हम सभी ने थोड़े ही दिन पहले (16 जून को ) पिता दिवस अर्थात “फादर्स डे” मनाया और इस दिन हम सभी अपने पिता जी द्वारा हमारे जीवन में हमारे ऊपर किये गए उपकारों को याद करते हैं ! इसी दिन के उपलक्ष में मुझे एक बड़ा पुराना किस्सा याद आ गया ! यह बात 1979 की है और उन दिनों मैं दोआबा कॉलेज जालंधर में बीए फाईनल में पढ़ता था ! एक दिन हमारे क्लास के आख़िरी पीरियड के बाद जब मैं अपने घर जाने के लिए बाहर जा रहा था तो मेरा एक सहपाठी ( विजय कुमार ) भागता हुआ मेरे पास आया और मुझे रोक कर बिनती भरे स्वर में कहने लगा, “यार भारद्वाज ! मुझे तुझसे थोड़ा काम है, प्लीज मेरी बात सुन लो और मुझे मना मत करना !” मैंने कहा, “मैं तुम्हारी बात तो जरूर सुनूंगा, लेकिन तुम्हारी बात माननी है या नहीं, यह बात तो मैं बात सुनने के बाद ही बता सकता हूँ ?” विजय कुमार ने अपनी बात कहनी शुरू की, ” देखो यार ! मुझे तुझसे थोड़ी सहायता चाहिए ?” मैंने उत्तर दिया , “अपनी बात पूरी करो , तुझे मुझसे कैसी सहायता चाहिए ?” विजय – “मुझे पांच रूपये उधार दे दो , मैं तुम्हें अगले महीने वापिस कर दूंगा !” आज के दौर में पांच रूपये एक मामूली सी बात लगती है, लेकिन उन दिनों (1979 में) किसी विद्यार्थी के लिए यह एक बड़ी राशि हुआ करती थी ! सो मैंने विजय से पूछा , “वैसे पांच रूपये तुझे किस लिए चाहिए?” उसने उत्तर दिया, “मैंने इंग्लिश की एक गाइड खरीदनी हैं, वह पुस्तक सात रूपये की आती है, दो रूपये मेरे पास हैं, बाकी के पांच रूपये तुम दे दो , प्लीज ! मेरा काम हो जायेगा ?” मैंने उल्टा सवाल किया, “देखो विजय, तुम्हारी तरह मैं भी एक विद्यार्थी ही हूँ , मेरे पास इतने पैसे कहां से आएंगे ? मुझे तो केवल 25 पैसे ही जेब खर्च मिलते हैं , सो मैं तुझे पांच रूपये कहाँ से दूँ ?’ वैसे मुझे उससे पहले से ही मालूम हो चुका था कि विजय अपनी क्लास के तीन चार और दोस्तों से उधार मांग चुका है, लेकिन किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की है! मैंने फिर उस से कहा, “विजय ! मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं , तुम किसी और से मांग लेना, मेरे पास नहीं हैं !” लेकिन विजय नहीं माना, और वह मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगा, यार ! प्लीज मेरी मदद कर दो, देखो मुझे यह पैसे बड़े जरुरी चाहिए , प्लीज मेरी सहायता कर दो , अगर तूने यह पैसे मुझे नहीं दिए तो मेरी पढ़ाई का बड़ा नुकसान हो जायेगा !” ख़ैर उसके इतने तरले करने के बाद मेरा दिल भी पसीज़ गया और मैंने उससे वायदा किया कि अभी तो मेरे पास पैसे नहीं है, कल मैं तुझे यह पैसे दे दूंगा !”
