अशोक कुमार निर्भय
हमारा देश संस्कृति प्रधान देश है। सांस्कृतिक धरोहर हमारे गौरवशाली इतिहास को आज भी देश दुनिया के सामने हमारा मस्तक ऊंचा करके सम्मान दिला रही है। हमारे देश में अनेक त्योहार और उत्सव मनाये जाते हैं। पश्चिमी सभ्यता के आगमन के साथ कई तीज त्यौहार आज विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज यदि हमारे तीज – त्यौहार बचेंगे तो हमारी संस्कृति और हमारा लोक संस्कृति और शौर्य से भरा गौरवमयी इतिहास भी बचेगा।
देवभूमि से प्रसिद्ध उत्तरकाशी में संस्कृति और लोक परंपराओं को बचाने और उसके विकास एवं संवर्धन के लिए यह कार्य अनघा माउंटेन एसोसिएशन वर्ष 2007 से अनवरत करता आ रहा है। इस क्रम में शौर्य के उत्सव मंगसीर की बग्वाल के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए स्थानीय लोगों को साथ लेकर अनघा माउंटेन एसोसिएशन ने 2007 से उत्तरकाशी शहर में सामूहिक बग्वाल मनाने की शुरुआत की थी। तब से इस मंगशीर बग्वाल को दो-दिवसीय उत्सव के रूप मनाया जाने लगा। वर्ष दर वर्ष के कार्यक्रम की व्यापकता,लोकप्रियता व स्थानीय संस्कृति के जुड़ाव के चलते अब यह उत्सव पांच दिवसीय उत्सव के रूप में उत्तरकाशी से लेकर मुंबई और नोयडा में भी मनाया जाने लगा है। इस मंगशीर बग्वाल कार्यक्रम के अन्तर्गत स्कूली छात्रों के लिए मंगशीर की बग्वाल और गढ़वाल के वीर भड़ों पर आधारित गढ़वाली भाषण व निबंध प्रतियोगिता आयोजित, गढ़वाली फैसन शो, रस्साकशी, तथा मुर्गाझपट आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोक परम्परा के अनुरूप गढ़वाली व्यंजनों का स्टाल गढ़ भोज भी लगाया गया।
इस उत्सव में शाम कण्डार देवता मंदिर बाड़ाहाट से रामलीला मैदान उत्तरकाशी तक जो सांस्कृतिक यात्रा निकाली जाती है। जो अत्यंत आकर्षक झांकियों से सजी होती है। इस सांस्कृतिक यात्रा में गढ़वाली संस्कृति के सभी रंग सड़कों पर देखने को मिलते हैं जिसमें लोक परंपरा अनुसार थड़िया,चौफला,सारो नृत्य के साथ- साथ कुमाऊँ का समृद्ध छोलिया नृत्य की छटा भी देखने को मिलती है।
अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक एवं उत्तरकाशी विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी जी महाराज ने बताया कि इस मंगशीर बग्वाल के उत्सव का अपना अलग महत्व है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि मंगशीर की बग्वाल वीर सेनापति माधोसिंह भण्डारी के नेतृत्व में गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है। वर्ष 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं में घुसकर लूटपाट करते थे। तब राजा ने गढ़वाल रियासत के दीवान एवं सेनापति माधोसिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनोर क्षेत्र में सेना भेजी थी। सेना विजय करते हुए दावा घाट (तिब्बत) तक पहुंच गई थी। ऐसे में कार्तिक मास की बग्वाल के लिए माधोसिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए, किंतु यह खबर श्रीनगर पहुंच चुकी थी कि गढ़वाली सेना ने तिब्बतियों पर विजय प्रप्त कर ली है। राजा महीपत शाह नें घोषणा की थी कि जब सेनापति माधोसिंह भंडारी अपनी सेना के साथ श्रीनगर पहुचेंगे उस दिन रियासत में बग्वाल ( दीवाली) मनाई जाएगी।
तभी से गढ़वाल रीजन में मंगसीर की बग्वाल मनाई जाती है। मंगसीर की बग्वाल मात्र बग्वाल नहीं हमारे वीर भड़ों के गौरवमय इतिहास का सम्मान करना एवं अपने इतिहास पुरुषों के प्रति श्रद्धांजलि भी है। इस बेहतरीन आयोजन के लिए अनघा माउंटेन एसोसिएशन और इस आयोजन से जुड़े सभी लोग साधुवाद और बधाई के पात्र हैं।