प्रेमबाबू शर्मा
हमारे देश में विभिन्न समस्यायें गम्भीरता के स्तर पर विद्यमान हैं, जिनके पक्ष में कुछ विशेष नहीं हो पाता। कुछ घटित हुआ और हो गया हंगामा, शोर-गुल, प्रदर्शन और सोशल मीडिया का वायरत तत्व, लेकिन इन सभी के बीच कानून-व्यवस्था खेल बन कर रह जाती है, या यूं कहें कि स्थिति का फायदा उठाने वाले कानून को ‘चिकन करी’ के रूप में परोसते हैं और समाधान की जगह स्थिति हास्यास्पद बनके रह जाती है। इसी हास्यास्पद को रूपहले पर्दे पर भी जल्दी देखा जा सकेगा शेखर सिरिन द्वारा निर्देशित एवम् शंकर के.एन. द्वारा सेवन हिल्स सिने क्रियेशन्स के बैनर तले निर्मित की जाने वाली फिल्म ‘चिकन करी लाॅ’ के माध्यम से।
हालांकि शीर्षक अपने आप में थोड़ा अलग है लेकिन यह सटायर के साथ स्वयं को सिद्ध करता है। क्योंकि कानून-व्यवस्था बेहद मजबूत होने के बावजूद मजाक बनकर रह जाती है और ताकतवर लोग अपनी पाॅवर, कनैक्शन व पैसों के आधार पर जैसे चाहते हैं अपने पक्ष में फैसला लेने में कामयाब हो जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि चिकन करी को किसी भी तरह से खाया जा सकता है।
कहानी के अनुसार, एक रूसी नृत्यांगना माया भारतीय मनोरंजन उद्योग में अपना कैरियर बनाने के लिए भारत आती हैं। खुद को साबित करने और सफलता प्राप्त करने के दौरान उसकी जि़ंदगी में एक हादसा होता है जहां अत्यधिक ड्रग लेने के कारण मंत्रियों के परिवार से जुड़े दो पुरूषों द्वारा धोखधड़ी से उसका बालात्कार हो जाता है। कैरियर के लिए भारत आयी यह रूसी युवती एक रेप विक्टिम बन जाती है। हालांकि माया विदेशी है और उसे यहां के कानून की जानकारी नहीं लेकिन बावजूद इसके वह न्याय के लिए गुहार लगाती है, जहां पाॅवर गेम के चलते उसे न्याय तो नहीं मिलता परन्तु वेश्या का ठप्पा लग जाता है।
फिल्म का विषय यथार्थवादी है, जो एक व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी के बहुत करीब है और निश्चित रूप से सभी आयु समूहों में एक मिश्रित शिक्षित दर्शकों को आकर्षित करेगा।
फिल्म में पांच गीत रखे गये हैं, जिन्हें कैलाश खेर, शालमली खोलगले, शन, जगप्रीत, शेखर शिरिन ने आवाज़ दी है। गीतों के बोल शेखर शिरिन, मंथन वीरपाल, शब्बीर अहमद ने लिखे हैं जबकि कम्पोजर शेखर शिरिन हैं।