अगले दिन मैं अपने घर से पैसे ले आया और विजय को पैसे दे दिए ! साथ ही साथ मैंने उससे वचन भी लिया कि वह यह पैसे मुझे अगले महीने वापिस कर दे , जिसका उसने बड़े आराम से वायदा कर दिया ! तीन चार दिन बाद मैंने विजय से पूछा कि उसने वह इंग्लिश की गाइड खरीद ली है या नहीं ?” उसने बताया की वह तो उसने उसी दिन “सुभाष बुक डिपो” , माई हीरां गेट से खरीद ली थी ! मैंने अपनी प्रतिक्रिया दी , “चलो अच्छा हुआ, तुम्हारी परेशानी दूर हो गई , और अब अपना वादा भी याद रखना एक महीने बाद मेरे पैसे वापिस कर देना ! हाँ , जरूर ! मुझे याद है, बोलकर वह चला गया ! इस बात को एक महीना बीत गया, दो महीने बीत गए , लेकिन विजय ने मेरे पैसे वापिस नहीं किये ! अब मेरी परेशानी बढ़ने लगी थी, और विजय हर बार कोई न कोई नया बहाना बनाकर मुझे टालता रहा ! ढाई महीने बीत गए , लेकिन मेरे पैसे मुझे वापिस नहीं मिले ! अब मैंने अनुभव किया कि विजय मुझे अनदेखा करने लग गया है, उसने क्लास में बैठने का अपना बेंच भी बदल लिया था, वह आख़िरी बेंच पर बैठने लग गया था और जैसे ही आखिरी पीरियड समाप्त होता, विजय फ़टाफ़ट आँख बचाकर निकल जाता ! उसकी इस चाल से परेशान होकर एक दिन मैंने फ़ैसला किया , जो मर्जी हो जाये , आज तो मैं विजय से अपने पैसे वापिस लेकर ही रहूँगा , बेशक इसके लिए मुझे उसके साथ “तू तू मैं मैं ” क्यों न होना पड़े ! जैसे ही हमारा आखिरी पीरियड समाप्त हुआ विजय बड़ी होश्यारी से क्लास से निकलकर भागने की फ़िराक में था , और मैं भी उसके पीछे २ तेज २ चलने लगा ! वह सीधे गेट की तरफ़ जाने की बजाये साइकिल स्टैंड के बीच से निकलने ही वाला था कि मैंने भागकर उसे पकड़ लिया और उसे रोककर सवाल किया, “मैं कितने दिनों से देख रहा हूँ, मैं जब भी तुझे आवाज देता हूँ, तूं मुझे अनसुना करके ऐसे भागने लग जाता है कि जैसे तूं मुझे पहचानता ही न हो, तुझे मेरी आवाज़ सुनाई नहीं देती क्या ?” लेकिन आज मैं तुझे नहीं जाने दूंगा, निकाल मेरे पांच रूपये ?” विजय अपने व्यवहार पर शर्मिंदा तो हुआ , लेकिन बोलने लगा , मेरे पास पैसे तो नहीं हैं, बेशक आप मेरी तलाशी ले लो !” मैंने उसकी सारी जेबें टटोल ली, लेकिन उसके पास एक चवन्नी भी नहीं निकली ! मैंने गुस्से मैं उसे बोला, “विजय तुम तो बड़े कमीने निकले , एक महीना बोलकर तूने मुझे से ढाई महीने पहले पैसे लिए थे, अब बोल रहा रहा है कि पैसे नहीं, बता मेरे पैसे कब देगा , मेरा दिल करता है कि तेरी मैं अच्छी तरह पिटाई कर दूँ !” विजय ने उत्तर दिया, “भारद्वाज भाई ! मैं जानता हूँ कि मैंने तेरे से पैसे उधार लिए हैं, लेकिन मेरे से उन पैसों का जुगाड़ नहीं हो पायेगा, अब तूं चाहे तो मुझे गाली भी दे सकते हो, पीटना चाहो तो पीट भी सकते हो, लेकिन पैसे मेरे पास नहीं हैं और शायद मैं तुझे वह पैसे वापिस कर ही न पायूँ ?”
