(एस.एस.डोगरा)
आज यानि 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि आज ही के दिन 30 मई 1826 में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से भारतवर्ष का पहला हिंदी समाचार पत्र निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने के लिए ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए आज इसी हिंदी पत्रकारिता दिवस को समर्पित हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं विकास पर कुछ चर्चा की जाएँ. क्योंकि हमें यह अवश्य समझना होगा कि भारतवर्ष में हिंदी भाषा प्रचलन एवं विकास में हिंदी पत्रकारिता को विशेष योगदान है. वैसे भी एक कहावत है कि जहाँ न पहुंचे कोई सरकार (सर और कार), वहाँ भी पहुँचे पत्रकार, क्यों क्या समझे बरखुदार. इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने में भी पत्रकारिता ने ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
“हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा” मशहूर शायर के ये बोल सच में हमें भारतीय होने पर गर्व कराता है. लेकिन आज देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए सत्तर से भी अधिक वर्ष बीत चुके हैं परन्तु भारतवर्ष में हिंदी की दयनीय स्थिति किसी से छुपी नहीं है. भले ही हम हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कहते थकते नहीं हैं लेकिन क्या सच में हम आज तक इस गौरवशाली भाषा को प्रत्येक राज्य, जिलों, ब्लोकों में आम जन भाषा बनाने में कामयाब हुए. जी नहीं. हम प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को विश्व हिंदी दिवस अन्य देशों में मनाकर खूब तालियाँ बटोरने में लगे रहते हैं जनाब पहले अपने वतन में तो इस भाषा को प्रचलन में लाने को सार्थक प्रयास तो करिए. दक्षिण भारत हो पश्चिमी भारत, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र-इन सभी क्षेत्रों में हिंदी को आम लोग न ढंग से समझ पाते हैं और न ही बोल-लिख पाते हैं. इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह समझना होगा. हमारे संसद में मठासीन आधे से अधिक सांसद भी ढंग से हिंदी को समझने-लिखने-पढने में असमर्थ हैं यही इस विशाल देश की विडम्बना है. जहाँ हिंदी भाषा का आदर नहीं किया जाता है.
मुझे भी देश के विभिन्न राज्यों में समय-समय पर जाने का सुवसर मिलता ही रहता है. इसीलिए मैंने यह अनुभव भी किया है कि हमारी न्याय-प्रणाली हो या संसद भवन (लोकसभा एवं राज्यसभा), बड़े शैक्षिक संस्था, हिंदी भाषा को विश्वासपूर्ण ढंग से बोलने का कोई साहस नहीं दिखाता है अंग्रेजी भाषा आज भी हिंदी भाषा का शोषण कर रही है. ये तो शुक्र है बोलीवुड-भारतीय सिनेमा जगत का जिसकी वजह से शायद हिंदी जिन्दा है. पुराने सदाबहार हिंदी फ़िल्मी गीत आज भी पुरे भारत में बड़े चाव से सुने एवं गाए जाते हैं. उत्तर एवं मध्य भारत में तो शायद कुछ हद तक हिंदी भाषा की स्थिति अच्छी प्रतीत होती है परन्तु दक्षिण एवं पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में हिंदी भाषा की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. पब्लिक एवं इंटरनेशनल स्कूल आगमन से हिंदी भाषा के प्रति बेरुखी भी किसी से छिपी नहीं है. नई पीढ़ी हिंदी के ज्ञान एवं हिंदी भाषा में कोई दिलचस्पी नहीं लेती हैं. रही सही कसर मीडिया ने कर दी है जहाँ प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक हिंदी भाषी होते हुए भी अंग्रेजी के शब्दों को उपयोग-हिंदी भाषा की गंभीरता एवं गरिमा पर संकट के बादल की तरह मंडराने लगा है.
