शोभित चौहान
घर में चोरी हुई पर घरवाले शांत हैं…
स्कूल में टीचर नहीं पर अभिभावक शांत हैं…
खाने को दाना नहीं पर भूख में भी शांत हैं…
हर कदम हो रहा उत्पीड़न पर सब शांत हैं…
कमर दर्द दे रही सड़क पर फिर भी सब शांत हैं…
रक्षक बन रहे भक्षक फिर भी सब शांत हैं…
स्कूल में टीचर नहीं पर अभिभावक शांत हैं…
खाने को दाना नहीं पर भूख में भी शांत हैं…
हर कदम हो रहा उत्पीड़न पर सब शांत हैं…
कमर दर्द दे रही सड़क पर फिर भी सब शांत हैं…
रक्षक बन रहे भक्षक फिर भी सब शांत हैं…
बर्बादी के मंज़र में भी सब शांत हैं…
नेता के साल दर साल झूठे वादों पर भी सब शांत हैं…
देश लूट रहा आँखों के सामने फिर भी सब शांत हैं…
मेहनत की पूंजी बह रही मंत्रियों की शराब में फिर भी सब शांत हैं…
ये शांति नहीं, निराशा की चीख है…
और फटने वाले ज्वालामुखी का आगाज़ है…
एक दिन ये शांति टूटेगी और सबको गूंगा कर जाएगी…