मानव-मस्तिष्क की कल्पनाओं के टकराव की कहानी है “ऑब्जेक्शन माय लार्ड”

प्रेमबाबू शर्मा 

“हिना प्रोडक्शन्स” और “ड्रीमक्राफ्ट प्रोडक्शन्स” के बैनर तले निर्मित फिल्म “ऑब्जेक्शन माय लार्ड” के निर्माता बाबू त्यागी और समीर अंतुले हैं।


फिल्म का कथानक मानव मस्तिष्क की कल्पनाओं के टकराव की कहानी है, यह फिल्म मानव दर्शन की एक ऐसी कहानी है जो मनुष्य के मस्तिष्क की विभिन्न अवस्थाओं की दर्शाती है जो इस धरती पर रहते हैं।
इस फिल्म में दिखाया गया है की मृत्यु के बाद किस तरह प्रत्येक इंसान को अपने कर्मों के आधार पर न्याय मिलता है और यह तय किया जाता है की वह एक अच्छा इंसान था या एक बुरा व्यक्ति, एक ओर जहाँ कुछ अपराधियों को ऐसा महसूस हो सकता है की उन्हें कर्मों के अनुसार न्याय मिला वहीँ दूसरी ओर अच्छे लोगों को इस बात से भी परेशानी हो सकती है की उनके साथ न्याय नहीं हुआ और उन्हें बहुत छोटी-छोटी बातों के लिए सजा दी गयी।

“धर्म” के लिए की गयीं लड़ाईयां, और अपने मस्तिष्क में उठ रहे भ्रम की वजह से किसी भी व्यक्ति को ऐसा लग सकता है की उसके साथ इन्साफ, उसके भूतपूर्व कर्मों के अनुसार नहीं किया गया है। निःसंदेह इस फिल्म में बहुत सारा हास्य है जैसे की एक बदसूरत इंसान अपनी तुलना एक खूबसूरत इंसान से कर रहा है। उसे ऐसा भी महसूस हो सकता है की भगवान् ने उसे दूसरों से अलग क्यूँ बनाया है, एक गरीब चपरासी अपनी तुलना अपने मालिक से कर रहा है और ये सोच सकता है की बनाने वाले ने इतना भेद-भाव क्यूँ किया है। सबसे बड़ा सवाल यह है की आखिर पैसे, व्यक्तित्व और व्यवसाय का ये असमान वितरण उस भगवान् ने क्यूँ किया जिसने खुद ही सभी मनुष्यों को बनाया है?
आखिरकार उस भगवान् के मन में लोगों को बनाते समय क्या चल रहा था। एक ओर जहाँ कुछ लोग अपनी इमानदारी की वजह से जाने जाते हैं वहीँ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें समाज हत्यारे के रूप में पहचानता है। इस भगवान् की अदालत में दंड का भागी कौन है? पाप और पुण्य का मापदंड क्या है?
इस फिल्म के लेखक और क्रिएटिव डायरेक्टर जाने-माने लेखक अमित खान हैं और एक फिल्म इन्हीं के लिखे उपन्यास “ऑब्जेक्शन माय लार्ड” पर आधारित है। फिल्म का शीर्षक गीत कैलाश खेर ने गाया है। फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है और पोस्ट प्रोडक्शन का कार्य ब्लिट्ज-क्रीग में चल रहा है। फिल्म में मुख्य भूमिका मार्कंड देशपांडे संजय मिश्रा, जरीना वहाब और राजेश खट्टर है।