तुम नही तो जिन्दगीं नही

प्रवीण कुमार शर्मा 

जिन्दा तो हूँ  मैं
मगर जिन्दगीं नही

फूल तो है खिलें
मगर खुशबू नही

 सुबह तो है हुई
 मगर रौशनी नही


महफिल तो है यहाँ
मगर तुम नही

हँसता तो 
हूँ  मैं
मगर  वजह नही

घर-बाहर-दफ्तर
हर जगह नही-नही

तुम नही तो जिंदगीं नही
तुम नही तो जिंदगीं नही

One Response

  1. Anonymous