माँ मुझे मत मारो ! …


नन्द  बल्लभव पालीवाल

माँ मुझे मारो नहीं आने दो मुझ को जगत में
पेट में ही क्रूरता से नष्ट मुझ को मत करो
इस धरा पर आने का अधिकार मेरा मत हरो
माँ खोल दो आँखों की पट्टी भ्रूण हत्या मत करो

कोई कह रहा था इस देश में नारी पूजा होती है
माँ नारी होकर भी – रुको अपराध ऐसा मत करो
इस देश के इतिहास का हर पृष्ठ मैंने है लिखा
जननी रुको निज राष्ट्र को अभिशाप शापित मत करो

नारी पुरुष तो श्रृष्टि की रचना के दोनों अंग हैं
दिया भगवान् ने जो माँ तुम्हे, प्रहार उस पर मत करो
मेरे पिता से भी कहो वो मुझे स्वीकार लें
माँ रुको इस देश का भविष्य नष्ट मत करो


पुरुष प्रधान समाज में मुझे दया मिले या न मिले
पर माँ सुनो तुम नारी होकर दुष्कर्म ऐसा मत करो
अपनी बाँहों में उठा स्तनपान करवा दो मुझे
पाषाण हृदय नहीं बनो महापाप जननी मत करो

है देखने की चाह मेरी भी मधुर संसार को
बधिक बन कर माँ रुको हत्या मेरी मत करो
माँ मुझे मारो नहीं आने दो मुझको जगत में
पेट में ही क्रूरता से नष्ट मुझको मत करो

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