मैं उसके व्यवहार से बड़ा हैरान परेशान था, कि यह तो अब साफ़ बोल रहा है कि वह पैसे वापिस नहीं करेगा ? मैंने उससे अगला सवाल किया, “अगर तूने पैसे वापिस नहीं करने थे तो मेरे से उधार लिए ही क्यों थे ?” विजय बोला, “भारद्वाज ! इंग्लिश गाइड खरीदनी बहुत जरुरी थी, उस हेल्प बुक के बिना मेरे इंग्लिश में अच्छे अंक नहीं आ सकते, मैं अपने क्लास के चार पांच दोस्तों से पैसे मांग चुका था, कोई भी मुझे पैसे नहीं दे रहा था, तूने मुझे दे दिया, इसके लिए तुम्हारा धन्यवाद ! लेकिन मैं तुम्हारे पैसे वापिस नहीं कर सकता ?” मैंने फिर उसके सामने अपना पक्ष रखते हुए बोला, “देख विजय ! मैं भी तेरी ही तरह एक गरीब बाप का बेटा हूँ , मेरे बाप की कोई फैक्ट्री नहीं चलती और न ही हमारी खेतबाड़ी की जमीने हैं, पैसे की जितनी तुझे आवश्यकता है, उतनी मुझे भी है, सो मेरे पैसे वापिस कर दे !” “विजय ने अपनी मज़बूरी बताते हुए उत्तर दिया , “भारद्वाज ! तूं मेरी तरह नहीं है, तुम तो बड़े अमीर हो और मैं एक गरीब, मजलूम बंदा, तेरा मेरा कोई मुकाबला नहीं है!” मैं उसकी अधूरी जानकारी सुनकर हैरान रह गया और उससे पूछा, “तुझे किसने बताया कि मैं बड़ा अमीर लड़का हूँ , मेरे पिताजी तो मामूली सी नौकरी करते हैं, थोड़ी सी उनकी तनखाह है, सो मैं कैसे अमीर हो गया ? तेरे पास पैसे नहीं हैं तो अपने बाप से मांग, कैसे भी कर, मुझे मेरे पैसे वापिस चाहिए !” विजय – “किससे मांगू ? मेरा कोई बाप नहीं है, तेरे सिर पे तेरा बाप बैठा है न, इसलिए तुम सचमुच बड़े अमीर लड़के हो !” मैं उसकी बात सुनकर सुन्न रह गया ! तेरा बाप नहीं है, क्या हुआ तेरे पिताजी को और कब ?” मेरा सवाल सुनकर उसकी आँखों में आंसू आ गए और विजय बोला, “जब मैं हॉयर सेकेंडरी में पढ़ता था, मेरा बाप तो तब ही पूरा हो गया था, तीन वर्ष हो चुके हैं, तुझे कभी पैसे चाहिए तो तुम अपने बाप के पास जाकर उनको बिनती कर सकते हो ? बाप पैसे न दे , तो तुम उनके सामने थोड़ा रोयेंगे , गिड़गड़ाओगे, बाप आखिर बाप ही होता है, उसका दिल पिघल ही जायेगा , वह अपने बच्चे को दुखी / परेशान होता नहीं देख सकता ! देर सवेर वह आपको पैसे दे ही देगा , क्योंकि उसका पता है कि तुम उनके बेटे हो, अपने खून को कोई बाप दुखी परेशान नहीं देख सकता, खून का रिश्ता ही ऐसा होता है, लेकिन मेरा बाप तो दुनिया ही छोड़ चुका है, अपने बाप के होते हुए तुम कितने अमीर हो, बस तुझे इस बात का एहसास नहीं है ! मेरा बाप तो इस दुनिया से ही जा चूका है, अब बता मैं पैसे किससे मांगू ?” मैंने उससे अगला सवाल किया, “ऐसे मैं तुम्हारे घर का गुजारा कैसे चलता है, तुम्हारी माता जी क्या करती हैं?” विजय – ” मेरी माँ लड़कियों / महिलाओं के कपड़े सिलकर घर का थोड़ा खर्चा उठाती हैं, इसके इलावा मेरी माँ ने हमारे पूरे मोहल्ले में बात फैलाई हुई है कि अगर किसी के घर में अचानक 10-12 मेहमान आ जाएं, या किसी और वजह से कोई गृहिणी घर का कामकाज करने में असमर्थ हो तो मुझे बुला लेना, मैं तुम्हारे घर का पूरा काम कर दूंगी , बदले मैं आप मुझे 8/10 रूपये दे देना, इससे मेरी मदद हो जाएगी ! और मेरी माँ उनके काम करती भी हैं ! मैं अक्सर देखता हूँ कि आप लोग कभी २ कैंटीन में चाय समोसे गुलाब जामुन खाने जाते हो ना, क्या आपने कभी मुझे देखा है कैंटीन में जाते हुए ?” फिर मुझे भी ख्याल आया कि विजय तो कभी कैंटीन जाता ही नहीं ! विजय ने अपनी कहानी जारी रखी, “हम तीन भाई बहन हैं, मैं घर में सबसे बड़ा हूँ, मेरी छोटा भाई या बहन कभी मुझसे दस पैसे भी मांग ले, मैं तो उसे वह भी नहीं दे सकता ? बाप के बिना बच्चे कंगाल हो जाते हैं !” उसकी आँखों से आँसू ऐसे टपकते जा रहे थे, जैसे किसी गरीब आदमी की छत बरसातों में टकपत हो !
