मैं सिर्फ तरह-तरह के किरदार निभाना चाहती हूँ : तब्बू

प्रेमबाबू शर्मा 

विजयपथ,साजन चले ससुराल, माचिस, अस्तित्व, चांदनीबार, मकबूल सहित अनेक हिट दे चुकी तब्बू फिल्मों में काम करते करते अचानक गायब हो जाती है, आखिर इसका क्या राज है । वे जल्द रीलिज फिल्म डेविड में नजर आयेगी । अपने करियर को लेकर क्या सोचती है जानते है उनकी ही ज़ुबानी।


अक्सर कहा जाता है कि आप मुंबई तभी आती हैं, जब आपकी कोई फिल्म रिलीज होती है। बाकी समय आप हैदराबाद में रहती हैं। इसकी कोई खास वजह?
हैदराबाद से तो मेरा बहुत गहरा लगाव है। मैं वहीं पली बढ़ी हूं। वहां भी मेरा घर है। मुंबई सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए नहीं आती, पिछले दिनों श्रीदेवीजी की फिल्म ‘इंग्लिश-विंग्लिश’ के प्रीमियर पर भी मैं आई थी। मैं दोनों जगह रहती हूं, पर यह सही है कि हैदराबाद में मेरा ज्यादातर वक्त गुजरता है।

काफी समय बाद आप डेविड फिल्म में नजर आयेगी ?
जी हाँ  यह एक मसाला फिल्म है,जो अपराध कहानी पर आधारित है। जिसमें मैने फ्रैनी नामक किरदार को जिया है। लेकिन फिल्म तीन अलग अलग नामक के किरदार डेविड के इर्द गिर्द घूमती है इसके अलावा लारा दत्ता और ईशा श्रवणी भी है।

आपको लगता ह कि आप इस कहानी में अपनी प्रतिभा को दिखा पायेगी ?
कहानी के अनुसार मेरा किरदार काफी पावरफुल है और मैने भी उसके साथ में न्याय करने का प्रयास किया है।

आपको नहीं लगता कि आपको जितना काम मिलना चाहिए, उतना नहीं मिला?
मैं हर काम को हाँ करती ही नहीं। सिर्फ वही करती हूं जो चीज मुझे अच्छी लगती है। हमेशा से ऐसी ही रही हूं। बीस-बाइस साल हो गए हैं। मैंने 60 या 65 फिल्में ही की है।

इसका मतलब आप फिल्मों के चयन को लेकर चूजी है ?
मैं फिल्में सोच समझकर ही साईन करती हूँ । मेरा सिर्फ यही आधार होता है कि मुझे कोई चीज भा गई, एक्साइट कर गई तो मैं कर लूंगी। मेरे लिए तो काम करने का एक्सपीरियंस अच्छा होना चाहिए। डायरेक्टर को खुशी होनी चाहिए कि मैंने कैरेक्टर को अच्छे से निभाया। वही मेरी सक्सेस है।

यानि आप रिजल्ट पर ज्यादा ध्यान देती हैं या कुछ और?
फिल्म बनाने का प्रोसेस ही इतना इंगेजिंग होता है कि आप रिजल्ट के बारे में भूल जाते हैं। यदि रिजल्ट पर मैं ध्यान देती तो जो मैंने किया है, वह कर ही नहीं पाती। मैंने अपनी फिल्मों को बहुत इंज्वॉय किया है। यह सोच कर काम करेंगे कि हिट हो जाएगी तो फिर इंज्वॉय कर ही नहीं पाएंगे।