हालाँकि हिंदी भाषा की महत्वता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए विश्व विख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक लव- (अध्यक्ष-अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी समिति-अमेरिका) का कहना है कि “भारत सरकार के समस्त ऐप हिंदी में हैं. अन्तरिक्ष में भेजे जाने वाले उपग्रहों के नाम हिंदी में हैं. शस्त्रों-मिसाइलों के नाम हिंदी में हैं. पनडुब्बीयों व युद्धपोतों के नाम हिंदी में हैं विश्व के कोने-कोने में गाएँ जाने वाले बोलीवुड फिल्मों के गाने हिंदी में हैं, भजन व् आरतियाँ हिंदी में हैं. अरबों रुपयों के व्यापर करने वाले भारतीय सिनेमा की आत्मा हिंदी में है. हिंदी हमारी आत्मा में बसी भाषा है. हम उठते-बैठते, गाते-झूमते, लड़ते-झगड़ते, पूजा-पाठ करते, जयकारा लगाते, भाषण रैलियां करते, टीवी पर बहस करते हर पल हिंदी का प्रयोग करते हैं. यह विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है जिसका प्रयोग भारत के प्रधानमंत्री भी गर्वपूर्वक करते हैं. वैसे भी हिंदी बहुत सशक्त, मधुर, वैज्ञानिक भाषा है जिसे जैसे बोलते हैं उसी रूप में लिखते हैं. भारत की प्रत्येक भाषा हमारी है हमें सब पर गर्व है. हिंदी पर विशेष गर्व इसीलिए है क्योंकि यह हमारी एकता का प्रतीक है, हमारी संस्कृति और सभ्यता की महानता की अभिव्यक्ति है.”
हिंदी आम बोलचाल के अलावा भारत जैसे विशाल देश में मात्र भाषा के रूप में समझा जाता है और भविष्य में भी, अगर हमें इसे अपने आने वाली पीढ़ी को हिंदी से जोड़े रखना चाहते हैं तो अभी से ही कुछेक ऐसे प्रयास करने होंगे ताकि हम हिंदी के आसितत्व को बचा पाएँगे. क्योंकि हिंदी भाषा का भारतीय समाज में एक विशेष महत्त्व है. हमें एक-दुसरे से संपर्क साधने के लिए हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने एवं संजोने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे. घर-परिवार, मित्रों, रिश्तेदारों, शैक्षिक संस्थाओं, समाज, कार्यलयों, बैंक, में हिंदी भाषा का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें. शैक्षिक संस्थाओं, अकादेमी द्वारा, हिंदी कवि सम्मलेन, हिंदी साहित्यिक सम्मलेन, हिंदी निबंध प्रतियोगिताएँ, समस्त शैक्षिक संस्थाओं में हिंदी विषय दसवीं कक्षा तक अवश्य लागु किया जाना चाहिए. हिंदी बोलने में कतई शर्म न करें यदि हम अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं तो इस बात का अवश्य ख्याल करें हिंदी हमारे देश की भाषा है अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है. हमें अपनी धरोहर का आदर करना चाहिए. हालाँकि अंग्रेजी बोलना बुरा नहीं है लेकिन यदि आप लोगों को प्रभावित करने के उद्देश्य से या हिंदी जानने वालों के बीच में भी अंग्रेजी बोले तो वह गलत है. कई बड़े साहित्यकार तो यहाँ तक कहते हैं कि अंग्रेजी व्यापर की भाषा है और हिंदी प्यार की भाषा है.
