वो परम पिता का रूप थे, आज परम पिता के हो गए
हम सब प्रभु से करें प्रार्थना, उनको रखें हृदय लगाए
तथा दुखी परिवार को उनके, सम्बल दें और धैर्य धराएं
राम लखन से बेटे दोनों, उनके ही पथ पर रहें अग्रसर
हैं उनके जितने काम अधूरे, पूर्ण करें सब आगे बढ़कर
सब आदर्श उन्हीं के अपनाएं, वो थे एक चमकता हीरा
ऐसा उज्ज्वल प्रकाश पुंज,जिसने प्रतिपल तम को चीरा
साहित्य सृजन, सामाजिक सेवा, जीवन में पूरा सदाचार
करते थे वो सबका आदर, था सादा जीवन उच्च विचार
थे सौम्य सरल धीर गम्भीर, जन जन के थे प्यारे भाई
बहुत कठिन है उन बिन रहना,हम कैसे सहन करें जुदाई
पर तन से हों वो भले जुदा, मन से जुदा कभी ना होंगे
जो कुछ उनसे हमें मिला है, वो ऋण अदा कभी ना होंगे
श्रद्धा सुमन हैं करते अर्पित,हम आज यहाँ सारे के सारे
भाई राजेन्द्र अमर रहेंगे, सदा बसेंगे हृदय हमारे
वक्त पड़ने पर तेरे करीबी ही शरीक होते हैं
पारुल
वक्त पड़ने पर तेरे करीबी ही शरीक होते हैं.
“खुशियों में अनजाने भी शरीक होते हैं
लेकिन दुःख की घडी में आपके अपने ही करीब होते हैं”
यूँ तो दुनिया है बड़ी रंग रंगीली
पर वक्त पड़ने पर अपने अपने व् पराये पराये होते हैं
खुदा सबको जगह देता है कभी अपना तो कभी पराया बना देता है
इस इन्सान को खुद पता नहीं बंदगी पर,
पर खुदा बन्दों को ही सजा देता है
धन- दौलत. चमक धमक, ख़ुशी से लोभी ही आकर्षित व् प्रभावित होते हैं
आपके अपनेपन, व्यवहार, ज्ञान व् कर्मठ बंदगी पर तो आज भी योद्धा नतमस्तक होते हैं.
यूँ तो भरी दुनिया में सभी आपके करीब होते हैं
गैरों से गम न कर बन्दे, बंदगी पर भरोसा कर ले
तू तो चला था इस पूरी दुनिया को अपना बनाने
जिन्दगी के में कभी-कभी अपने गैर और गैर अपने दिखते हैं
मगर इस बैगानी दुनिया से तुझे क्या लेना ऐ दोस्त
तू कितना खुश नसीब है इस जहाँ में क्यों
वक्त पड़ने पर तेरे करीबी ही शरीक होते हैं.