आपने फिल्मों से ही दूरी बनानी शुरू कर दी आखिर क्यों ?
एक रोल के लिए कई बातें देखी जाती हैं। या तो कहानी और सेटअप अच्छा हो, डायरेक्टर अच्छा हो या फिर ज्यादा पैसा मिल रहा हो, तो रोल के लिए मना करने का कोई सवाल ही नहीं होता। मैं एक बार में दस फिल्में साइन कर सकती थी, पर जब मैंने ये चीजें देखनी शुरू की और यह बात जब एक बार लोगों पर जाहिर हो गई, तब मेरे पास वे फिल्में आने लगीं, जो मेरे टेम्परामेंट को सूट करती थीं। फिर जो मेरे पास आया, उसमें से सबसे अच्छा जो लगा, वह मैंने सेलेक्ट किया। एक फनकार को इतना स्पेस तो मिलना ही चाहिए। भले ही तीन साल में एक फिल्म आए, पर वह ऐसी हो जिसे करके मुझे सुकून मिले और देखने वालों को भी खुशी हो।

मायने तब्बू सीरियस अभिनेत्री की इमेज बनाना चाहती थीं? नारी प्रधान फिल्में करना चाहती थीं?
मैंने जानबूझकर कोई इमेज नहीं बनाई। बस जो मेरे पास आया, उसमें से जो मुझे अच्छा लगा, मैंने चुन लिया। ‘चांदनी बार’ की, क्योंकि न सिर्फ मुझे कहानी अच्छी लगी, मसाला फिल्म या मेनस्ट्रीम सिनेमा जैसी कोई लाइन मैंने नहीं खींची है। मैं सिर्फ तरह-तरह के किरदार निभाना चाहती हूं। मुझे वह कैरेक्टर पसंद है, जो लोगों को रुला दे और ऐसा कैरेक्टर भी पसंद है, जो लोगों को गुदगुदाए।

आप दमदार रोल्स की बात करती हैं, पर ‘लाइफ आफ पाई’ में आपका रोल काफी छोटा है?
पर वह सेटअप बड़ा है। ‘लाइफ आफ पाई ’ जैसी फिल्में जब सामने आती हैं, तब मैं सिर्फ खुद को नहीं देखती, बल्कि पूरी पिक्चर मेरी आंखों के सामने होती है। इतने बड़े प्रोजेक्ट से जुड़ना अपने आप में बड़ा आनर है। मैं इस बड़ी फिल्म का हिस्सा हूं, यही बहुत बड़ी बात है।

यानी बड़ी फिल्म में छोटा रोल करने से परहेज नहीं है?
हां, बशर्ते ‘लाइफ आफ पाई’ जैसी फिल्म हो। ऐंग ली जैसा डायरेक्टर हो, तो रोल कितना बड़ा है, यह बात बेमतलब हो जाती है, क्योंकि इस तरह की फिल्म में कहानी और डायरेक्टर हीरो-हीरोइन से बड़े होते हैं। अगर इस तरह की फिल्म है, तो मास्टरपीस शाहकार का एक हिस्सा बनने से मुझे कोई परहेज नहीं है। मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म मेरे इर्द-गिर्द नहीं घूमती, बल्कि मैं उस फिल्म में यूटीलाइज हो रही हूं।

आपको कैसा लगता है कि अब आप हॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्मों का हिस्सा बन चुकी हैं?
इस बात से मैं कोई सातवें आसमान पर नहीं पहुंच गई कि अब मैं हॉलीवुड फिल्म में काम कर रही हूं, क्योंकि चीजों को देखने का मेरा नजरिया अलग है। मैं ऊपरी तौर पर किसी चीज का मूल्यांकन नहीं कर पाती, पर खुद को इससे अलग करके देखूं, तो इस तरह की फिल्म करना मेरे लिए फख्र की बात है, जिन्हें देखने वाले इतने सारे हो। ये ऐसी फिल्में होती हैं, जो हमेशा याद रखी जाती हैं, इसलिए नहीं कि मैं उस फिल्म में हूं, बल्कि इसलिए कि वह फिल्म खुद ही बेमिसाल है। सिनेमा में ‘लाइफ आफ पाई’ को हमेशा याद रखा जाएगा और इस मामले में मेरी किस्मत अच्छी थी, जो मुझे इस फिल्म में काम करने का मौका मिला।