत्साहन स्वरूप राशि भी प्रदान करती हैं।
भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल के जनसम्पर्क अधिकारी डी.के. पांडे ने बताया कि दिल्ली मुख्यालय में प्रत्येक बैच को पवित्र यात्रा पर जाने से पहले अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है ताकि यह यात्रा अत्यंत सुगम व यादगार साबित हो सके। इस यात्रा का सुरक्षा इंतजाम भी भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल द्वारा किया जाता है।
इसके अलावा, इसी यात्रा को कुछ निजी टूर आपरेटर भी करवाते हैं। उन्ही में कैलाश एण्ड मानसरोवर यात्रा प्रा. लिमिटेड की वाइस प्रेसिडेंट कुमारी स्वर्ण अनुराग का कहना है कि वे इस यात्रा को जीप से 13 दिनों में पूरा करते हैं जिसका खर्च 80 से 90 हजार रुपये तथा हेलिकाप्टर से 10 दिनों के यात्रा का खर्च लगभग 1,50,000 रुपये आता है। यह यात्रा मई के प्रथम सप्ताह से शुरू हो जाती है और सितंबर माह तक चलती है।
राष्ट्रीय स्तर की पंजीकृत संस्थान कैलाश मानसरोवर सेवा समिति के अध्यक्ष शशिकान्त भी पवित्र कैलाश मानसरोवर की यात्रा दस बार कर चुके हैं। उनका मानना है कि मानव जीवन में यदि स्वर्ग का साक्षात दर्शन करना चाहते हैं तो, इस यात्रा को अवश्य करना चाहिए। समिति के मुख्य सरंक्षक डी.आर. कार्तिकेन (आई.पी.एस.) पूर्व निदेशक केंद्रीय जांच ब्यूरो व राष्ट्रीय मानव अधिकार संसाधन आयोग तथा सरंक्षक रामाकृष्णन, पूर्व महानिदेशक होमगार्ड (आई. पी. एस.) व छत्तरपुर मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। समिति की स्थापना अगस्त, 2000 में हुई। समिति ने 4-6 दिसम्बर, 2006 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में तीन दिवसीय भव्य महासम्मेलन आयोजित किया था जिसमें देश-विदेशों से हजारों शिव भक्तों ने पूरी धार्मिक आस्था से हिस्सा लिया था। आज समिति में देश के विभिन प्रांतो से 1800 सदस्य हैं।
गौरतलब है कि संस्थान विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित पवित्र यात्रा के प्रत्येक बैच (समूह) को दिल्ली से रवाना होने से पहले महत्त्वपूर्ण जानकारी, दो मेडिकल बैग तथा चीन में यात्रियों के लिए विशेष रूप से खाद्य सामग्री प्रदान करती है। समिति दिल्ली में कैलाश भवन बनवाने तथा इस पवित्र यात्रा को बढ़ावा देने के लिए के लिए प्रयासरत है।
यदि आप भी पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाना चाहते हैं तथा आध्यात्मि व प्रकृति प्रेमी हैं तो निम्न पते से महत्त्वपूर्ण जानकारी लेकर इस सुखद यात्रा का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। वैसे आनलाइन आवेदन 5 मार्च तथा साधारण डाक से आवेदन 12 मार्च, 2012 तक किया जा सकता है।
China Registry (KMY),
Room No.255-A, South Block,
Ministry of External Affairs,
New Delhi – 110011.
Telephone: 011-2301-4900.
www.kmy-2012.webstarts.com
www.meo.gov.in
E-mail: kmyatra@mea.gov.in, kmvn@yahoo.com,
info@kmvn.gov.in, mdkmvn71@gmail.com
छमू क्मसीप दृ कुमाऊँ मण्डल विकास निगम लि.
ओक पार्क हाउस, नैनीताल -263001
फोन : 05942.236356
फैक्स : 05942.236897
बहुत लाभदायक जानकारी …. धन्यवाद …. 🙂