इस समय बॉलीवुड में बहुत दबाव है: जूही

प्रेमबाबू शर्मा  

’’एक दौर में दर्शकों को अपनी खूबसूरत मुस्कान और मासूमियत से मोह लेने वाली जूही ने मिस इंडिया यूनिवर्स का ताज जीतने के बाद फिल्मों की ओर रुख किया था। उनकी पहली फिल्म 1986 में आई ‘सल्तनत’ थी। साल 1988 में फिल्म आई ‘कयामत से कयामत तक’ जूही की पहली हिट फिल्म थी। उसके बाद जूही ने ‘डर’ ‘हम हैं राही प्यार के’ और ‘इश्क’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया।


अभिनेत्री जूही चावला ने हिंदी सिनेमा जगत में अपने 25 साल के करियर में कई सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन उनका मानना है कि वर्तमान पीढ़ी के कलाकारों पर अपना अस्तित्व और पहचान कायम करने और उसे बनाए रखने का काफी दबाव होता है। हालांकि 46 वर्षीया जूही इस दौर के फिल्मी तौर तरीकों से खुश नहीं नजर आतीं। अपनी आने वाली फिल्म ‘गुलाब गैंग’ में जूही एक दौर में अपनी प्रतिद्वंद्वी रही अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के साथ दिखाई देंगी।

अटपटा सा टाईटल ‘गुलाब गैंग गैंग’’ में क्या खास है?
वैसे तो यह एक आम मसाला फिल्म है फिल्म में पुरूष पात्र भी हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि को रेखांकित इस फिल्म में संदेष भी है। यह नारी इम्पावरमेंट की बात करती है।

किस तरह का किरदार है?
मेरा किरदार एक राजनीतिज्ञ का है, जिसमें नैगेटिव शेड्स है।यह अपने आप में चैलेजिंग किरदार है।
आखिर नाकारत्मक किरदार को निभाने की कोई खास वजह ?
दमदार किरदार है इस फिल्म में। लेकिन जब निर्देशक सौमिक सेन मेरे पास इस फिल्म का आफर लेकर आए, तो रोल मेरी समझ के बाहर था, मैंने उनको इंकार दिया और कहा कि किरदार मेरी छवि से मेल नही खाता है। हाँ अगर मुझे ध्यान में रखकर दुबारा किरदार व स्क्रिप्ट लिखकर लाएं, तो मैं सोचूंगी. दो तीन हफ्ते बाद किरदार को साफ्ट करके लाए रोल के बारे में बताया तो मुझे लगा कि किरदार में कुछ दम ही नहीं है । अब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ और मैने कहा कि मैं पहले वाली ही स्क्रिप्ट पर काम करूंगी।

टाईप्ड छवि से हटकर एक राजनीतीज्ञ पात्र में स्वयं को ढालना कितना चैंलेजिग रहा ?मेरे लिए किरदार ही एक चुनौती था। क्योंकि इस तरह का किरदार इससे पहले मैंने कभी निभाया ही नहीं था। लेकिन थैक्स गाड फिल्म पूरी हो बन चुकी है। जहां तक किरदार को निभाने की बात है तो इसके लिए मैने सुषमा स्वराज, ममता बनर्जी और सोनिया गांधी से प्रेरणा ली। मैंने इन तीनो को बहुत बारीकी से आब्जर्व कर उनके मैनेरिज्म को अपनाने का प्रयास किया है।


अपनी प्रतिद्वंद्वी रही अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के साथ गुलाब गैग दिखाई देंगी। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा था ?पहले तो बात साफ कर देती हूँ कि इस फिल्म में मैं माधुरी की प्रतिस्पर्धी नहीं हूं, बल्कि हम दोनों की भूमिकाओं से ही फिल्म की कहानी पूर्ण होती है। रही बात उनके साथ काम की तो, कुल मिलाकर अच्छा एक्सपीरियस रहा। एक दौर था जब मेरी फिल्म‘‘कयामत से कयामत तक’’और माधुरी दीक्षित की फिल्म ‘‘दिल’’तीन माह के अंतराल से रिलीज हुई थी.तब लोगों ने हमारे बीच तुलना की थी। लेकिन हम दोनों के लिए काम ही महत्वपूर्ण था।

फिल्म के अनेक हिस्से में डंडे की लडा़ई को दिखाया है?
फिल्म में दिखाया हैं कि सिस्टम से लड़ने के लिए आपको सिस्टम में जाना पड़ेगा, सिस्टम से जुड़ना होगा।


एक दौर में जब आपकी तूती बोलती थी वह कैसा दौर कैसा था ?
मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करती हूं कि मेरा दौर कुछ और था। मुझे लगता है कि इस समय कलाकारों पर बहुत दबाव होता है। इस समय हिंदी सिनेमा में बहुत सारे नवोदित कलाकार हैं। पहले का जमाना कुछ और था, यदि आप एक बार अपनी पहचान कायम करने में कामयाब हो जाते थे, तो आपके पास आगे बढ़ने का अवसर होता था। मुझे लगता है कि आज यहां बने रहने के लिए मजबूती से टिकना पड़ता है। लेकिन मेरे अब तक का सफर बेहतर ही रहा है।