जैसा कि हम सभी जानते है कि भारत एक विशाल देश है और इसके 29 राज्यों तथा 9 केंद्र शाषित प्रदेशों में विशेषतौर पर पूर्वोत्तर एवं दक्षिण भारत में हिंदी भाषा पर अधिक कार्य करने की जरुरत है. इसीलिए जब मैंने तिनसुकिया, असम की विश्व प्रसिद्ध लेखिका निशा नंदिनी भारतीय से बात की तो उन्होंने बताया कि “अगर हम हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करना चाहते हैं, तो सबसे पहले तो हमें हिंलिश भाषा से परहेज करना होगा। इस हिंलिश ने हमें बीच चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। रास्ता न मिलने के कारण हम भटक रहे हैं। इस हिंलिश का प्रचलन हमारे मीडिया में कुछ अधिक हो रहा है। हिंलिश लिखने वाला अधकचरा होता है। न उसे देवनागरी का ज्ञान पूरा होता है और न रोमन का। हिंलिश वो भाषा है जिसमें हम सोचते हिंदी में हैं और लिखते रोमन के अक्षरों में हैं। अगर हम हिन्दी भाषा को बढ़ाना चाहते हैं। तो हमें अपने मोबाइल लेपटॉप में देवनागरी के ऐप को डाउनलोड करके देवनागरी लिपि में लिखने का अभ्यास करना चाहिए और यह बहुत सरल और सरस होगा क्योंकि यह हमारी सोच और लेखन दोनों को एक रूप प्रदान करेगा। देवनागरी एक ऐसी भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। जिसका महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि इसे लिखना और पढ़ना बहुत आसान है।“
इसी कड़ी में तमिलनाडु के वी आई.सी, महाविद्यालय,कार्यरत एसोसियेट प्रोफेसर डॉक्टर शेख अब्दुल वहाब- ने हिंदी भाषा अपने विचार प्रकट करते हुए मुझसे बातचीत करते हुए कहा कि “अहिन्दी भाषी राज्य तमिलनाडु में हिंदी के शिक्षकों, प्राध्यापकों और कुछेक संस्थाओं के माध्यम से ही हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार हो रहा है l लेकिन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जैसी राष्ट्रीय महत्व की संस्था (जिसकी स्थापना 1918 में हुई थी) के अलावा हिंदी प्रचार और विकास की दिशा में कार्य करनेवाली कोई और प्रतिष्ठित समिति या संस्थान नहीं है l यहाँ राज्य सरकार के द्विभाषी सूत्र (Two Language Formula – तमिल व अंग्रेजी) के कारण सरकारी स्कूलों में हिंदी की पढाई संभव नहीं हो पाती है l निजी या गैर-सरकारी स्कूलों में हिंदी पढाई जाती है और महाविद्यालयों में वैकल्पिक भाषा के रूप में हिंदी की पढाई होती है l यहाँ राज्य भाषा तमिल के अतिरिक्त हिंदी, उर्दू, फ्रेंच आदि भाषायें भी स्नातक स्तर पर सरकारी सहायता प्राप्त (AIDED) महाविद्यालयों में पढ़ाने की व्यवस्था है l हिंदी प्रचार समाचार (सभा का मुख पत्र), दक्षिण भारत (त्रैमासिक), हिंदी पत्रिका (मासिक), शबरी समाचार जैसी पत्रिकायें तथा दूरदर्शन और अनेक निजी चैनलों पर प्रसारित होनेवाले धारावाहिक और फ़िल्मी कार्यक्रमों के माध्यम से भी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है l हिंदी भाषा के प्रति लोगों में रूचि बढ़ने लगी है l परन्तु यदि अन्य राज्यों की भांति दक्षिण के स्कूलों में भी ऐच्छिक भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने की अनुमति मिले तो हिंदी पढनेवालों की संख्या में वृद्धि होगी l शिक्षकों को चाहिए कि वे अपने परिवेश में हिंदी के प्रति छात्रों के मन में रूचि पैदा करें l आज के बच्चे ही कल के नागरिक हैं l इसलिए बेसिक या आधारिक स्तर पर हिंदी सीखने और शिक्षा सम्बन्धी अच्छी पुस्तकों की जो कमी है, इसे दूर करने की आवश्यकता है l