समाजसेवा करने का अलग ही मजा है: टिस्का


प्रेमबाबू शर्मा


तारे जमीं पर,दिल तो बच्चा है जैसी अनेकों फिल्मों में अपने अभिनय के रंग बिखरने वाली अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा ने फिल्म के अलावा व टीवी पर भी काम किया है। इसमें दौर राय नही कि वे एक बेहतरीन एक्टर है,और हमेशा चुनिंदा फिल्मों में ही काम करती रहीं। उन्होंने अपने करियर में अब तक जो भी काम किया है, वह बहुत ही उम्दा किया है। हर बार उनके काम की तारीफ हुई है। यह एक अलग बात है कि वह बहुत कम लेकिन चुनिंदा ही फिल्मों में नजर आती हैं। हाल में ही टिस्का चोपड़ा से ‘गोदरेज इजी राहत एक अभियान’ कार्यक्रम में मुलाकात हुई पेश मुलाकात के चुनिंदा अंशः
‘गोदरेज इजी राहत एक अभियान’ से जुडकर कैसा महसूस कर रही है?
यह गरीब बच्चों को गर्म कपडे देने का एक अभियान है, इस तरह के समाजिक कार्य करके मुझे कहीं सुख का अनुभव होता है। मेरा मानना है कि समाजसेवा का काम करने का अलग ही मजा है

क्या वजह है कि आप बहुत कम फिल्में करती हैं?
मैं फिल्में तो बहुत करती हूं, पर मेरी कई फिल्में रिलीज ही नहीं हो पाती हैं। एक बात और यह कि मैं सलमान खान तो हूं नहीं कि मेरी फिल्म लगे और दर्शक देखने के लिए दौडा चला आए। इसी के चलते मेरी फिल्में इकट्ठा होती रहती हैं। इस वक्त मेरी फिल्म ‘कालस्पर्श’, मराठी फिल्म ‘हाइवे’, मलयालम फिल्म ‘निर्णायक’ बन कर तैयार हैं और हिन्दी फिल्म ‘किस्सा’ लंबे अरसे लटके रहने के बाद इस महीने की 20 तारीख को रिलीज हो रही है।

‘किस्सा’ तो कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा चुकी है?
यह फिल्म भारत के अलावा नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस सहित पांच देशों का को-प्रोडक्शन है। इसे नॉर्थ अमेरिका, कान फिल्म फेस्टिवल, जर्मनी, इंग्लैंड में रिलीज किया जा चुका है। हर जगह इस फिल्म को जबरदस्त शोहरत मिली है। हर जगह इस फिल्म ने काफी पैसा कमाया है।

‘किस्सा’ का किस्सा क्या है?
यह विश्व स्तर का सिनेमा है। इसमें 1947 से 1970 तक की कथा है। यह एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसमें चार बेटियां होती हैं। चैथी बेटी की परवरिश एकदम अलग ढंग से होती है। इसी बच्ची के नजरिये से देश के बंटवारे के बाद के हालात की कथा दिखाई गई है इस फिल्म में। इसमें मैंने एक रिफ्यूजी का किरदार निभाया है।

पिछले साल आपकी किताब ‘एक्टिं स्मार्ट’ आई थी? लिखने के लिए आप कैसे वक्त निकाल लेती हैं?
फिल्म की शूटिंग के दौरान जब लाइटिंग होती है, उस वक्त हमें लिखने के लिए काफी समय मिल जाता है।

क्या चरित्र का असर कलाकार की जिंदगी पर पड़ता है?
जी हां! मैंने एक फिल्म ‘अंकुर अरोडम मर्डर केस’ की थी। यदि मैं हमेशा इस फिल्म के अपने किरदार में घुसी रहती तो मुङो अपने इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाना पडम्ता, इसलिए इस फिल्म के दौरान हम सभी कलाकार सीन खत्म होते ही आपस में हंसी-मजाक करने लगते थे, लेकिन जैसे ही फिर कैमरे के सामने होते, उन्हीं स्थितियों के शिकार हो जाते। सच कहूं तो मैं निजी जिंदगी में भावुक नही हूं, पर फिल्म करते समय सीन के अनुसार भावुक हो जाती हूं।

मराठी फिल्म ‘हाइवे’ करने की कोई खास वजह?
निर्देशक की वजह से की यह फिल्म। फिल्म ‘किस्सा’ के निर्देशक अनूप सिंह मेरे लिए भगवान की तरह हैं। फिल्म ‘हाइवे’ के निर्देशक उमेश कुलकर्णी उनके स्टूडेंट रहे हैं। इसी तरह मैंने मलयालम फिल्म ‘निर्णायक’ की है। इन दोनों फिल्मों में मेरा किरदार क्षेत्रीय नहीं है, क्योंकि इन दोनों फिल्मों का अप्रोच इंटरनेशनल है।

शूटिंग के वक्त अपनी दो साल की बेटी को कितना ‘मिस’ करती हैं?
बहुत ज्यादा। सिर्फ मैं ही नहीं, मुङो लगता है कि हर कामकाजी औरत इस तरह के एक अपराधबोध के तले अपनी जिंदगी जीती है। पर मेरी कोशिश होती है कि जब मैं सेट पर रहूं तो सौ फीसदी सेट पर रहूं और जब बेटी के साथ रहूं तो उसके साथ भी शत-प्रतिशत रहूं। सौभाग्य की बात यह है कि मेरे पति पायलट हैं। वह हर माह पंद्रह दिन घर पर रहते है और मैं उन्ही पंद्रह दिन काम करने का प्रयास करती हूं।

किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?
अब तक कॉमेडी नहीं की। कॉमेडी किरदार निभाने की इच्छा है। अब मैंने तय किया है कि कमर्शियल फिल्मों को ज्यादा प्राथमिकता दूंगी। मैंने कलात्मक फिल्में बहुत कर लीं। अब चाहती हूं कि कुछ कमर्शियल फिल्में की जाएं, लेकिन मैं छोटे बजट वाली बेहतरीन फिल्में हमेशा करती रहूंगी, पर साथ ही अब हर तरह की फिल्मों के बीच बैलेंस बनाना चाहती हूं।