क्रोध एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जो हम सभी में पाई जाती है | हम क्रोध क्यों करते है या हमे क्रोध क्यों आतां है इसके अनेक कारण हो सकते है। मनोवैज्ञानिकों ने इस मानसिक प्रक्रिया का गहन अध्यन किया है | दूसरों की गलितयों पर सज़ा देना क्रोध है लेकिन स्वम को सज़ा देना भी क्रोध है | चाहे घर हो या आफिस हो ,या स्कूल या कोई और जगह , सभी जगह पर हम प्राय: देखते है कि लोग छोटी छोटी बातो पर भी क्रोध करने लगते है | हमारी पुस्तके , धार्मिक शास्त्र सभी में क्रोध रूपी प्रक्रिया का जिक्र आता है | आज हर जगह चर्चा होती है क़ि “उसे ” क्रोध अधिक आता है , क्या पहले क्रोध नहीं था |
मनोवैज्ञानिकों ने एक अध्यन के द्वारा यह पाया है कि करीव 30 वर्ष पहले के अनुपात में आज क्रोध की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। आए दिन गोली बारी , मनमुटाव ,हमारी मानसिकता क्रोध के प्रति कम नहीं करते इस प्रक्रिया का अकस्मात बढ़ने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य ही होगा ये सत्य है कि बिना कारण के कोई भी कार्य नहीं होता | यदि हम कारणों की सूची बनाना चाहे तो शायद कोई बहुत बड़ी पुस्तक या शास्त्र बन सकता है | ये सत्य है कि किसी को भी स्वय क्रोध नहीं नहीं आता है परिस्तिथिया स्वयं ही बन जाती है | क्रोध के लिए वातावरण , कार्य शैली, पढ़ाई , व्यवहार ,भोजन, समय , मेल -मिलाप आदि अनेक कारण हो सकते हैं
आजकल पाश्चात्य शिक्षा का चलन बढ़ता चला जा रहा है | हम अक्सर देखते है कि पाश्चात् शिक्षा केवल शिक्षा ही होती है व्यवहार, कार्य शैली नहीं | आज से करीब 30 -40 वर्ष पहले बच्चे बड़ो का सम्मान करते थे , लेकिन आज हम सब भूल गए है | घर के बड़ों ने यदि कोई बात कह दी तो बस समझ लीजिए घर में महाभारत शुरू हो गया | बड़ो की बात का जबाब उनके मुंह पर ही देना ,बात न मानना ,अपने आपको अधिक बुद्धिमान समझना घर में अशांति एवं क्रोध का कारण बन जाता है क्रोध रूपी तत्व जवांन , बच्चा , बूढ़े सभी में भरा हुआ है व पाया जाता है | किसी भी कार्य के लिए मान अथवा सम्मान होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है | हमारे अभिमान को ठेस लगने से भी क्रोध शीघ्र आजाता है | आपको यदि कोई वस्तु पसंद नहीं, वही चीज बार बार आपके करने के लिए कही जाए तो क्रोध आना स्वाभाविक ही है | हमारे स्वभाव के विपरीत वातावरण भी हमारे मस्तिस्क में हल -चल पैदा करके ,क्रोध बढ़ाने में सहयोगी हो जाता है |
” क्रोध से बुद्धि भर्मित हो जाती है ,बुद्धि भ्रांत होने पर स्मति लुप्त हो जाती है और स्मति लुप्त होने पर उचित -अनुचित का ज्ञान समाप्त हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश होने पर व्यकित का सर्व नाश हो जाता है “