अर्जुन पुरस्कार विजेता – छाया अडक

‘निशाना चुके ना’ जी हां, यदि आप अपने जीवन में सफलता के शिखर पर चमकना चाहते हैं तो आपको अपने लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाना होगा, ठीक वैसे ही जैसे महाभारत काल में अर्जुन ने विषम परिस्थिति में चुनौतिपुर्ण लक्ष्य को साधते हुए मछली के ऑख को अपने बाण से भेदा था। कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि ज़िंदगी में सफलता के लिए कठिन परिश्रम एवं आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी होता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि सफलता का सफर ज्यादा कठिन लगने के कारण लोग बीच रास्ते में ही अपने सफर को रोक देते हैं, उन्हें ऐसा प्रतित होता है कि आगे का सफर बहुत ही चुनौतिपुर्ण है और उसे वो तय कर पाने में असमर्थ हैं! पर सच्चाई इसके उलट होती है। सच्चाई तो यह है कि जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने के लिए परिश्रम के पथ पर आने वाले किसी भी प्रकार के चुनौतियों से सामना करने का साहस रखता है वो एक न एक दिन अवश्य ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति करता है और सफलता उसके कदम चुमती है।

आइए जानते हैं कुछ इसी प्रकार के परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने सफलता के पथ पर आगे बढ़ी, पहले भारोत्तोलक एवं बाद में पिस्टल शूटर, भारत सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिए जाने वाले अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित छाया अडक की कहानी।

छाया अडक का जन्म 10 जून 1967 में पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिला के माशिला गांव में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ। 1983 में छाया शॉट पुट और लोगों के साथ गहन बातचीत के माध्यम से भारोत्तोलक नामक खेल से परिचित हुई और डुमरजला मैदान में अभ्यास किया।

प्रस्तुत है अमित दुबे के साथ अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित छाया अडक का साक्षात्कार

            (अर्जुन पुरस्कार के सम्मानित शूटर छाया अडक का साक्षात्कार लेते अमित दुबे।)

आपने खेल को अपने कैरियर के रूप में कैसे चुना ?

खेल सबके बचपन का एक अमूल्य हिस्सा होता है। बचपन से ही मुझे किसी भी खेल को खेलने का बहुत शौक था, जब मैं बड़ी हुई तो मुझे भिन्न-भिन्न प्रकार के खेलों के बारे में और अधिक जानकारी मिली। जिनमे से एक था वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक)।  मैं वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) का अभ्यास करती रहती थी। यह खेल मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनने में कारगर तब सिद्ध हुआ जब मैं 24 फरवरी 1986 को बाबूलाल मुखर्जी प्रशिक्षण के तहत जयपुर में वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) का पहला स्वर्ण पदक जीता। उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि अब मैं इस सफर के उस मोड़ पर पहुंच चुकी हूं जहा से मुझे और अधिक  मेहनत करने की जरूरत है। फिर तब मैने वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) को अपना कैरियर के रूप में चुनाव किया।

वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) में आपने बहुत सारी उपलब्धियां हासिल की और अपने देश का परचम पुरे विश्व में फहराया, इन उपलब्धियों के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?

वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) का मेरा सफर शानदार और बहुत कुछ सिखाने वाला रहा। साल 1986 के बाद मैं अपने खेल को लेकर और अधिक मेहनत करने लगी, साल 1989 में मुझे मैनचेस्टर में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में अपने देश की ओर से वेटलिफ्टिंग(भारोत्तोलक) में भाग लेने का मौका मिला और मैंने कास्य पदक जीता। इसके बाद बिजिंग एशियन गेंम्स में भी मैने देश के लिए पदक लाए। इसी क्रम में मुझे सीआईएसएफ में एक अधिकारी के रूप में देश की सेवा करने का मौका मिला। यहां मैने अपने खेल के अभ्यास को जारी रखा और मुझे सुभाष चन्द्र गोयल जी के नेतृत्व में अच्छी ट्रेनिंग मिली। इसके फलस्वरूप मैंने साल 1991 में इंडोनेशिया में हुए एशियन चैम्पियनशिप में देश के लिए रजत पदक जीता। इसके अलावा मुझे 1991 में विश्व चैम्पियनशिप(जर्मनी), 1992 में एशियन चैम्पियनशिप(थाईलैंड), 1992 में ही विश्व चैम्पियनशिप(बुल्गारिया), 1993 में एशियन चैम्पियनशिप(चीन), में अपने देश के लिए खेलने का मौका मिला।

वेटलिफ्टर से आप पिस्टल शूटर कैसे बनी ?