इसके लिए एक चयन समिति का गठन करना होगा l हिंदी भाषा की पढ़ाई हिंदी के माध्यम से हो तो विद्यार्थी या कोई भी सरलता से हिंदी सीखेंगे l उच्चारण में कोई दुविधा नहीं होगी l अन्य भाषा के माध्यम से हिंदी के सीखने में उच्चारण और वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों का होना संभव है l हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन को बढ़ावा मिले तो हिंदी के विकास में सहायता मिलेगी l यदि स्कूल स्तर पर ही विद्यार्थी को हिंदी पढने की ओर रूचि पैदा कर सकें तो महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी हिंदी की श्री वृद्धि होगी l”
इसी हिंदी भाषा विषय के प्रचलन पर गंभीरतापूर्वक विचार प्रकट करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यप्रेमी-लेखक डॉ चन्द्रमणि ब्रह्मदत्त, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इन्द्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल, का सुझाव है कि किसी भी राष्ट्र के लिए जिस तरह ,जिस कारण उसकी पहचान होती है वह है उस राष्ट्र की भाषा, बोली ,सभ्यता, संस्कृति , पहनावा , रहन सहन आदि । इसमें राष्ट्र की पहचान में उसकी भाषा की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है स्पष्ठ कहा जाए तो मुल्क की एक समान भाषा होनी चाहिये। लेकिन भारत विविधता का देश है जहां पर अलग अलग धर्म जाति समुदाय के लोग निवास करते हैं सभी की अपनी अपनी सांस्कृतिक विरासत है इसके बावजूद भी भारत को जो एक सूत्र में बांधती है वो है इसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ इसकी हिंदी भाषा। आज भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक व कच्छ से कोहिमा तक समान रूप से हिंदी भाषा को बोला सुना समझा जाता है। फिर भी हिंदी भाषा के विकास के लिए जमीनी तौर पर क्रान्तिकारी कार्य करने की आवश्यकता है एक दिन हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह,हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह को सरकारी तौर पर मनाने से बात नही बनेगी । अगर हिंदी भाषा का हमें वास्तविक विकास करना है तो हमें हिंदी भाषा को रोजगार की भाषा बनाना होगा। समस्त सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों में तत्काल प्रभाव से कामकाज की भाषा का कार्य हिंदी में करना होगा। व लोक व्यवहार , बोलचाल की भाषा में भी हिंदी का प्रयोग करना होगा। अगर सरकार मन से चाहे तो यह कार्य सरलता से कर सकती है। भारत की अन्य भाषाओं की किताबों का सरल हिंदी में अनुवाद किया जाए । हालांकि हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में अनेक गैर सरकारी संस्थायें काम कर रही हैं। लेकिन व्यावहारिक रूप से उन संस्थाओ को हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में बजट की कमी का सामना करना पड़ता है। लेकिन उसके बाबजूद भी बहुत सारी संस्थायें अपने संसाधनो से भी हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रही हैं।और अंत में , में यही कहूंगा कि सरकार को कामकाज की भाषा को समस्त भारत में सरकारी तौर पर कार्यालयों में लागू करना चाहिए, और हम सभी को आपसे व्यवहार, बोलचाल में लागू करना चाहिए। तभी हिंदी भाषा का सही मायने में विकास होगा।“
