प्रवीण कुमार शर्मा
M : 9911890164
रात से काली सुबह को देखा है।
रवि को आग बरसाते देखा है
पढ़ने को तरसते नन्हे मासुमों को देखा है
अरमानो के जलते दिये को बुझते देखा है
मासुमों कि आंखो से टपकते आंसूओ को देखा है
रात से काली सुबह को देखा है।
दोपहर की जलती धूप को देखा है
कामयाबी के पथ से भटकते मासूमों को देखा है
चहरे पर उदासी लिये नाजुक कंधो पर लदे बोझ को देखा है
उसी बोझ के नीचे बीतते उनके सारे बच्चपन को देखा है
रात से काली सुबह को देखा है।
रात की काली रात को देखा है
उनके जीवन पर फलते अंधकार को देखा है
आंखो से ओझल होते नन्हे आंखो के सपनो को देखा है
मेहनत कि मार से टूटते उसके बदन को देखा है
जिन्दगी को रात मे सिमटते, करवटे बदलते देखा है।
कहते है कि रात के बाद दिन आता है
पर रात के बाद रात आते देखा है
मासूमो के जीवन पर अंधियारा छाते देखा है
कंधो पर बोझ उठाये बच्चपन को देखा है
जवानी को बुढापे मे बदलते देखा है
जीवन मे रात को ठहरते देखा है
बच्चो को बच्चपन खोते देखा है
रात से काली सुबह को देखा है।
बच्चो को बच्चपन खोते देखा है
रात से काली सुबह को देखा है।।