वेटलिफ्टिंग का मेरा सफर बहुत ही शानदार चल रहा था, दुर्भाग्य से मुझे एशियन गेम्स कम्पटीशन के दौरान बैक इंजुरी हो गई, डॉक्टर ने साफ कह दिया कि “चोट गहरी है और आपको हमेशा के लिए वेटलिफ्टिंग छोड़नी पड़ेगी!”  मै उस वक्त बहुत निराश हुई, मुझे अपने चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था, ऐसा लग रहा था कि मानो मेरा पूरा कैरियर ही बर्बाद हो गया! तभी एक दिन एन. एस. राणा(शूटर जसपाल राणा के पिता) से मेरी भेंट हुईं, वो मुझे पहले से जानते थे। वे मुझे अपने कैरियर को लेकर बिल्कुल भी निराश न होने की सलाह दिए। उन्होंने मुझे हार न स्वीकार करने की प्रेरणा देते हुए ज़िंदगी के एक नए सफर से परिचय कराया। एन. एस. राणा जी ने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें एक पिस्टल शूटर के रूप में तैयार करूंगा, तुम अवश्य ही एक नए तेवर के साथ अपने इस खेल की दुनिया में वापस आओगे! मुझे राणा जी के देखरेख में पिस्टल शूटर के रूप में निखरने का मौका मिला। मुझे यह बात आपसे बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मैंने पिस्टल शूटर के रूप में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शूटिंग चैम्पिनशिप में भाग लिया और देश के लिए पदक जीता।

सीआईएसएफ के असिस्टेंट कमांडेंट के पद से सेवानिवृत होने के बाद आजकल आप क्या कर रही हैं ?

सीआईएसएफ में मैंने 28 साल तक असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर नौकरी कर देश की सेवा की। इससे पहले मुझे खेल के माध्यम से देश की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चूंकि मैं अब रिटायर हो चुकी हूं तो अब खेल के माध्यम से ही समाज की सेवा कर रही हूं। मैने अपना एक “ग्लोबल शूटिंग स्पोर्ट्स एकेडमी” खोला है जिसके द्वारा मैं उन तमाम युवा खिलाड़ियों को पिस्टल शूटिंग की ट्रेनिंग देती हूं जो आने वाले दिनों में देश का नाम रौशन करेंगे। ऐसे युवा जो इस क्षेत्र में वाकई में जाना चाहते हैं उनके लिए मैनें अपने इस एकेडमी में ऐसी सारी व्यवस्थाएं कर रखी है जो उनके लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। एक चीज और चूंकि मैने अपने “ग्लोबल शूटिंग स्पोर्ट्स एकेडमी” में अंतरराष्ट्रीय स्तर का शूटिंग की व्यवस्था बना रखी है तो इसके लिए कुछ शुल्क लगते हैं जो यहां पिस्टल शूटिंग सिखने आने वाले खिलाड़ी अदा करते हैं।

आज के युवा पीढ़ी जो वेटलिफ्टिंग, शूटिंग या अन्य किसी भी खेल में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं तो उनके लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?

मैं उन युवा पीढ़ी को यही संदेश देना चाहूंगी कि यदि आप सच में अपना कैरियर वेटलिफ्टिंग, पिस्टल शूटर या अन्य किसी भी प्रकार के खेलों में बनाना चाहते हैं तो इसके लिए पूरी तैयारी के साथ अपने आप को इसके प्रति समर्पित कर दें। ईमानदारी के साथ कड़ी मेहनत करें और अपने आत्मविश्वास को किसी भी परिस्थिति में खोये नहीं, बल्कि उसे हमेशा धैर्य के साथ मजबूत बनाएं रखे। हमेशा अपने मेहनत और लक्ष्य को लेकर सकारात्मक सोचें, सफलता एक दिन जरूर आपके हाथ लगेगी।   

अमित दुबे
छात्र – हिन्दी पत्रकारिता,
जामिया मिल्लिया इस्लामिया