इसी विषय पर इंदौर की शिक्षाविद डा सुनीता श्रीवास्तव का कहना है कि “मातृ भाषा को विस्मृत कर देंगे क्योंकि निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल” भाषा संप्रेषण व विचारो की अभिव्यक्ति का माध्यम है।किसी भी देश की राष्ट्र भाषा उसके सम्पूर्ण देश में गौरव के साथ विचारो के संप्रेषण का माध्यम हैं, समृद्धशाली साहित्य का सागर है।भारत के तो विभिन्न भागों में भिन्न भिन्न भाषाओं का प्रयोग होता है,अब यक्ष प्रश्न यह है कि भाषाओं के प्रचार प्रसार के लिए हम क्या प्रयत्न करे कि यह भाषाएं जनमानस की भाषाएं बन जाए।प्राचीन समय से ही मानव एवं अन्य जीव जंतु विचारों के आपसी समन्यवयता, आवश्यकता हेतु विविध माध्यम अपनाते रहे है।विकास के बदलते क्रम में समयानुसार तकनीकी माध्यमों का क्रमशः विकास भी होता गया।हाव -भाव ; भाव- भंगिमा के साथ आज भाषा व्यक्ति से उठ अंतर्राष्ट्रीय हो गयी है।मूक नयनों से लेकर आज भाव को व्यक्त करने हेतु लिपि भाषा बोली के साथ अन्य संचार साधनों दूरभाष प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों ने अपना प्रमुख स्थान बना लिया एवं मजबूती के साथ परिणाममूलक भूमिका में है। स्वतः आवश्यकतानुसार शिक्षा, माँग एवं आवश्यक उपकरणों के कारण भाषा का प्रचार प्रसार भी होता गया। विश्व पटल पर विविध माध्यमों से विचारों के विनिमय का क्रम जारी है। यह राष्ट्र एवं सामाजिक भावना दृष्टिकोण के लिए आज के प्रेरिप्रेक्ष्य में अत्यंत आवश्यक भी है।प्रिंट किताब, ई पुस्तक, गजट , इलेक्ट्रॉनिक माध्यम टेलीविजन के विविध चैनल, साहित्यिक पुस्तकें नियमित रूप से प्रकाशित अन्य भाषायी अखबार आदि भाषा के विकास, प्रचार में महत्वपूर्ण स्थान निभा सकते हैं जो प्रचार,प्रसार के लिय उचित माध्यम हैं। शारीरिक आवाजों , टँकण विधियों के साथ आज भाषा प्रस्तुतीकरण के विविध माध्यम विश्व पटल पर स्थापित हैं। आवश्यकता है विश्व पटल पर भारत सहित अन्य राष्ट्र इस दिशा में प्रभावशाली कदम अपनाते हुए शिक्षा के अन्य संसाधनो को मजबूत किया जावे।सर्वप्रथम विद्यालयों से प्रारम्भ करते हमे शिक्षा का माध्यम मातृ भाषाओं को बनाने पर विचार करना होगा जिससे आरम्भ से ही भाषा के प्रति सम्मान की भावना का उदय हो।तत्पश्चात हमे सरकारी कामकाज की भाषा पर ध्यान देना होगा क्योंकि सरकारी तंत्र में राजभाषा का प्रयोग राष्ट्र के प्रति आस्था व सम्मान का संदेश विदेशो मै प्रसारित करने में सक्षम होगा।साहित्य के प्रचार प्रसार व गौरवशाली भाषाई समृद्धता को भी जनमानस के चेतना पटल प्र इंगित करने की आवश्यकता है तभी हमारी राष्ट्र भाषा व अन्य भाषाएं सम्मानित हो पाएगी अन्यथा विदेशी भाषाओं के प्रयोग से हम अपनी “मातृ भाषा को विस्मृत कर देंगे । स्वतः आवश्यकतानुसार शिक्षा, माँग एवं आवश्यक उपकरणों के कारण भाषा का आवश्यकता है विश्व पटल पर भारत सहित अन्य राष्ट्र इस दिशा में प्रभावशाली कदम अपनाते हुए शिक्षा के अन्य संसाधनो को मजबूत किया जावे।“
मुझे भी ऐसा आभास होता है कि हम सभी को सोशल मीडिया के सभी मंचो पर फेसबुक,व्हाट्स ऐप, इन्स्टाग्राम, ट्विटर, पर तथा आम बोलचाल में हिंदी भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए. सरकारी नौकरी पाने के लिए आयोजित की जाने वाली सभी प्रतियोगिता-परीक्षाओं में अंग्रेजी ही की तरह हिंदी की भाषा ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए. और तो और प्रतियोगिता-परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् होने वाले साक्षात्कार भी हिंदी भाषा को भी महत्व दिया जाने चाहिए. और ये तभी संभव हो सकता जब हम हिंदी भाषा को पहली कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाएंगे. सभी रेलवे स्टेशन, बस अड्डों, सड़क मुख्य सार्वजानिक स्थलों के नाम आदि भी हिंदी में भी लिखे जाने चाहिए. क़ानूनी दस्तावेजों एवं न्यायिक कोर्ट सुनवाई में भी हिंदी का प्रचलन होना चाहिए. यदि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस से हम सब एकजुट होकर हिंदी भाषा के उपरोक्त कथित विचारों को अपनी जीवन-शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा मानकर अनुशरण करना आरम्भ कर दें तो हम हिंदी को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शिखर पर पहचान दिलाने में अवश्य ही कामयाब हो जाएँगे. हिंदी भाषा पर निम्न पंक्तियाँ साझा करते हुए मुझे गर्व महसूस हो रहा है आप भी गौर फरमाएँ:
“हिन्दी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है
पत्रकारों-साहित्यकारों की जान है, हिन्दी ही पहचान है
भारतवर्ष की आनो-शान है हिंदी सबसे महान है
हिन्दी में बने हम बलवान, यही हमारी खान है
कला,साहित्य व सिनेमा को दिलाती अनोखी पहचान है
हिंदी गूंजे विश्वस्तर पर, यही वक्त की मांग है
हिन्दी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है”
मेरा मानना है कि हमें अपनी हिंदी भाषा का सम्मान करना चाहिए तथा इसे गर्व से बोलना चाहिए. लेकिन हिंदी भाषा को पुन: सम्मान दिलाने एवं लोकप्रिय बनाने में हिंदी पत्रकारिता को फिर से आगे आना होगा तभी हम अपनी मीठी एवं कथित राष्ट्र भाषा हिंदी के आसितत्व को बचाने में कामयाब हो पाएँगे. जब हिंदी पत्रकारिता देश को आजाद करा सकती है तो आज हिंदी भाषा के आसितत्व को भी हिंदी पत्रकारिता ही बचा सकती है.
(संक्षिप्त परिचय)
सुरेन्द्र सिंह डोगरा-जो एस.एस.डोगरा के नाम से लोकप्रिय हैं वे दिल्ली निवासी पत्रकार-लेखक हैं इन्होने मीडिया-एजुकेशन पर दो किताबें भी लिखी हैं जो मीडिया स्टूडेंट्स में काफी लोकप्रिय है तथा अमेजन एवं फ्लिप्कार्ट पर भी ऑन्लाइन उपलब्ध हैं. वर्तमान में वे नेपाल से प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका-हिमालिनी के दिल्ली से ब्यूरो प्रमुख तथा द्वारका परिचय न्यूज़ पोर्टल के प्रबंध संपादक के रूप में सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं. बतौर स्वतंत्र पत्रकार इनके अनेक विषयों पर लेख एवं साक्षत्कार विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं ऑनलाइन पोर्टल पर नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते हैं. वे दी फोरेन कोर्रेस्पोंदेंट्स क्लब ऑफ़ साउथ एशिया तथा दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन जैसी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं.
Brief About:
( Mr.Surender Singh Dogra popularly known as S.S.Dogra-is a Delhi based Journalist-Author. His two books on Media Education are very popular and easily available online. Presently, associated with Dwarka Parichay as Mg. Editor and Bureau Chief-Delhi for Nepal based Himalini-Magazine. His articles/interviews are published regularly on several newspaper-magazine and even online portal. He is actively associated with prestigious media organizations-The Foreign Correspondents Club of South Asia and Delhi Journalists Association. You can also access him through- Facebook, Email:ssdogra2020@gmail.com|M:9811369585 | www.ssdogra.com)