आदाब अर्ज़ है –रईस सिद्दीक़ी

माहे रमजान पर अशआर 

माहे रमज़ान के मुबारक मौक़े पर रमजान और रोज़े पर कुछ शायरों की नज़्मों और ग़ज़लों से पेश हैं चुनीदा शेर।
देख को उसको फिर दानिस्ता देख लिया एक 
लग़ज़िश ने सारा रोज़ा तोड़ दिया
——-रईस सिद्दीक़ी
शाहिद से कह रहे हो कि रोज़े रक्खा करो
हर माह जिसका गुज़रा है रमज़ान की तरह

सरफ़राज़ शाहिद

ख़्वाहिशों को दिल में बंद करने का महीना आगया है मुबारक हो मोमिनों, रमज़ान का महीना आगया है
मोमिन :ईमान वाला , नेक बंदा
सदरा करीम
 चलो रब को राज़ी करलो 

गुनाहों से तौबा करलो
नेकियों से दामन भरलो
चलो रब को राज़ी करलो
उज़्मा अहमद

आइये, करलें इबादत, जितनी मुमकिन हो सकेनेकियों से भरलें दामन, दिल मुनव्वर हो गया

मुनव्वर: प्रकाशमय/ रौशन
शौकत मुमताज़

 कितने पुरनूर हैं रोज़ादारों के चेहरे

दिन-रात वो रब से बस नूर कमाते हैं
नूर:पाक चमक , पुरनूर: नूर से भरपूर

वसी अब्बास

देख को उसको फिर दानिस्ता देख लिया एक लग़ज़िश ने सारा रोज़ा तोड़ दिया
दानिस्ता: जानबूझ कर ,लग़ज़िश : लड़खड़ाना/ग़लती
रईस सिद्दीक़ी
रोज़ा- ख़ोरी पर मिरी, दुनिया को हैरानी नहीं रोज़ा यूँ रक्खा नहीं, बिजली नहीं , पानी नहीं

ख़ालिद इरफ़ान

ये ग़ुरबत, फ़ाक़ों का इक सिलसिला हमें तो ये रोज़ा हज़ारी लगे
ग़ुरबत:ग़रीबी ,रोज़ा हज़ारी:एक हज़ार रोज़े

ज़फर कमाली

ख़ैर-ओ-बरकत बढ़ी माहे रमज़ान में
रब की रहमत हुई, माहे रमज़ान में
एक नेकी के बदले में, सत्तर मिले
लाटरी लग गई, माहे रमज़ान में
फिर गुनाहों से तौबा का मौक़ा मिला
रूह रौशन हुई, माहे रमज़ान में

न्याज़ ,जो जिसने माँगा, ख़ुदा ने दिया
सब की क़िस्मत खुली, माहे रमज़ान में
न्याज़

भूक और शायर का चूँकि चोली दामन का है साथ मुझसे बढ़के जानता है कौन रोज़े की सिफ़ात
पंद्रह घंटे का रोज़ा हर जवान-ओ-पीर का
शाम करना, सुब्ह का लाना है जू-ए-शीर का
सिफ़ात : विशेषतायें ,पीर: बूढ़ा

जू-ए-शीर:दूध की नहर निकालना, असंभव काम कर जाना
इरफ़ान ख़ालिद