कुछ आज लिखूं

प्रो. उर्मिला पोरवाल सेठिया 
 बैंगलौर


सोचा मैं कुछ आज लिखूं,
लू फिर कागज कलम हाथों में
सब पढ़े मैं, कुछ ऐसी बात लिखूं
नारी पर लिखूं, या लिखूं बेटी पर,
त्याग पर लिखूं या लिखूं ममता पर,
जन्मी की व्यथा या अजन्मी के हालात लिखूं।।

सोचा मैं कुछ आज लिखूं,
लू फिर कागज कलम हाथों में
सब पढ़े मैं, कुछ ऐसी बात लिखूं
रोजी पर लिखूं या लिखूं रोटी पर,
भूख पर लिखूं या लिखूं दया पर
ईमान का तिरस्कार या बेईमानी की करामात लिखूं।।

सोचा मैं कुछ आज लिखूं,
लू फिर कागज कलम हाथों में
सब पढ़े मैं, कुछ ऐसी बात लिखूं
बेबसी पर लिखूं या लिखूं लाचारी पर,
स्वार्थ पर लिखूं या लिखूं मक्कारी पर,
देश की दशा लिखूं या राजनीति की औकात लिखूं।।

सोचा मैं कुछ आज लिखूं,
लू फिर कागज कलम हाथों में
सब पढ़े मैं, कुछ ऐसी बात लिखूं
रुढ़िवादीता पर लिखूं या लिखूं आधुनिकता पर
उत्कृष्टता पर लिखूं या लिखूं उच्छंख्लता पर
समाज की अव्हेलना लिखूं या सौगात लिखूं
सोचा मैं कुछ आज लिखूं,
लू फिर कागज कलम हाथों में
सब पढ़े मैं, कुछ ऐसी बात लिखूं