मानसून का मौसम अपने साथ कई संक्रामक रोगों को लेकर आता है। वायु में व्याप्त नमी एवं परिवर्तनशील तापमान के कारण शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण व्यक्ति के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
दी एसोसिएशंस आॅफ फिजीशियंस आॅफ इंडिया के जर्नल में प्रकाशित एक हालिया सर्वेक्षण, जिसे सूखी खांसी हेतु समूचे भारत के 500 चिकित्सकों के साथ संचालित किया गया, ने यह स्पष्ट किया है कि 80.6 प्रतिशत चिकित्सकों का कहना है कि उनके रोगी नींद में व्यवधान की शिकायत करते हैं, जबकि 52.2 प्रतिशत का यह कहना है कि लगातार सूखी खांसी आने के कारण रोगी पेशेवर स्तर पर काम के नुकसान की शिकायत करते हैं। अधिकांश चिकित्सक (316/500) इस बात से सहमत हैं कि जब खांसी के कारण जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, तब वे अपने रोगियों को ‘नाॅन-स्पेसिफिक थेरेपी’’ उपलब्ध कराते हैं।
डाॅ. जे. के. समारिया, एचओडी चेस्ट मेडिसिन, बीएचयू एवं मानद सचिव, इंडियन चेस्ट सोसाइटी ने कहा कि, ‘‘यदि लगातार बनी रहने वाली सूखी खांसी की शिकायत है, तो उसके लिए विशेष चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है, ताकि रोगियों को सूखी खांसी के लक्षणों से राहत दिलाई जा सके। इससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा एवं उन्हें अपने रोजमर्रा के कार्यों को करने में सहूलियत होगी।’’
सूखी खांसी एक ऐसी बीमारी है जिसे ‘नाॅन-प्रोडक्टिव कफ’ की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि इसमें नाम मात्र का बलगम निकलता है। यह समस्या काफी खीज उत्पन्न करती है और इसके कारण गले में खिच-खिच बनी रहती है। जब खांसी लगातार बनी रहती है, तब चिकित्सकीय परीक्षण आवश्यक होता है। यदि खांसी दो सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है, तो उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और उसका तुरंत उपचार कराना चाहिए।
डाॅ. जे. के. समारिया ने कहा कि, ‘‘विशेषज्ञ चिकित्सक के रुप में हमारे लिये यह बेहद महत्वपूर्ण होता है कि हम रोगी को चिकित्सकीय तौर पर प्रमाणित सर्वाधिक लाभदायक उपचार की सलाह दें। कोडीन युक्त कफ सप्रेसेंट्स को वर्षों से परामर्शित किया जाता रहा है, क्योंकि ये सूखी खांसी का उपचार करने एवं लक्षणों से राहत प्रदान करने के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड के तौर पर स्वीकार किए जाते हैं। लेकिन इस श्रेणी की औषधियों की हानिकारक क्षमता के कारण कोडीन युक्त कफ सिरप की बिक्री पर नियंत्रण होना चाहिए, इसकी बिक्री केवल चिकित्सक की पर्ची के आधार पर ही की जानी चाहिए।’’
चूंकि मानसून के दौरान होने वाली निरंतर वर्षा शहर के स्वास्थ्य पर कहर बरपाती है, इसलिए कुछ आवश्यक कदम उठा कर हम बीमारी को दूर रख सकते हैं। स्वस्थ आहार, समुचित मात्रा में तरल पदार्थ के सेवन एवं नियमित व्यायाम से व्यक्ति की प्रतिरोधक-प्रणाली का निर्माण होता है।