प्रो. एस.एस. डोगरा
“पल पल दिल के पास तुम रहती हो…”
“कहीं मैं कवि न बन जाऊँ…”
ऐसे किसी भी रोमांटिक गीत की धुन कानों में पड़ते ही एक नाम सहज ही मन में उभर आता है—धर्मेन्द्र। फिल्मों का यह सजीव इतिहास, पंजाबी गबरू जट्ट, जिसने सिल्वर स्क्रीन पर अपनी सादगी, व्यक्तित्व और अभिनय से अमिट छाप छोड़ी।
पंजाब की मिट्टी से मायानगरी तक
धर्मेन्द्र का जन्म 8 दिसंबर 1935 को पंजाब के फगवाड़ा (जिला कपूरथला) में हुआ। उनका पैतृक गाँव लुधियाना जिले के साहनेवाल में है। शिक्षा फगवाड़ा के आर्य हाई स्कूल व रामगढ़िया स्कूल में हुई। बचपन से ही फिल्मों का जबरदस्त शौक था — दिल्लगी फिल्म उन्होंने 40 बार देखी थी।
सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में उनकी पहली शादी प्रकाश कौर से हुई। रेलवे की नौकरी और मात्र ₹125 की तनख्वाह… पर सपने ऊँचे। फिल्मफ़ेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट में निर्माता अर्जुन हिंगोरानी की नज़र पड़ी और उन्हें फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ में सिर्फ ₹51 साइनिंग अमाउंट पर हीरो का मौका मिला।
संघर्ष से सफलता तक — ‘ही-मैन ऑफ बॉलीवुड’
जुहू के एक छोटे कमरे में संघर्ष शुरू हुआ।
‘अनपढ़’, ‘बंदिनी’, ‘सूरत और सीरत’ जैसी फिल्मों ने पहचाना दिलाई और
1966 — ‘फूल और पत्थर’ ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया।
करीब 200+ फिल्मों में अभिनय किया।
‘सत्यकाम’ — ईमानदार और सिद्धांतवादी नायक
‘शोले’ — वीरू, जिसने दोस्ती को नया अर्थ दिया
‘चुपके चुपके’ — ऐसा कॉमेडियन जिसे देखने पर आज भी हँसी रुकती नहीं
‘भूपिंदर सिंह के गीतों में उस दौर की सबसे सच्ची रोमांस की तस्वीर
वे अपने स्टंट खुद करते थे — फिल्म ‘मा’ में सचमुच एक चीते से लड़ाई का दृश्य फिल्माया गया, इसलिए उन्हें “He-Man” कहा गया।
व्यक्तिगत जीवन और विरासत
उन्होंने बाद में हेमा मालिनी से विवाह किया।
2004–2009 तक बीकानेर से सांसद (लोकसभा) रहे।
उनके बेटे सनी देओल, बॉबी देओल और पोते करण देओल फिल्म जगत में सक्रिय हैं —
यह भारतीय सिनेमा की तीसरी पीढ़ी है।
धरम जी का जीवन-मंत्र
रेस्टोरेंट ‘गरम धरम’ के उद्घाटन पर मैंने उनसे पूछा—
“सफलता का सूत्र क्या है?”
वे मुस्कुराए और अपनी ठेठ पंजाबी में बोले:
“कम्म करो डट के, ते खाओ-पियो रज्ज के!”
यानी काम पूरी मेहनत से करो, और जीवन पूरी दिलदारी से जियो।
एक भावुक स्मृति
लॉकडाउन के दौरान उनके जन्मदिन पर मैंने फोन कर शुभकामनाएँ दीं और अपनी माँ से बात करवाई।
हमारी माँ उनसे बात करते-करते भावुक हो गईं। इसी तरह
मशहूर अभिनेता प्रेम चोपड़ा जी से भी बात हुई।
आँसू छलकते हुए माँ ने कहा—
“बेटा, तेरी वजह से इतने बड़े-बड़े फिल्मी सितारों से बात करने का सपना पूरा हो गया।”
अंतिम निवेदन
“धर्मेंद्र जी आज भले ही इस संसार से विदा हो गए हों,
लेकिन वे हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों में जिंदा रहेंगे।”
धर्मेंद्र सिर्फ अभिनेता नहीं थे — एक भावना थे।
उनकी मुस्कान, उनका प्यार, उनकी सादगी —
आज भी हर फिल्म में, हर संवाद में, हर धड़कन में महसूस होती है।
वे पल-पल दिल के पास थे, हैं और हमेशा रहेंगे।