मैंने विजय से अगला सवाल किया, “तुम्हारे चाचा ताया, भूआ या मौसी वगैरह भी तो होंगी, क्या वह लोग भी तुम्हारी सहायता नहीं करते ?’ विजय ने उत्तर दिया, “मेरा एक चाचा और एक ताया हैं, एक भूआ भी है, दो मौसियां भी हैं, उन्होंने पिताजी के जाने के बाद लगभग 6/7 महीने तक तो थोड़ा बहुत हमारा ख्याल रखा, बाद में धीरे २ वह सभी हमसे दूर होने लग गए, कहने लगे कि तुम्हारा तो यह रोज का ही काम है, हम अपना घर देखें या तुम्हारा , महंगाई हमें भी तो चुभती है ! अब तो लगभग सभी रिश्तेदारों ने हमसे नाता तोड़ लिया है! मैंने अपनी तरफ़ से उसको सुझाव दिया, “तो तुम पढ़ाई के साथ २ कोई काम क्यों नहीं करते ? लेकिन विजय ने उत्तर दिया, “मेरी माँ कहती है कि तुम पूरा मन लगाकर पढ़ाई करो और जल्दी २ नौकरी में आ जायो, ताकि मैं माँ का सहारा बन सकूं! फ़िर छोटे भाई बहन को पढ़ाना भी तो है ! मैंने अपनी प्रतिक्रिया दी, “देखो थोड़ा बहुत पैसे कमाना कोई मुश्किल काम नहीं है, मैं भी पढ़ाई करते २ अपने गाँव के दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता हूँ , 25 रूपये प्रति बच्चे के हिसाब से प्रत्येक महीने मेरी 50 रूपये की आमदनी हो जाती है, यह जो मैंने तुम्हें पांच रूपये दिए थे, यह मेरी अपनी कमाई में से ही थे !” विजय मेरी बात सुनता तो रहा लेकिन उसने कोई और काम करने के मेरे सुझाव पर हामी नहीं भरी ! ख़ैर, उसके इतने बुरे हालात देखकर मुझे यह एहसास हुआ कि बाप का हमारे सिर पर होना वाक्य ही निरंकार की बहुत बड़ी रेहमत है, हमारे पिताजी जाने अनजाने से हमें न जाने कितने ही दुःख तकलीफों / परेशानियों से बचाकर रखते हैं ! इस तरह विजय के घर के पूरे हालात की कहानी सुनकर मुझे एहसास हुआ कि विजय कोई बेईमान नहीं है वह तो बस अपनी परस्थितियों का मारा हुआ / सताया हुआ एक अभागा बंदा है, और फ़िर मैंने उसे दिलासा देते हुए आश्वासन दिलाया, “अब तुझे मुझसे घबराने की कोई जरुरत नहीं है, मैंने तुम्हारे उधार लिए हुए पांच रूपये मुआफ़ किये !”
अगले वर्ष अप्रैल में हमारी वार्षिक परीक्षा हो गई और मैंने तो जैसे पहले ही मन बनाया हुआ, अपने कुछ ख़ास २ दोस्तों के संग एमए इंग्लिश में एडमिशन ले लिया ! लेकिन विजय ने बीए करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी, वह नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया ! लेकिन मैं उसके मोहल्ले के लड़के जो हमारे कॉलेज में पढ़ते थे , उनके माध्यम से उसके बारे मैं कभी २ जानकारी लेता रहता था !
हमारी एमए प्रथम वर्ष की वार्षिक परीक्षा से पहले ही मुझे सूचना मिल गई कि विजय को एक बैंक में नौकरी मिल गई है! और यह सूचना पाकर मेरे दिल को बड़ी प्रसन्नता हुई, कि चलो, अब विजय के घर की प्रस्थितियाँ सुधरने लग जाएंगी, अब उसकी माताजी को दूसरों के घरों में काम नहीं करना पड़ेगा, अब उसकी माता जी के सिर से आर्थिक मंदहाली का बहुत बड़ा बोझ उत्तर जायेगा और उसके घर में भी धीरे २ प्रगति और खुशहाली पाँव पसारने लग जाएगी !!
आर डी भारद्वाज “नूरपुरी”